अनेक वरिष्ठ पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों ने लोकसभा चुनाव 2009 के दौरान मीडिया की भूमिका पर नाखुशी जाहिर करते हुए सुझाव दिया है कि मीडिया को स्वयं अपनी भूमिका की समीक्षा कर अपने ऊपर अंकुश लगाना चाहिए जबकि भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जीएन रे ने मीडिया पर निगरानी के लिए एक प्रणाली की जरूरत जताई है।
'लोकसभा चुनाव में मीडिया की भूमिका' विषय पर यहाँ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नोयडा परिसर द्वारा आयोजित संगोष्ठि में यह विचार व्यक्त किया गया। संगोष्ठी में अंग्रेजी दैनिक 'द पायनियर' के संपादक और सांसद चंदन मित्रा ने कहा कि इस बार के चुनाव में मीडिया की नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही भूमिका रही है। मीडिया ने जहाँ लोगों को वोट देने के लिए जागरूक करके सकारात्मक भूमिका निभाई वहीं कथित तौर पर पैसे लेकर खबरें छापकर या दिखाकर उसने भ्रष्टाचार की नई इबारत गढ़ दी है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इलेक्ट्रानिक मीडिया ने पूरे चुनाव को मनोरंजन के रूप में लिया और ब्रेकिंग न्यूज दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ाई। इससे खबरों की विश्वसनीयता नीचे गिर गई। मित्रा ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बड़े चैनल विज्ञापन के नाम पर संगठित हो जाते हैं और वे पार्टियों से कहते हैं कि एक दर विशेष के नीचे हम विज्ञापन स्वीकार नहीं करेंगे।
इस मौके पर प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने मीडिया में आ रही इस विकृति की कड़ी आलोचना की। उन्होंने इसके समाधान के लिए सुझाव दिया कि देशभर के पत्रकारों को एकजुट कर निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों को पैसे लेकर छापी जाने वाली खबरों को विज्ञापन का रूप देना चाहिए तथा इसकी जानकारी पाठकों को देनी चाहिए तथा सबसे महत्वपूर्ण बात कि पाठकों को आदर्श पत्रकारिता के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए।
समारोह में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जीएन रे का लिखा हुआ भाषण वितरित किया गया जिसमें कहा गया कि पत्रकारिता के मूल्यों और मीडिया पर विश्वास को बनाए रखने रहने के लिए पत्रकारों को आत्ममंथन करना होगा। उनके लिए एक विनियामक बोर्ड की भी आवश्यकता है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने आरोप लगाया कि इस बार के आम चुनाव में राजनीति और मीडिया ने मिलकर लोगों के साथ फरेब किया। समारोह में प्रख्यात समाजवादी चिंतक सुरेंद्र मोहन ने सवाल उठाया कि क्या भारत में मीडिया कभी निष्पक्ष रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि मीडिया को निष्पक्ष बनाने के लिए एडिटर्स गिल्ड और भारतीय प्रेस परिषद जैसी संस्थाओं को मजबूत बनाना होगा।
कार्यक्रम में पूर्व मंत्री सोमपाल शास्त्री ने कहा कि समाचार पत्रों का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार बढ़ा लेकिन सामाजिक समस्याएँ समाचार पत्रों में अब कोई मुद्दा नहीं हैं। वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर त्रिखा ने कहा कि पत्रकार गहरे संकट में हैं जिसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। स्तंभकार अवधेश कुमार ने कहा कि कथित तौर पर पैसे लेकर जगह बेचने की समस्या में केवल मीडिया का दोष नहीं है, यह लोकंतत्र का दोष है। लोकतंत्र, पूँजीवाद और मीडिया एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
विश्वविद्यालय के नोयडा परिसर के निदेशक प्रो। अशोक टंडन ने कहा कि मीडिया ने कई आपत्तिजनक भाषणों के अंशों को दिखाया जो कि मानहानि के अंतर्गत आता है।
मंगलवार, 26 मई 2009
मीडिया की भूमिका पर मीडियाविद ने उठाये सवाल.
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