आयुर्वेद के अनुसार रात भर ताम्बे के पात्र में यदि पानी छोड़ दी जाय और सुबह खली पेट पी जाय तो इससे कई बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है ।
बर्मिंघम के एक अस्पताल ने शोध करवाया और अब वैज्ञानिकों ने भी इसको मान्यता दे दी है ।
शोधकर्ताओं ने एक पारंपरिक शौचालय की शीट, नल के हैंडल एवं दरवाजे के पुश-प्लेट को हटाकर उनकी जगह तांबे से बने सामान लगा दिए।
उन्होंने दूसरे पारंपरिक शौचालय की उपरोक्त वस्तुओं की सतह पर मौजूद जीवाणुओं के घनत्व की तुलना ताम्र वस्तुओं की सतह पर उपलब्ध जीवाणुओं के घनत्व से की। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ताम्र सतह पर उपलब्ध जीवाणु की संख्या गैर ताम्र सतह पर उपलब्ध जीवाणुओं की संख्या से 90 से करीब 100 फीसदी कम थी।
अध्ययन दल के प्रमुख यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बर्मिंघम (यूएचबी) के प्रोफेसर टॉम इलियट कहते हैं, ''बर्मिंघम और दक्षिण अफ्रीका में परीक्षण से पता चलता है कि तांबे के इस्तेमाल से अस्पताल के भूतल को काफी हद तक हानिकारक जीवाणु से मुक्त रखा जा सकता है।''
उन्होंने कहा कि कॉपर बायोसाइड के इस्तेमाल से जुड़े शोध से भी पता चलता है कि तांबा संक्रमण को दूर करता है। अतः हमें रात भर ताम्बे के पात्र में पानी रखकर सुबह खाली पेट पीने से निश्चित लाभ होगा ।
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
ताम्र पात्र में रात भर रखे पानी खाली पेट में पीने से कई बीमारियों का इलाज सम्भव !!
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5 टिप्पणियां:
उपयोगी जानकारी। आभार।
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?
बहुत ही अच्छी एवं ज्ञानवर्धक जानकारी ।
घूम फिरकर वैज्ञानिक बातें भी भारतीय सोंच को पुष्ट कर ही देती हैं .. धार्मिक मान्यता के अनुसार नदियों तालाबों के जल में सिक्के , जो उस समय ताम्बे के ही होते थे , फेंकने का भी यही वैज्ञानिक पहलू हो सकता है .. धीरे धीरे ही सही, पर जब पश्चिमी विशेषज्ञ हर बात की पुष्टि कर देंगे .. तो भारतीय मान ही लेंगे .. उसी दिन का इंतजार करना होगा !!
आयुर्वेद में इस बारे में कोई प्रमाण दिया गया है क्या ?
इस बारे में मेरी पोस्ट पर नजर डालें http://indian-sanskriti.blogspot.com/2009/08/blog-post_14.html
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"उन्होंने दूसरे पारंपरिक शौचालय की उपरोक्त वस्तुओं की सतह पर मौजूद जीवाणुओं के घनत्व की तुलना ताम्र वस्तुओं की सतह पर उपलब्ध जीवाणुओं के घनत्व से की। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ताम्र सतह पर उपलब्ध जीवाणु की संख्या गैर ताम्र सतह पर उपलब्ध जीवाणुओं की संख्या से 90 से करीब 100 फीसदी कम थी।"
अगर जीवाणुओं की संख्या ही कम करनी है तो फिल्टर या वाटर प्यूरीफायर बेहतर विकल्प हैं पीने के पानी के लिये।
डॉ० महेश सिन्हा की पोस्ट यह थी:-
"आजकल समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बहुत सारे स्वास्थ्य के बारे में टिप्स दिए जाते हैं . कल ही मेरी नजर पड़ी एक स्थानीय समाचार पत्र में जिसमे ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने के सलाह दी गयी थी . काफी वर्षों पहले इस देश में बच्चों को लिवर सिर्रोसिस की बीमारी अत्याधिकता से पाए जाने लगी . इस के खोज करने पर पता चला कि इसका कारण ताम्बे के पत्र में रखा जल पीने से शरीर में अत्यधिक ताम्बे के मात्र पहुँच जाती है और यह नुकसान पहुचती है . इस बीमारी का नाम ही Indian Childhood Cirrhosis रखा गया . ताम्बे की अत्यधिक मात्र से wilson's disease भी होता है। "
और आदरणीय संगीता जी ने इस पर कहा था:-
संगीता पुरी ने कहा…
इस विषय पर आज तक मैं भी भ्रम में ही थी !!
यह क्या हो रहा है संगीता जी ?
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