अन्ना हजारे ने लोकपाल मुद्दे पर अपनी सारी बातें सोनिया गांधी को बताई। अन्ना हजारे ने कहा कि सही लोकपाल ड्राफ्ट को संसद में नहीं पेश किया गया तो वह 16 अगस्त से अनशन पर चले जाएंगे। अन्ना ने कांग्रेस अध्यक्ष के साथ 16मुद्दों पर चर्चा की। अन्ना ने सोनिया गांधी को सरकार के ड्राफ्ट और सिविल सोसायटी के ड्राफ्ट के अंतर को समझाया। मुलाकात के बाद अन्ना हजारे ने बताया कि सोनिया गांधी ने उनकी सारी बातें सुनीं। प्रधानमंत्री और न्यायालय को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग पर अन्ना अड़े रहे।
कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि सोनिया गांधी अन्ना की भावनाओं का आदर करती हैं। द्विवेदी ने बताया कि सोनिया गांधी अपने सहयोगियों के सामने अन्ना द्वारा उठाये गए मुद्दे रखेंगी। हालांकि कांग्रेस नेता यह समझाने से नहीं चूके कि लोकतंत्र में वही होता है जो बहुमत चाहती है। सबको अपनी राय रखने का अधिकार है। लोकपाल के मुद्दे पर हम सारे दलों से बात करेंगे। मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने सरकार के सर्वदलीय मीटिंग में जाना चाहिए कि नहीं, इस मुद्दे पर आज शाम को ही एनडीए की मीटिंग बुलाई है।
कल अन्ना ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की। इस बैठक में लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह और रविशंकर प्रसाद सहित 11 शीर्ष नेता शामिल थे। भाजपा नेताओं से मुलाकात के बाद अन्ना ने कहा कि लोकपाल बिल पर भाजपा का रुख सकारात्मक था। उन्होंने इस पर संतोष जताते हुए दावा किया कि भाजपा मजबूत लोकपाल बिल के पक्ष में है। प्रेंस कांफ्रेंस में टीम अन्ना के साथ मौजूद रविशंकर प्रसाद ने अन्ना का खुलकर तो समर्थन तो नहीं किया, लेकिन कहा कि पार्टी मजबूत लोकपाल बिल के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि पार्टी की अन्ना हजारे और टीम के साथ अच्छी मुलाकात हुई है।
अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने बताया भाजपा नेताओं ने हमसे कई सवाल पूछे। उनका एक अहम सवाल यह था कि लोकपाल किसी अच्छे शख्स को ही बनाया जाएगा, यह कैसे सुनिश्चत किया जाए? इस बारे में हमने तो जन लोकपाल बिल में प्रावधान किए हैं, लेकिन कई और सुझाव आए और ऐसे सभी सुझावों का हम स्वागत करते हैं। इस बारे में बातचीत और विचार-विमर्श के बाद जो भी उचित होगा वह किया जाएगा। हम सब चाहते हैं कि मजबूत और बेहतरीन लोकपाल बिल लाया जाए। उन्होंने कहा कि बीजेपी नेताओं ने भी हमारी बातें गौर से सुनीं। अब वे आपस में बैठकर इस बारे में पार्टी का रुख तय करेंगे।
विपक्ष खासकर भाजपा की अगुआई वाला एनडीए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लोकपाल मसले पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का बायकाट कर सकता है। वामपंथी पार्टियां, खासकर भाकपा भी बैठक से अलग रह सकती है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा काफी माथापच्ची के बाद लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को रखने के सबसे विवादास्पद मुद्दे पर टीम अन्ना को समर्थन देने पर तैयार हो गई है। पार्टी इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों से अनौपचारिक बातचीत का दौर शुरू कर चुकी है और शनिवार की शाम लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में एनडीए की बैठक में इस पर अंतिम रुख जाहिर कर सकती है।
एनडीए लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को रखने का समर्थन कर सकता है, लेकिन लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमंत्री को रखने का मसला वह राज्यों और सहयोगी दलों पर छोड़ सकता है। टीम अन्ना से भाजपा का उच्च न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में रखने के मसले पर मतभेद अभी कायम है। पार्टी इस पर अलग विधेयक के पक्ष में है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दैनिक भास्कर से कहा कि विपक्षी नेताओं में यह धारणा बनी है कि सर्वदलीय बैठक का मकसद लोकपाल के मुद्दे पर यूपीए सरकार की अपनी छवि बचाने की आखिरी कोशिश का हिस्सा है, इसलिए विपक्ष को सिविल सोसाइटी को धता बताने की कोशिश का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। भाजपा नेता ने कहा, ‘विपक्ष को अभी तक विश्वास में लेने की नहीं सूझी थी, लेकिन सरकार जब मुश्किल में फंस गई तो उसे इस स्थिति से बचने के लिए विपक्ष की याद आ रही है।’
शुक्रवार को अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों के साथ बैठक के बाद वरिष्ठ भाजपा नेताओं की इस विषय पर अपना रुख तय करने के लिए एक बैठक हुई। उसमें यह राय बनी कि प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में नहीं जाना चाहिए। उधर, वामपंथी पार्टियां खासकर भाकपा भी सर्वदलीय बैठक के बायकाट का मन बना चुकी है। वाममोर्चा पहले ही कह चुका है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में होना चाहिए। वैसे विपक्ष की साझा रणनीति के लिए अनौपचारिक विचार-विमर्श जारी है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में रखने की दो वजहों से समर्थन कर रही है। 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के प्रस्तावित लोकपाल विधेयक में प्रधानमंत्री को उसके दायरे में रखा गया था। इस वजह से पार्टी अपनी राय पर कायम रहना चाहती है।
भाजपा का मानना है कि ‘यूपीए सरकार का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार यूपीए-1के दौरान ‘नोट के लिए वोट’ कांड था। इस मामले में मनमोहन सिंह सरकार के पहले एक और कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के जमाने की भी ऐसी ही मिसाल है। इसलिए प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे से क्यों बाहर रहने चाहिए, इसकी दलील स्पष्ट नहीं है। हालांकि, प्रधानमंत्री का पद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में पहले से है। लेकिन, सीबीआईऔर पुलिस केंद्र सरकार के अधीन ही होती हैं। प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर लोकपाल की प्रक्रिया कुछ अलग की जा सकती है।’ इसके पहले आठ लोकपाल विधेयक संसद में पेश हो चुके हैं और बेमानी हो चुके हैं। तीन मौकों पर 1966, 1998 और 2001 में पेश विधेयकों में प्रधानमंत्री का पद लोकपाल के दायरे में रहा है।
कल अन्ना ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की। इस बैठक में लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह और रविशंकर प्रसाद सहित 11 शीर्ष नेता शामिल थे। भाजपा नेताओं से मुलाकात के बाद अन्ना ने कहा कि लोकपाल बिल पर भाजपा का रुख सकारात्मक था। उन्होंने इस पर संतोष जताते हुए दावा किया कि भाजपा मजबूत लोकपाल बिल के पक्ष में है। प्रेंस कांफ्रेंस में टीम अन्ना के साथ मौजूद रविशंकर प्रसाद ने अन्ना का खुलकर तो समर्थन तो नहीं किया, लेकिन कहा कि पार्टी मजबूत लोकपाल बिल के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि पार्टी की अन्ना हजारे और टीम के साथ अच्छी मुलाकात हुई है।
अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने बताया भाजपा नेताओं ने हमसे कई सवाल पूछे। उनका एक अहम सवाल यह था कि लोकपाल किसी अच्छे शख्स को ही बनाया जाएगा, यह कैसे सुनिश्चत किया जाए? इस बारे में हमने तो जन लोकपाल बिल में प्रावधान किए हैं, लेकिन कई और सुझाव आए और ऐसे सभी सुझावों का हम स्वागत करते हैं। इस बारे में बातचीत और विचार-विमर्श के बाद जो भी उचित होगा वह किया जाएगा। हम सब चाहते हैं कि मजबूत और बेहतरीन लोकपाल बिल लाया जाए। उन्होंने कहा कि बीजेपी नेताओं ने भी हमारी बातें गौर से सुनीं। अब वे आपस में बैठकर इस बारे में पार्टी का रुख तय करेंगे।
विपक्ष खासकर भाजपा की अगुआई वाला एनडीए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लोकपाल मसले पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का बायकाट कर सकता है। वामपंथी पार्टियां, खासकर भाकपा भी बैठक से अलग रह सकती है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा काफी माथापच्ची के बाद लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को रखने के सबसे विवादास्पद मुद्दे पर टीम अन्ना को समर्थन देने पर तैयार हो गई है। पार्टी इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों से अनौपचारिक बातचीत का दौर शुरू कर चुकी है और शनिवार की शाम लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में एनडीए की बैठक में इस पर अंतिम रुख जाहिर कर सकती है।
एनडीए लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को रखने का समर्थन कर सकता है, लेकिन लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमंत्री को रखने का मसला वह राज्यों और सहयोगी दलों पर छोड़ सकता है। टीम अन्ना से भाजपा का उच्च न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में रखने के मसले पर मतभेद अभी कायम है। पार्टी इस पर अलग विधेयक के पक्ष में है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दैनिक भास्कर से कहा कि विपक्षी नेताओं में यह धारणा बनी है कि सर्वदलीय बैठक का मकसद लोकपाल के मुद्दे पर यूपीए सरकार की अपनी छवि बचाने की आखिरी कोशिश का हिस्सा है, इसलिए विपक्ष को सिविल सोसाइटी को धता बताने की कोशिश का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। भाजपा नेता ने कहा, ‘विपक्ष को अभी तक विश्वास में लेने की नहीं सूझी थी, लेकिन सरकार जब मुश्किल में फंस गई तो उसे इस स्थिति से बचने के लिए विपक्ष की याद आ रही है।’
शुक्रवार को अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों के साथ बैठक के बाद वरिष्ठ भाजपा नेताओं की इस विषय पर अपना रुख तय करने के लिए एक बैठक हुई। उसमें यह राय बनी कि प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में नहीं जाना चाहिए। उधर, वामपंथी पार्टियां खासकर भाकपा भी सर्वदलीय बैठक के बायकाट का मन बना चुकी है। वाममोर्चा पहले ही कह चुका है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में होना चाहिए। वैसे विपक्ष की साझा रणनीति के लिए अनौपचारिक विचार-विमर्श जारी है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में रखने की दो वजहों से समर्थन कर रही है। 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के प्रस्तावित लोकपाल विधेयक में प्रधानमंत्री को उसके दायरे में रखा गया था। इस वजह से पार्टी अपनी राय पर कायम रहना चाहती है।
भाजपा का मानना है कि ‘यूपीए सरकार का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार यूपीए-1के दौरान ‘नोट के लिए वोट’ कांड था। इस मामले में मनमोहन सिंह सरकार के पहले एक और कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के जमाने की भी ऐसी ही मिसाल है। इसलिए प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे से क्यों बाहर रहने चाहिए, इसकी दलील स्पष्ट नहीं है। हालांकि, प्रधानमंत्री का पद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में पहले से है। लेकिन, सीबीआईऔर पुलिस केंद्र सरकार के अधीन ही होती हैं। प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर लोकपाल की प्रक्रिया कुछ अलग की जा सकती है।’ इसके पहले आठ लोकपाल विधेयक संसद में पेश हो चुके हैं और बेमानी हो चुके हैं। तीन मौकों पर 1966, 1998 और 2001 में पेश विधेयकों में प्रधानमंत्री का पद लोकपाल के दायरे में रहा है।
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