द्वादश ज्योतिर्लिगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 16 जुलाई 2011

द्वादश ज्योतिर्लिगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग.


झारखण्ड स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है. यह ज्योतिर्लिंग सर्वाधिक महिमामंडित है. यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं लेकिन सावन में यहां भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है.

सावन में यहां प्रतिदिन करीब एक लाख भक्त ज्योतिर्लिग पर जलाभिषेक करते हैं.पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यह ज्योतिर्लिंग लंकापति रावण द्वारा यहां लाया गया था.  

शिव पुराण के अनुसार शिव भक्त रावण ने अपनी तपस्या से भगवान को खुश कर अपना मनोवांछित वरदान पाया था. इस वरदान में रावण ने भगवान शिव को कैलाश पर्वत से अपने साथ लंका ले जाने का इच्छा व्यक्त की. भगवान शिव ने खुद लंका जाने से मना कर दिया था लेकिन उन्होंने अपने भक्त को शिवलिंग ले जाने की सलाह दी थी. इसके साथ ही भगवान शिव ने इस ज्योतिर्लिंग को रास्ते में कहीं न रखने की हिदायत दी थी. उन्होंने कहा कि यदि इसे कहीं और रखा गया तो फिर यह लिंग वहीं स्थापित हो जाएगा. भगवान विष्णु नहीं चाहते थे कि यह ज्योतिर्लिंग लंका पहुंचे. इसलिए उन्होंने गंगा से रावण के पेट में समाने का अनुरोध किया. रावण के पेट में गंगा के आने के बाद रावण को लघुशंका की इच्छा प्रबल हो उठी. इसके बाद वह यह सोचने लगा कि आखिर यह ज्योर्तिलिंग किसे सौंपकर लघुशंका के लिए जाए. ऐसे में वहां ग्वाले के वेश में भगवान विष्णु प्रकट हुए. रावण ने उस ग्वाले को वह ज्योतिर्लिंग सौंप यह हिदायत दी की वह लघुशंका से निवृत्त होकर आ रहे हैं और वह यह ज्योतिर्लिंग जमीन पर न रखे. इसके बाद जब रावण लघुशंका करने लगा तो उसके लघुशंका करने की इच्छा समाप्त नहीं हो रही थी. काफी देर के तक जब वह नहीं लौटा तो वह ग्वाला शिवलिंग जमीन पर रख गायब हो गया. इसके बाद रावण जब लौटकर आया तो उसके लाख प्रयास के बावजूद भी वह शिव लिंग अपनी जगह से नहीं हिला और उसे खाली हाथ लंका लौटना पड़ा. बाद यहां सभी देवी-देवताओं ने यहां आकर इस ज्योतिर्लिंग को विधिवत रूप से स्थापित किया और उसकी पूजा-अर्चना की. काफी दिनों के बाद बैजनाथ नाम के एक चरवाहे को इस ज्योतिर्लिग का दर्शन हुआ और फिर वह प्रतिदिन इसकी पूजा करने लगा. जिससे इस स्थान का नाम बैद्यनाथ हो गया.

देवघर जिला स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में कांवड़ चढ़ाने का बहुत महत्व है. शिव भक्त सुल्तानगंज से उत्तर वाहिनी गंगा से जल भरकर 106 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और भगवान का जलाभिषेक करते हैं. कांवड़ चढ़ाने वाले इन भक्तों को 'साधारण बम' कहा जाता है. परंतु जो लोग इस यात्रा को 24 घंटे में पूरा करते हैं उन्हें 'डाक बम' कहा जाता है. इन्हें प्रशासन की ओर से कुछ खास सुविधाएं दी जाती हैं. कुछ ऐसे भी भक्त होते हैं जो दंड प्रणाम करते हुए या दंडवत करते हुए सुल्तानगंज से बाबा के दरबार में आते हैं. यह यात्रा काफी कष्टकारी मानी जाता है.


यहां का मुख्य प्रसाद चूड़ा, पेड़ा, चीनी का बना इलायची दाना, सिंदूर आदि है. जिसे लोग यहां से प्रसाद स्वरूप खरीदकर अपने घर ले जाते हैं.  बाबा बैद्यनाथ में जो कांवड़िये जलाभिषेक करने आते हैं वे बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते. मान्यता है कि जब तक बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक नहीं किया जाता तब तक बाबा बैद्यनाथ धाम की पूजा अधूरी मानी जाती है. बासुकीनाथ मंदिर यहां से लगभग 42 किलोमीटर दूर दुमका जिले में है. कांवड़िये अपने कांवड़ में सुल्तानगंज की गंगा नदी से जो दो पात्रों में जल लाते हैं उनमें से एक पात्र से बाबा बैद्यनाथ में अभिषेक किया जाता है तो दूसरे से बाबा बासुकीनाथ में.


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