- सन् 1991 से पहले वह अच्छी तरह से देख सकता था और बेहद परिश्रमी भी था, लेकिन अचानक एक दिन आंखों में हुई बीमारी ने अब्दुल सुभान की दुनिया को बदल कर रख दी
- आंखों की रोशनी जाने के बाद भी एकबार फिर कारवां चल पड़ा और कला व अनुभव के दम पर सुभान ने कपड़ों की सिलाई शुरू कर दी
यदि आपको हैरतअंगेज कारनामा देखने या फिर पढ़ने का शौक है तो सीधे चले आइये जिला सुपौल। जहां से पश्चिम गांव परसा में एक ऐसा शख्स है जिसका व्यवसाय कपड़े सिलने का है। अब आप कहेंगे इसमें हैरतअंगेज वाली बात क्या है ? तो आपको बता दूं कि अब्दुल सुभान (42 साल) पिछले 19 सालों से अपनी दोनों आंखों से लाचार है। बावजूद इसके सुभान न सिर्फ कपड़ों की सिलाई करता है बल्कि अपने घरेलू कार्यों को भी बखूबी अंजाम देता है। तो है न बेहद रोमांचक व आश्चर्य कर देने वाली बात। अब्दुल सुभान बताते हैं कि सन् 1991 से पहले वह अच्छी तरह से देख सकता था और बेहद परिश्रमी भी था, लेकिन अचानक एक दिन आंखों में हुई बीमारी ने अब्दुल सुभान की दुनिया को बदल कर रख दी। सालों तक इलाज मद में लाखों खर्चने के बाद भी जब आंखों की रोशनी नहीं लौटी तो आखिरकार खुद सुभान ने अपने आपको व परिजनों को दिलासा देते हुए इलाज के चक्कर में और पैसा न व्यय करने की नसीहत दे डाली। जिसके बाद परिजनों को न सिर्फ निराशा हाथ लगी बल्कि इस बात की भी चिंता सताने लगी कि अब क्या होगा ? दरअसल उस समय सुभान के परिवार में कमाने वाला कोई हाथ नहीं था। ऐसे में कमाई का कोई और जरिया न देख परिवार के सदस्य बेहद चिंतित थे। लेकिन आत्मविश्वास से लबरेज सुभान ने आखिरकार परिजनों को ही सांत्वना देना उचित समझा और कहा घबराने की कोई जरूरत नहीं है हम अपना काम करते रहेंगे और परिवार का पेट भी पालेंगे।
लिहाजा एकबार फिर कारवां चल पड़ा और कला व अनुभव के दम पर आंखों की रोशनी जाने के बाद भी सुभान ने कपड़ों की सिलाई शुरू कर दी। हालांकि आंखों की लाचारी आड़े आ रही थी और अनुभवी हाथों को भी नन्हें बच्चों की जरूरत आन पड़ी। लिहाजा इस कार्य में सुभान के नन्हें-मुन्नों ने भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया। दरअसल नहीं देख पाने के कारण सुभान अपने बच्चों से पूछकर कपडों को मापता और अनुभवी हाथों से बखूबी काटकर सिलाई भी करने लगा। धीरे-धीरे अनुभवी हाथों ने आंखों को मात देते हुए रफ्तार पकड़ लिया और इस बात का गम ही नहीं रहा कि आंखों की रोशनी चली गई। साल दर साल बीतने के बाद परिवार के सदस्य भी सामान्य होते चले गए और परिवार की शांति भी पटरी पर लौटने लगी। सुभान कहते हैं कि इलाज कराने के दौर में परिवार के अन्य सदस्यों के अलावा ससुराल के लोगों ने उनका भरपूर सहयोग दिया। आज जबकि सबकुछ सामान्य हो चुका है और सुभान की पत्नी हाजरा खातून भी बतौर शिक्षिका गांव में ही बहाल हो चुकी हैं, के बावजूद सुभान अपने कार्य में मशगुल हैं। हालांकि इलाके में कई आधुनिक टेलर्स अपनी दुकानें सजा चुके हैं और अब सुभान को आधुनिक टेलर्स से चुनौती मिलने लगी है। साथ ही सुभान की बीवी अब नहीं चाहती है कि उनका शौहर मेहनत करे। क्योंकि घर का सारा कामकाज संभालने के अलावा सुभान की बीवी को इतनी सैलेरी मिल जाती है कि घर की हर जरूरत पूरी हो जाती है।
सरकारी मदद नहीं मिलने का मलाल नहीं: मुश्किल दौर में भी सरकारी मदद न मिलने का सुभान को कोई मलाल नहीं है। विकलांग कोष से कुछ राहत मिले इसके लिए उन्होंने सरकारी दफ्तरों का चक्कर भी काटा लेकिन आजतक मदद के तौर पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। लिहाजा थक हारकर उन्होंने एकला चलो रे व बुलंद हौसले के दम पर समाज व सरकार को ठेंगा दिखाते हुए अपना कार्य जारी रखा। सामाजिक कार्यों में भी रखते हैं दिलचस्पी: आंखों की लाचारी को मात देने व बीवी को सरकारी नौकरी मिलने के बाद भी सुभान खाली हाथ बैठकर कभी न रहे। परिजनों के दबाव के आगे भले ही उन्होंने सिलाई का कार्य कुछ कम कर दिया हो, लेकिन हुनर का जलवा वो आज भी अपने क्षेत्र में दिखा रहे हैं। इशाक, नसीम, ब्रहमदेव साह, फरीद, हसरती, खुशबु समेत तकरीबन 100 युवा हाथों को सिलाई का गुर सिखाकर उन्हें उनके मुकाम तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया है। सुभान द्वारा प्रशिक्षित कई युवा प्रदेश के बाहर भी सिलाई का काम कर बेहतर जिंदगी जी रहे हैं।
कुमार गौरव,
सुपौल:
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