प्रधानमंत्री के एक विवादास्पद बयान ने भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में खटास पैदा होने की आशंका है। दरअसल, पांच संपादकों के साथ मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘कम से कम २५ फीसदी बांग्लादेशी जमियत-उल-इस्लामी के प्रभाव में हैं और वे भारत के खिलाफ हैं। ये लोग पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के शिकंजे में हैं।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसे में बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य कभी भी बदल सकता है। हम यह नहीं जानते हैं कि ये आतंकवादी कौन हैं, जिन्होंने बांग्लादेश में जमियत-ए-इस्लामी पर पकड़ बना रखी है और वे क्या चाहते हैं।’
प्रधानमंत्री का यह बयान 'ऑफ द रिकॉर्ड' था। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की वेबसाइट पर यह जारी हो गया। पीएमओ ने करीब 30 घंटे बाद अनौपचारिक तौर पर दिए गए डॉ. मनमोहन सिंह के इस बयान को वेबसाइट से हटा लिया है। यह बयान ऐसे समय सार्वजनिक हुआ जब विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा को एक हफ्ते बाद बांग्लादेश जाना है।
पीएम के बयान को बुधवार की रात पीएमओ की वेबसाइट पर जारी किया गया था। शुक्रवार की सुबह संपादकों से बातचीत का यह लिखित ब्योरा (ट्रांस्क्रिप्ट) सुधार कर फिर से जारी किया गया। इसमें बांग्लादेश को लेकर पीएम के बयान को पूरी तरह से हटा दिया गया। प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हरीश खरे ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने एक अखबार को बताया कहा, ‘प्रधानमंत्री का यह बयान अनौपचारिक था। हमने इसे गलती से प्रकाशित कर दिया था, अब इसे सुधार लिया गया है।’ हालांकि, इस मामले में बांग्लादेश की तरफ से कोई भी आधिकारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है। विदेश मंत्रालय की भी वेबसाइट से मनमोहन सिंह के बयान को हटा दिया गया है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि पीएम का 25 फीसदी आबादी का आंकड़ा पूरी तरह गलत है। बांग्लादेश में करीब ढाई साल पहले हुए संसदीय चुनाव में जमीयत-उल-इस्लामी को बमुश्किल 4 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, पिछले 20 सालों में जमात का सबसे ज़्यादा वोट प्रतिशत 6 रहा है। मनमोहन सिंह के इस बयान से बांग्लादेश की शेख हसीना वाजेद सरकार बैकफुट पर आ गई है। लेकिन पीएम के बयान से बांग्लादेशी में एक अरसे से हाशिए पर रहे कट्टरपंथी समाज को सक्रिय होने का गैर जरूरी बहाना मिल गया है। एसएम कृष्णा 6 से 8 जुलाई के बीच ढाका की यात्रा पर रहेंगे। भारत के साथ सीमा सुरक्षा समेत तमाम रणनीतिक मुद्दों पर बांग्लादेश की वाजेद सरकार सहयोग कर रही है। ऐसे में ऐसे बयान दोनों देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
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