स्वीडन में सर्जनों ने दुनिया का पहला ‘सिंथैटिक औरगन ट्रांसप्लांट’ किया है. लंदन में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम सांस की नली बनाई जिसपर मरीज़ के स्टेम सेल का लेप चढ़ाया. 36 साल के कैंसर मरीज़ में ऑपरेशन के बाद तेज़ी से सुधार हो रहा है. इस पूरे ऑपरेशन की सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें किसी दाता या 'डोनर' की ज़रूरत नहीं है और इस बात का भी ख़तरा नहीं रहता है कि शरीर उस नए अंग को स्वीकार नहीं करेगा.
सर्जनों का दावा है कि सांस की नली को कुछ दिनों में ही बनाया जा सकता है. प्रोफ़ेसर पाओलो मैकियारिनी इटली के हैं और उन्होंने इस पूरी सर्जरी का नेतृत्व किया था. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है वे इस तकनीक का इस्तेमाल कोरिया में नौ साल के एक मरीज़ की ख़राब सांस की नली का इलाज कर पाएंगे. प्रोफ़ेसर मैकियारिनी ने अब तक सांस की नली के दस ट्रांसप्लांट ऑपरेशन किए हैं लेकिन इन सभी मामलों में एक दाता या डोनर की ज़रूरत रही है. इस तकनीक की सबसे महत्वपूर्ण बात है मरीज़ की सांस की नली का हू-ब-हू ढांचा तैयार करना.
इसके लिए मरीज़ की नली का 3-डी स्कैन डाक्टरों को दिया गया. ये मरीज़ अफ़्रीका के हैं और इनका नाम है ऐंडेमरियम टेकलेसेन्बेट. इन स्कैन को देखकर यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने हू-ब-हू ढांचा तैयार किया. फिर शीशे से बने इस ढांचे पर मरीज़ के बोन मैरो से स्टेम सेल निकाल कर तैयार किया गया लेप लगाया गया. दो दिनों के भीतर मरीज़ की लाखों छेद वाली सांस की नली पर मरीज़ के ही टीश्यू (रेशे)चढ़ गए.
मरीज़ की सांस की नली में एक ऐसा ट्यूमर हो गया था जिसे ऑपरेशन कर हटाया नहीं जा सकता था. ट्रांसप्लांट ही इसका एक उपाय था. 12 घंटे लंबे इस ऑपरेशन के बाद मरीज़ की ट्यूमर ग्रसित पूरानी सांस की नली हटाकर एक कृत्रिम सांस की नली लगा दी गई. इस पूरी प्रक्रिया की सबसे अहम बात ये है कि ये कृत्रिम नली कुछ ही दिनों में बिल्कुल शरीर के असली अंग की तरह हो जाएगी. चूंकि इसमें किसी दूसरे शरीर से कुछ नहीं लिया गया है इसीलिए इसे मरीज़ का शरीर अस्वीकार भी नहीं करेगा.
प्रोफ़ेसर मैकियारिनी ने इस ऑपरेशन को विज्ञान की दुनिया में एक बेहद महत्पूर्ण क़दम बताया है. 'शुक्र है इस नई तकनीक का कि हम मरीज़ के लिए हू-ब-हू सांस की नली केवल दो दिनों के भीतर बना सके हैं.' उनका मानना है कि इस तकनीक से कई और अंग बनाए जा सकते हैं.
शनिवार, 9 जुलाई 2011
दुनिया का पहला कृत्रिम स्वांस नली.
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