बरखा दत्त किसी भी सवाल का सही जवाब नहीं दे पाई और आखिरकार उन्होने सवाल करने वालों से ही सवाल करने शुरू कर दिए। चैनल उनका था, कार्यक्रम संचालित कर रही देवी जी उनके अधीन काम करती हैं और संपादकों का जो पैनल बरखा से पूछताछ करने बैठा था उसमें वे मनु जोसेफ भी थे जिन्होंने ओपेन मैग्जीन के जरिए नीरा राडिया और बरखा के टेप उजागर किए हैं।
बरखा ने पूछा कि आउटलुक ने जो 104 टेप छापे हैं उनमें तो 40 पत्रकारों के नाम है, सिर्फ मुझे ही क्यों घसीटा गया है? बरखा ने तो वीर सांघवी का नाम लिए बगैर उनके बच जाने पर सवाल किया। सबसे पहले राडिया बहन जी के बरखा बहन जी के साथ टेप छापने वाले मनु जोसेफ भाई साहब के सवालों के सामने बरखा ध्वस्त हो गई और उनसे उनकी पत्रकारिता की नैतिकता पर सवाल करने लगी।
रही बात बाकी संपादकों की तो दिलीप पंडगावकर से ले कर स्वपन दासगुप्ता तक कोई यह मानने को राजी नहीं था कि बरखा ने नीरा राडिया के साथ मिल कर खेल नहीं खेला है। बरखा को कहना पड़ा कि वे तो खबर पाने के लिए नीरा राडिया को बेवकूफ बना रही थी। उनको यह भी मंजूर करना पड़ा कि नीरा राडिया ने ही उनकी रतन टाटा से कई मुलाकाते करवाई थीं।
मनु जोसेफ ने पूछा कि आखिर नीरा राडिया सरकार बनाने में दो पार्टियों के बीच मैनेजर बनी हुई थी और क्या यही असली खबर नहीं थी? पहले तो बरखा दत्त ने माना कि उनसे फैसला करने में गलती हुई मगर मुझे वास्तव में पता नहीं था कि नीरा राडिया कौन है? मेरे पास तो हजारों फोन आते हैं, यह बरखा ने कहा। लेकिन यह मनु जोसेफ के सवाल का जवाब नहीं है।
बरखा ने जानबूझ कर एक घंटे के शो का समय बर्बाद किया। उन्होंने अपने टेप दिखाना जारी रखा, अपनी अपनी रिपोर्टिंग के बुलेटिन फिर दिखाए और यह साबित करने की पूरी कोशिश की कि देश में उनसे बड़ा प्रतिभाशाली और शानदार पत्रकार कोई नहीं है। बरखा दत्त जो शुरू में थोड़ी आत्मरक्षा की बाते कर रही थी आखिरकार इसी बात पर आ कर अटक गई कि यह अगर पत्रकारिता पर नैतिकता की बहस है तो ओपेन मैग्जीन के मनु जोसेफ से भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर उन्होंने उनके होर्डिंग क्याें लगाए और उनके निजी एसएमएस को सार्वजनिक क्यों किया?
मनु जोसेफ लाख करते रहे कि आप मेरी निजी दोस्त नहीं हैं और वे एसएमएस आपका पक्ष जानने के लिए एक संपादक के तौर पर भेजे थे लेकिन बरखा दत्त जो टीवी अच्छी तरह जानती है, वक्त गुजारने के लिए उनसे बहस करती रही और कार्यक्रम का ही वक्त खत्म हो गया। मौजूद संपादकों में बिजिनेस स्टैंडर्ड के संपादक और प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार रहे संजय बारू भी थे और उनके एक सीधे सवाल का जवाब बरखा नहीं दे पाई। बारू ने पूछा था कि क्या आप सिर्फ हमे यह बता दे कि आपको इस्तेमाल किया गया या आप जानबूझ कर इस्तेमाल होने के लिए तैयार थी?
---आलोक तोमर---
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