आज जमशेदपुर में उप चुनाव है. अर्जुन मुंडा ने खरसावाँ विधान सभा सीट से जीतने के बाद यह सीट छोड़ दी थी. डॉ दिनशा नन्द गोस्वामी (भाजपा), डॉ. अजय कुमार (झाविमो),सुधीर महतो (झामुमो), बनना गुप्ता (कांग्रेस), आस्तिक महतो (आजसू), तथा सुमन महतो (तृणमूल) मुख्य प्रत्याशी हैं.
सुबह से जमशेदपुर वासी वोट देने जा रहे हैं. जागरूकता तो जमशेदपुर में पहले से ही थी, आजकल तो कुछ ज्यादा ही हो गयी है, और क्यों न हो ?
१५ नवम्बर २००० को झारखण्ड जब बिहार से अलग हुआ था तो लोगों को उम्मीद थी की खनिजों से भरा यह राज्य बहुत तरक्की करेगा. यहाँ के मूल बासिंदों को मुख्य धारा में लाया जा सकेगा, उनका उत्थान होगा. जिन लोगों को सदियों से दबाकर रखा गया है उन्हें अपना अधिकार मिलेगा.
आज १० वर्षों बाद यदि तरक्की को देखी जाय तो हुई तो है. मधु कोड़ा झारखण्ड की तरक्की के ही तो उदहारण हैं. क़त्ल करने बाद भी मूल वासी मंत्री और मुख्यमंत्री बने तो इसे तरक्की ही कहेंगे. आज छोटे से छोटे नेता बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं यह तरक्की नहीं तो और क्या है? परन्तु क्या मूल वासियों को उनका अधिकार मिल पाया है?
आज एक तरफ डॉ. अजय कुमार चुनाव मैदान में हैं जिनको लोग जमशेदपुर के सबसे तेज़ तर्रार एसपी के रूप में जानते हैं. जिनके आने से जमशेदपुर के सारे माफिया और डौन या तो सलाखों के पीछे थे, या फिर भूमिगत हो गए थे. अपने कार्यकाल में डॉ अजय कुमार ने जो किया उसे आज भी जमशेदपुर के वासी याद करते हैं. परन्तु उन्हें यह सरकारी चाकरी नहीं भाया और इस्तीफा दे "टाटा मोटर्स" में उच्च पद पर आसीन हो गए. वही अजय कुमार आज चुनाव मैदान में हैं शायद जीत भी जाएँ.
भाजपा ने एक पढ़े लिखे डॉ गोस्वामी को टिकट दिया है, कुछ उम्मीदें उनसे भी है. और उनके भी जीतने की उम्मीद लोग करते हैं. बाकी प्रत्यासी ऐसे हैं जिनके बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है कि यह झारखण्ड के बंटवारा की देन है. ये जनता और मूल वासियों का कितना ध्यान रखेंगे यह तो भगवन ही मालिक हैं. बड़ी बड़ी गाड़ियों में खुद और इनके दूर दूर के रिश्तेदार भी घूमते हैं. आज झारखण्ड में अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है. यह अतिक्रमण भी इनकी ही देन है. नेता के नाम पर सबने सरकारी जमीन बेच दी.
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