भीष्म साहनी ने न सिर्फ साहित्य बल्कि रंगमंच को भी नयी ऊंचाई प्रदान की. 'तमस' धारावाहिक और 'कबीरा खड़ा बाजार में' जैसे नाटक के जरिए उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी. साहित्यकार प्रेम जनमेजय का कहना है, 'हिंदी साहित्य में भीष्म साहनी सबसे प्रखर लेखकों में थे. उनकी रचना 'तमस' वाकई बेमिसाल है. इसके जरिए देश के बंटवारे की एक अलग तस्वीर नजर आती है.'
साहनी का जन्म आठ अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में हुआ था. लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज और अमृतसर के खालसा कॉलेज से तालीम हासिल करने वाले साहनी ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में साहनी की अहम भूमिका रही.
उनके भाई बलराज साहनी नामी अभिनेता थे. साहनी भाई के साथ मुंबई में रंगमंच लेखन से जुड़े और बाद में एक कॉलेज में प्राध्यापक बन गए. वर्ष 1957 से 1963 तक वह मास्को में रहे और उन्होंने कई रूसी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया. वह हिंदी के अलावा उर्दू, अंग्रेजी और पंजाबी भाषा के अच्छे जानकार थे. साहनी ने हिंदी में कई रचनाएं लिखीं, लेकिन उनका 'तमस' उपन्यास हमेशा के लिए लोगों के जेहन में घर कर गया. उनकी कुछ अन्य प्रमुख रचनाएं 'निशाचर' और 'पहला पथ' हैं. उन्होंने अपनी जीवनी 'आज का अतीत' और अपने भाई के बलराज साहनी की जीवनी 'बलराज माई ब्रदर' लिखी. वह एक बेहद सादगीपसंद इंसान थे. जनमेजय कहते हैं, 'मुझे कई बार साहनी से मिलने और उनके साथ वक्त गुजारने का मौका मिला. वह सादगी पसंद करने वाले इंसान थे. यह बात लोगों को उनकी ओर खींचती थी.'
साहनी की कई रचनाओं को रंगमंच पर उतारा गया. उनके नाटकों को एम के रैना और अरविंद गौर जैसे निर्देशकों ने निर्देशित किया. रंगकर्मी निसार अहमद उर्फ इकबाल कहते हैं, 'मैंने उनके लिखे कई नाटकों को देखा और कुछ में काम भी किया. वह रंगमंच की नब्ज को बखूबी समझते थे.' साहित्य में योगदान के लिए साहनी को कई सम्मान दिए गए. इनमें सहित्य अकादमी फेलोशिप और पद्म भूषण प्रमुख हैं. 11 जुलाई, 2003 को साहनी का निधन हो गया.
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