बढ़ते कंप्यूटरीकरण की उपयोगिता ने अर्कमण्य कर्मचारियों को बिजली की कमी ने वह हथियार दे दिया है जिसमें वे बेकार बैठ कर जीना जान गये है। जनता को परेशान करने की वही पुरानी बीमारी को उन्होंने उसी तरह अपनाया है जैसे भ्रष्टाचार की बुराई करते हुए भ्रष्टाचार करना। जब कार्य करना होता है, वे तो मिलते नहीं। जब मिलते है, तो बिजली होती नहीं। बिजली है तो जनता को दुत्कार कर बाहर करने के सारे तरीके अपनाने के उपरान्त कार्य न होने के एक से बढ़कर एक बहाने बेसिरपैर के कुतर्क के साथ उनके पास हमेशा तैयार रहते है। भारतीयों के अच्छे दिन की सम्भावनाओं में जो ग्रहण शुरु होने से पहले ही विपक्ष ने लगाया वह इन कर्मचारियों के लिये वरदान साबित हुआ है। जनता को तो लगने लगा है कि अच्छे दिनों का सपना भी छिना जा रहा है फिर वही बेबसी भरी जिन्दगी वही राजनैतिक चालों से सराबोर वातावरण। देश को विकास कम, खुद की जेबों में ज्यादा धन के रास्ते को चलने में महारथ हासिल लोगो का जमघट आम जनता का खून चूसने को तैयार बैठा है। देश की संवैधानिक व्यवस्था पर नियंत्रण का भरपूर लाभ उठा कर धन कमाने में प्रवीण रहे लोग कभी भी आम जनता को खुश होते देखना ही नही चाहते है।
पूरी सरकारी मशीनरी को भ्रष्ट और अर्कमण्य बना देने वाले आज सरकार के कार्यकलापों पर सवाल पैदा कर जनता के सामने बाहें ताने खड़े है, जनता डर या भावुकता में बहकने को मजबूर सी दिख रही है। भ्रष्ट अफसरशाही से मुक्ती के उपाय से पहले ही उनके समर्थक दलालांे की भीड़ कार्य बाधित करने को तैयार खडी है। सरकारी कर्मचारियों से अच्छी सांठ गांठ व राजनीतिक सरंक्षण प्राप्त लोग बिना बिजली के भी काम निकलवाना जानते है। जिस कार्य के लिए आमजन को दसों बार चक्कर काटना पड़ता है। उसे कुछ लोगों के लिए अर्कमण्य कर्मचारी घर जाकर करने को तैयार होते है। क्यों कोई फाईल फौरन चलती है और कोई सालों तक सड़ती रहती है। इसकी वजह सब कोई जानते है पर बदलना वाकई में कोई नहीं चाहता।
अच्छे दिन तभी आयेंगे जब राज्य सरकारें भी इस मिशन को सफल बनाने में सहयोग करेगी, जन समस्याओं को सुलझाने के लिए गम्भीरता दिखायेगी जो हो नही रहा है। मतलब भरी जिन्दगी जीते इन कर्मचारियों को समझाना बेकार है। काम निकालना आसान नही। आमजन को परेशान कर जेब भरने की आदत सरकारें बदलने के बाद भी नहीं बदली। एक पूरा गुट तंत्र अच्छे से काबिज है। अव्वल तो ईमानदार को आने नहीं देना आया तो ईमानदार नहीं बने रहने देना तब भी अगर बंदा फिर भी सच्चा रहा तो उसे कोई काम करने नहीं देना। इन भ्रष्टों को पीछे से मिलता कुटिल राजनैतिक समर्थन उन्हें बिना डर के आमजन के लिए कठोर और अपने आका के लिए इस कदर मतलबी बना देता है कि जनता आक्रोशित हो खुद के घरों को ही जलाती है। प्रशासन पर बिजली व तकनीकी ज्ञान के लिए निर्भरता ने आम आदमी के लिए कोई रास्ते नहीं छोड़े। वो पहले पेट देखे या तकनीक। अभाव की जिन्दगी ने उन्हंे कार्य करने से ज्यादा उसे न करने की इच्छा आमजन में पहले पैदा होती है कोन इसे दुर करेगा। विपक्ष तो सत्ता चाहता है। किसी भी तरह कैसे भी फायदा इन प्रशासन के कर्मचारियों का है, जो हर सत्ता में तथाकथित तौर से कहतें हैं- "हरदम होनी हमारी पूजा, आये आज तुम होगा कल दूजा !!"
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