इतना तो अवश्य है कि अरविन्द केजरीवाल ने देश मे राजनीतिक सोच की दिशा परिवर्तित करने का प्रयास किया है। स्वतंत्र भारत के गत 60 वर्षो की राजनीतिक यात्रा मे भृष्टाचारी-तंत्र का निर्माण हुआ है जो बिल्कुल निरंकुश होकर बड़ी बेशर्मी से सत्ता और सियासत के गलियारों मे विचरण कर रहा है। केजरीवाल ने जनता की इस दुखती नब्ज को टटोला और देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों को भृष्टाचार के नाम पर गालियां देने का कार्य किया। यद्यपि अनेकों क्षेत्रीय दलों (जैसे मुलायम सिंह की स.पा., मायावती की ब.स.पा., लालू की आर.जे.डी.) के एकमुखी संचालकों पर भी भृष्टाचार के भारी से भारी आरोप हैं लेकिन केजरीवाल ने उन पर अपने हमले को केन्द्रित नहीं किया। कभी-कभार नीचा स्वर करके दबी जबान से इनके नाम भी लिये, लेकिन केजरीवाल के समक्ष तो चुनौती के लिये दो दल, जो सरकार बनाने का दावा रखते हैं, भा.ज.पा. व कांग्रेस, ही सामने हैं। केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के सामने लुभावने वादों से 28 सीटों पर विजय तो प्राप्त कर ली थी परन्तु सरकार चलाने की क्षमता मे अक्षम साबित हो गये। उनके कुछ कार्य तो बिल्कुल ही हास्यास्पद लगे। जैसे मुख्यमन्त्री आवास मे निवास नहीं करना और इस हेतु कभी दो डुप्लेक्स मिलाकर एक करने अथवा अन्य किसी स्थान पर मकान की तलाश करने का नाटक किया। प्रश्न एक तो यह था कि क्या दिल्ली के मुख्यमन्त्री आवास को केजरीवाल जी किराये पर उठाना चाहते थे जिससे कि राजकीय कोष मे बृद्धि हो। यदि नहीं तो मुख्यमन्त्री आवास का क्या सदुपयोग करने वाले थे ? प्रश्न यह भी था कि जिस अन्य मकान मे केजरीवाल निवास करने के लिये जाने वाले थे, उसका किराया कहां से समायोजित होता ? इसी प्रकार लाल बत्ती की सरकारी गाडि़यों का उपयोग नहीं करने की घोषणा की हवा निकल गई। उनके द्वारा पुलिस सिक्योरिटी नहीं लिये जाने का जनता को कुछ फायदा समझ मे नहीं आया। अर्थात सिर्फ नाटक ही नाटक देखने को मिला। दिल्ली की जनता को उसकी मौलिक परेशानियों के निदान के लिये केजरीवाल ने कोई काम नहीं किया। बिजली और पानी का समस्या जस की तस बनी रही। अपने अल्प-कार्यकाल मे लोकसभा चुनाव पर गिद्द दृष्टि जमाते हुये सिर्फ भा.ज.पा. और कांग्रेस को कोसने का कार्य किया। अर्थात अपने मुख्यमन्त्रित्व काल मे समय जाया ही किया।
राजनीतिक दलों के द्वारा लोकसभा की चुनावी चैपाड़ बिछाई जा रही है। इसी दौड़ मे अरविन्द केजरीवाल भी शामिल हैं। हम जनता हैं, और केजरीवाल जी से यह प्रश्न है कि क्या आप आगामी लोकसभा चुनाव मे अकेले दम पर सरकार बना पा रहे हैं ? ठीक है, लोकसभा चुनाव मे आप 2-4 सीटों पर जीत भी गये तो सिवाय इसके कि लोकसभा मे किसी अल्पमत की सरकार के आप या तो उसके पुस्तीवान बनेंगे या लोक-सभा मे एक तरफ कोने मे बैठकर सत्ताधारी दल को गरियाते रहेंगे। इसके अलावा आपकी कोई भूमिका नहीं रहने वाली है। हा,ं इतना अवश्य है कि आप इस देश के राष्टीªय दलों को इस उद्देश्य के साथ क्षति अवश्य पहुंचा रहे हैं कि अकेले इनके दम पर सरकार नहीं बन पाये। आपकी गतिविधियों से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि आप इस देश मे राजनीतिक स्थिरता एवं सत्ता की स्थायित्वता को पसंद नहीं करते हैं। निश्चित ही आपसे ऐसे प्रश्न होने पर आप आम आदमी के नाम पर भृष्टाचार व सड़ी-गली व्यवस्था को गालियां देंगे लेकिन क्या यह सच नहीं है कि वर्ष 2014 के चुनाव के लिये आप कमर कस कर इसके पीछे पड़े है कि किसी एक दल की सरकार न बन पाये। यही कार्य तो थर्ड-फ्रन्ट के निर्माणकर्ता करने मे लगे हैं। इस देश का प्रत्येक बुद्धिजीवी और स्वतंत्र राजनीतिक सोच का व्यक्ति इस बिन्दु पर भिन्न मत नहीं रखेगा कि राष्ट्र-हित के लिये देश की केन्द्रीय सरकार मे स्थिरता एवं स्थायित्वता होना आवश्यक है। थर्ड-फ्रन्ट के निर्माणकर्ता अपने निजी अस्तित्व और वर्चस्व के संघर्ष मे लगे हैं। ये सभी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बिखरी हुयी एवं घायल कांग्रेस के हाथ-पैर ही रहे हैं अथवा मौका पड़ने पर पुनः यू.पी.ए. मे शामिल हो जायेंगे। इनका सोच ही यही है कि यदि कांग्रेस 100 सीटों से भी कम पर विजय प्राप्त करती है तो कांग्रेस के सहयोग से थर्ड-फ्रन्ट की सरकार बने। केजरीवाल जी, कहीं इस दौड़ मे आप भी तो शामिल नहीं हैं ? यह तो वैसे ही हुआ कि सिर्फ नाम परिवर्तन हो जायेगा, पहले कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार अन्य दलों के सहयोग से चल रही थी और देश मे राजनीतिक सत्ता की अस्थिरता मे लगे लोगों के प्रयास से कहीं ऐसा न हो कि 2014 मे ऐसे दल जो यू.पी.ए. मे शामिल थे, वे थर्ड-फ्रन्ट के नाम पर कांग्रेस के सहयोग से सरकार चलाने लगें। पहले भृष्टाचारियों की सुरक्षा कांग्रेस कर रही थी और अब कांग्रेस के भृष्टाचार की सुरक्षा ये करेंगे।
केजरीवाल जी, इस देश मे ईमानदार सिर्फ आप ही नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि जो ‘‘आप पार्टी’’ के क्षत्र तले आ जाये, वे सभी ईमानदार हों। ईमानदारी और राष्ट्र-भक्ति, व्यक्ति वाचक संज्ञा है और जब ऐसे व्यक्तियों का एक समूह बनता है तो राष्ट्र प्रगति और उन्नति करता है। बिडम्बना तो इस देश की यह है कि ईमानदार व राष्ट्र-भक्त व्यक्ति अलग-थलग बिखरे हुये पड़े हैं और बेईमान व भृष्टाचारी बड़ी आसानी से सहजता के साथ संगठित हो जाते है। देश की राजनीतिक दशा और दिशा ऐसी बन गई है कि एक चोर दस चोरों के नाम गिना कर अपनी चोरी को बाजिब बताने का प्रयास कर रहा है। केजरीवाल जी यदि ईमानदारी से इस देश की सेवा करना चाहते हैं तो उन्हें यह तलाश करना होगी कि राजनीतिक, सामाजिक एवं प्रशासनिक स्तर पर कौन एवं कहां ईमानदार व्यक्ति अपने कार्य मे लगे हैं। उनसे सम्पर्क करना होगा और उन्हें संगठित करना होगा।
लेखक- राजेन्द्र तिवारी, एडवोकेट
फोन- 07522-238333, 9425116738
मेल : rajendra.rt.tiwari/gmail.com
नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक विषयों के समालोचक होने
के साथ-साथ म.प्र.शासन के शासकीय अभिभाषक हैं।
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