"गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के जनलोकपाल विधेयक को अगर स्वीकार किया जाता है तो इससे न्यायपालिका और कार्यपालिका 'लकवाग्रस्त' हो जायेगी." नयी दिल्ली में शुक्रवार को लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये गठित हुई संयुक्त समिति के सदस्य मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इस मुद्दे पर अपने ताजा लेख 'जन लोकपाल-बीमारी से घातक इलाज' (भाग-दो) में प्रधानमंत्री पद, न्यायपालिका और सांसदों के आचरणों को लोकपाल के दायरे में लाने के प्रस्तावों का कड़ा विरोध किया है.
सिब्बल ने कहा, 'प्रधानमंत्री कार्यालय हमारे संसदीय लोकतंत्र का प्रमुख केंद्र है. एक स्वतंत्र लेकिन निरंकुश जनलोकपाल पूरी व्यवस्था को बुरी तरह अस्थिर कर सकता है. ऐसा लोकपाल प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच सिर्फ यह पता लगाने के लिये कर सकता है कि क्या उन पर लगे आरोप निराधार हैं. इससे संसदीय लोकतंत्र को ठेस पहुंचेगी.' उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था के तहत प्रधानमंत्री को अभियोजन से छूट प्राप्त नहीं है. किसी मामले में अगर तथ्य सार्वजनिक दायरे में हों तो व्यवस्था किसी भ्रष्ट व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नहीं बने रहने दे सकती. पत्र सूचना कार्यालय के जरिये जारी अपने लेख की दूसरी कड़ी में सिब्बल ने कहा कि अस्थिर पड़ोस और आतंकवाद के वास्तविक खतरे के बीच प्रधानमंत्री की संस्था को कमज़ोर करना ऐतिहासिक भूल होगी.
सिब्बल ने अपने लेख में कहा, 'जनलोकपाल विधेयक के बारे में चिंता की एक और वजह सांसदों को अभियोजन के दायरे में लाने की कोशिश से जुड़ी है. संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के तहत सदन के अंदर अपनी बात रखने और वोट डालने के संसद सदस्यों के अधिकार को संरक्षण मिला हुआ है. ये दो अधिकार बहुमूल्य हैं.' केंद्रीय मंत्री ने कहा कि संसद सदस्यों के इन अधिकारों के प्रयोग को अभियोजन के दायरे में लाने से सांसदों की कही हर बात और उनके डाले गये हर वोट पर सवाल उठने लगेंगे. इस तरह का अधिकार लोकपाल को देने के लिये संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी.
सिब्बल ने कहा कि इस मसले का हल संसद की आचार समिति के पास है जो किसी भी सदस्य के खिलाफ भ्रष्टाचार का प्रथम दृष्टया सबूत मिलने पर कार्यवाही कर सकती है और लोकसभा अध्यक्ष से अभियोजन की मंजूरी ले सकती है. सिब्बल ने अपने लेख में न्यायपालिका के मुद्दे पर कहा कि संविधान के जरिये न्यायपालिका की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा गया है. उच्च न्यायपालिका का कोई भी न्यायाधीश केवल महाभियोग की प्रक्रिया के जरिये ही हटाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जनलोकपाल विधेयक के तहत वैकल्पिक तंत्र बनाने की बात कही गयी है. अगर ऐसा हुआ तो परिणाम कहीं ज्यादा खतरनाक हो जायेंगे. न्यायाधीशों को उनके फैसले की गलत व्याख्या होने की स्थिति में अभियोजन का डर सताने लगेगा.
गांधीवादी अन्ना हज़ारे की संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी से शनिवार को होने वाली मुलाकात से पहले कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि वह प्रस्तावित लोकपाल विधेयक के दायरे में प्रधानमंत्री और उच्च न्यायपालिका को लाये जाने के खिलाफ हैं. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिये. अगर प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाया जाये तो इससे लोकतांत्रिक और संसदीय शासन प्रणाली में 'अंतरनिहित अस्थिरता' आ जायेगी.
सिंघवी ने यह भी कहा कि कांग्रेस प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से पूरी तरह बाहर रखने की बात नहीं कह रही है. प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके पदमुक्त हो जाने के बाद अभियोजन चलाया जा सकता है इसी के साथ सिंघवी ने यह भी कहा कि कांग्रेस प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से पूरी तरह बाहर रखने की बात नहीं कह रही है. प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके पदमुक्त हो जाने के बाद अभियोजन चलाया जा सकता है.
कांग्रेस ने पहली बार लोकपाल के मुद्दे पर अपना रुख जाहिर किया है. अब तक वह यही कहती आयी थी कि वह लोकपाल मसौदा संयुक्त समिति में सरकार की ओर से शामिल प्रतिनिधियों के विचारों का ही पक्ष लेगी. पार्टी का रुख विस्तृत तरीके से जाहिर करते हुए सिंघवी ने यह भी कहा कि यह अंतिम मत नहीं है और कांग्रेस इस मुद्दे पर संसद की 'सामूहिक इच्छा' के अनुसार चलेगी.
सिंघवी की यह टिप्पणी महत्व रखती है क्योंकि उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है जब हज़ारे शनिवार को कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात करने वाले हैं. हज़ारे ने कहा है कि वह प्रस्तावित लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को भी लाने के बारे में सोनिया को राजी करने की कोशिश करेंगे.
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