'आनंदवन' के संस्थापक बाबा आम्टे की पत्नी साधना आम्टे के निधन से 'आनंदवन' 9 जुलाई को अनाथ हो गया. करीब 5 हजार लोगों के ऊपर से 'मातृत्व का आंचल' साधना आमटे के निधन से छिन गया है. बाबा आम्टे के साथ सन 1946 में विवाहबद्ध हुई इंदु गुलशास्त्री कालांतर में पति के साथ मिल कर 'आनंदवन' को मातृत्व से सींचती रहीं. शायद इसी का परिणाम था कि आनंदवन एक पौधे से वटवृक्ष में तब्दील हो सका. जब कभी बाबा आम्टे किसी उलझन में फंसे, उसका समाधान भी 'साधनाताई' ने ही सुझाया. बाबा आम्टे का निधन 9 फरवरी 2008 को हुआ था. तब से लेकर साधना ताई ने जिस साधना से आनंदवन को संजोये रकह था वह वाकई सराहनीय था.
बताया जाता है कि तत्कालीन समय में महारोगियों को लेकर समाज में कई कुंठाएं थीं,लेकिन बाबा आम्टे महारोगियों की सेवा करना चाहते थे. इस दौरान उन्होंने अपने मन की बात साधना आम्टे को बताई, जिसके बाद इन्होने ने उनसे कहा था 'आप अपने दिल की बात सुनें. मुझे आपके साथ चलने में ही खुशी महसूस होगी'. इसके बाद बाबा की राह आसान हो गई. उसके बाद ही जून 1951 में बाबा आम्टे ने पत्नी साधना आम्टे, दो छोटे-छोटे पुत्रों विकास तथा प्रकाश और एक गाय, कुत्ता और 14 रु. लेकर आनंदवन की नींव रखी, जो आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुका है. इसके पीछे बाबा आम्टे की मेहनत तथा लगन और कुछ करने की इच्छा थी तो साधना आम्टे का समर्पण और सहयोग था.
'मेरे मरने के बाद कहीं अन्यत्र अंत्येष्टि करने के बजाय मुझे वहीं तथा उसी जगह समाधि दी जाए जिस जगह बाबा आम्टे चिर निद्रा में लीन हैं.' यह इच्छा साधना आम्टे ने जीवित रहते बाबा आम्टे के सामने उस समय व्यक्त की थी जब बाबा आम्टे नर्मदा बचाओ आंदोलन में भाग लेकर आनंदवन लौटे थे. पति की समाधि खोदकर उसी में समाधि दी गई .
सनद रहे कि रीति-रिवाजों के अनुसार किसी व्यक्ति का निधन होने पर उसे समाधि देने के बाद पुन: खोदा नहीं जाता. अगर किसी परिजन की इच्छा हो तो उसकी समाधि के समीप या उस परिसर में समाधि अवश्य दी जाती है लेकिन बाबा आम्टे की पत्नी साधना ताई की इच्छा के अनुरूप बाबा की समाधि पुन: खोद कर उसी में उन्हें समाधि दी गई हैं. हालांकि यह बात साधनाताई के जीवित रहते सामने आती तो वे इसका कारण अवश्य बतातीं लेकिन उनकी इस अनोखी तथा परंपरा के विपरीत व्यक्त की गई इच्छा के पीछे क्या राज है, इसका खुलासा कभी नहीं हो सकेगा.
साधनाताई ने एक और इच्छा व्यक्त की थी कि मृत्यु के बाद उन्हें वही साड़ी पहनाई जाए जो साड़ी उन्होंने अपने बेटे प्रकाश आमटे के विवाह समारोह में पहनी थी. साधनाताई ने अपनी मृत्यु के बाद पहनाई जाने वाली साड़ी पहले ही अलग निकाल कर रख दी थी. इसके बारे में उन्होंने अपने परिजनों को भी बताया था. उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें उसी साड़ी में अंतिम विदाई दी गई.
बाबा आम्टे को हर कदम पर साथ देते हुए उन्हें अखंड रूप से ऊर्जा प्रदान करने वाला नाम था साधना आम्टे. साधनाताई का जीवन पत्नी, मां समेत संवेदनशील प्रेरणाओं के स्नेत की यशस्वी कथा था. साधनाताई के हिस्से में सहनशीलता और प्रकाशमान न रहने की भूमिका आई और उन्होंने इसका दशकों तक सफलता के साथ निर्वहन किया. उनके सहनशील व्यक्त्वि और साथ के वजह से ही आनंदवन, हेमलकसा, भामरागड़, अशोकवन, नागेपल्ली और कासरावद जैसी परियोजनाएं साकार हो पाईं.
जब साधना ताई का निधन हुआ तब वाकई आनंदवन फिर एक बार अनाथ हो गया हैं .आनंदवन की यह साधना चले जाने से वाकई आनंदवन दुःख की गर्त में खोया हैं.
बताया जाता है कि तत्कालीन समय में महारोगियों को लेकर समाज में कई कुंठाएं थीं,लेकिन बाबा आम्टे महारोगियों की सेवा करना चाहते थे. इस दौरान उन्होंने अपने मन की बात साधना आम्टे को बताई, जिसके बाद इन्होने ने उनसे कहा था 'आप अपने दिल की बात सुनें. मुझे आपके साथ चलने में ही खुशी महसूस होगी'. इसके बाद बाबा की राह आसान हो गई. उसके बाद ही जून 1951 में बाबा आम्टे ने पत्नी साधना आम्टे, दो छोटे-छोटे पुत्रों विकास तथा प्रकाश और एक गाय, कुत्ता और 14 रु. लेकर आनंदवन की नींव रखी, जो आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुका है. इसके पीछे बाबा आम्टे की मेहनत तथा लगन और कुछ करने की इच्छा थी तो साधना आम्टे का समर्पण और सहयोग था.
'मेरे मरने के बाद कहीं अन्यत्र अंत्येष्टि करने के बजाय मुझे वहीं तथा उसी जगह समाधि दी जाए जिस जगह बाबा आम्टे चिर निद्रा में लीन हैं.' यह इच्छा साधना आम्टे ने जीवित रहते बाबा आम्टे के सामने उस समय व्यक्त की थी जब बाबा आम्टे नर्मदा बचाओ आंदोलन में भाग लेकर आनंदवन लौटे थे. पति की समाधि खोदकर उसी में समाधि दी गई .
सनद रहे कि रीति-रिवाजों के अनुसार किसी व्यक्ति का निधन होने पर उसे समाधि देने के बाद पुन: खोदा नहीं जाता. अगर किसी परिजन की इच्छा हो तो उसकी समाधि के समीप या उस परिसर में समाधि अवश्य दी जाती है लेकिन बाबा आम्टे की पत्नी साधना ताई की इच्छा के अनुरूप बाबा की समाधि पुन: खोद कर उसी में उन्हें समाधि दी गई हैं. हालांकि यह बात साधनाताई के जीवित रहते सामने आती तो वे इसका कारण अवश्य बतातीं लेकिन उनकी इस अनोखी तथा परंपरा के विपरीत व्यक्त की गई इच्छा के पीछे क्या राज है, इसका खुलासा कभी नहीं हो सकेगा.
साधनाताई ने एक और इच्छा व्यक्त की थी कि मृत्यु के बाद उन्हें वही साड़ी पहनाई जाए जो साड़ी उन्होंने अपने बेटे प्रकाश आमटे के विवाह समारोह में पहनी थी. साधनाताई ने अपनी मृत्यु के बाद पहनाई जाने वाली साड़ी पहले ही अलग निकाल कर रख दी थी. इसके बारे में उन्होंने अपने परिजनों को भी बताया था. उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें उसी साड़ी में अंतिम विदाई दी गई.
बाबा आम्टे को हर कदम पर साथ देते हुए उन्हें अखंड रूप से ऊर्जा प्रदान करने वाला नाम था साधना आम्टे. साधनाताई का जीवन पत्नी, मां समेत संवेदनशील प्रेरणाओं के स्नेत की यशस्वी कथा था. साधनाताई के हिस्से में सहनशीलता और प्रकाशमान न रहने की भूमिका आई और उन्होंने इसका दशकों तक सफलता के साथ निर्वहन किया. उनके सहनशील व्यक्त्वि और साथ के वजह से ही आनंदवन, हेमलकसा, भामरागड़, अशोकवन, नागेपल्ली और कासरावद जैसी परियोजनाएं साकार हो पाईं.
जब साधना ताई का निधन हुआ तब वाकई आनंदवन फिर एक बार अनाथ हो गया हैं .आनंदवन की यह साधना चले जाने से वाकई आनंदवन दुःख की गर्त में खोया हैं.
1 टिप्पणी:
बाबा आम्टे की पत्नी साधनाताई का निधन।
सर, उनका नाम आम्टे लिखा जाता था।
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/123935/1/0
http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/remembrance/1002/09/1100209104_1.htm
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