‘सर्वोत्तम खेती, मध्यम व्यापार, कनिष्ठ नोकरी’ यह मुहावरा हमारे समाज में काफी प्रचलित था| लेकिन आज यह स्थिति बिलकुल उलटी हो गयी हैं| खेती का महत्त्व कम होता जा रहा हैं| जो खेती कर रहें हैं उनको कई कृत्रिम समस्याओं के साथ प्राकृतिक विपदाओं का सामना करना पड रहा हैं| खेती को लेकर काफी नकारात्मक सोच बन रहीं हैं| शायद इसी कारण से किसान आत्महत्या का प्रश्न दिन ब दिन काफी जटिल होता जा रहा हैं| चंद्रपुर जिलें के भद्रावती तहसील की अवस्था इससे हटकर नहीं हो सकती| उद्योग की दृष्टी से भरा यह तहसील खेती विकास में काफी पिछडा हैं| 73,256 वर्ग किमी क्षेत्रफल वालें इस तहसील में कुल 164 गाँव हैं जिनकी 70 पंचायते हैं और दो लाख से भी ज्यादा जनसंख्या वाले इस तहसील में 76 प्रतिशत लोग साक्षर पायें जाते हैं| अपनी जमीन औद्योगिकरण के लिए दे या फिर खेती करें इस द्विधा अवस्था में यहाँ का किसान हैं| सीसीएल कोयला खदान, बैद्यनाथ विद्युत प्रकल्प, और अन्य कई बड़े-बड़े प्रकल्पों कि वजह से यहाँ रोजगार तो हैं लेकिन प्रदूषण कि समस्या बढ़ गयी हैं जो खेती के लिए हानिकारक हैं|
ऐसी ही कई समस्याएँ नंदोरी क्षेत्र में पायी जाती हैं| इस परिसर में काफी कोयले कि खदाने हैं| भद्रावती से लगभग 15 किमी और वरोरा से 6 किमी दूर नंदोरी यह गाँव बसा हैं| चंद्रपुर-यवतमाल हायवे पर बसे नंदोरी गाँव में उतरते ही ‘शिक्षण महर्षि स्व.श्रीहरी जीवतोडे कृषि तंत्र विद्यालय’ दिखाई देता हैं| हायवे से लगभग डेढ़ किमी दूर बसे नंदोरी गाँव की आधी कच्ची और आधी पक्की सड़के गाँव के विकास का परिदृश्य सामने रखती हैं| लगभग 1500 से भी ज्यादा जनसंख्या वाले इस गाँव में खेती पर निर्भर 70 प्रतिशत समाज हैं| गाँव में कई जाती के लोगों का निवास हैं लेकिन कुनबी मराठा जाती का समाज अधिक हैं| रोजगार गारंटी योजना के अंदर गाँव में बहुत काम हुए लेकिन रोजगार ना मिलने के कारण सभी काम सालभर से बंद हैं| मजदूरी का प्रमाण काफी ज्यादा हैं खेती में पुरुष मजदूर को 200 रु वहीँ महिला मजदूर को 150 रु तक रोजगार प्राप्त होता हैं| आधुनिक तंत्रज्ञान के आने के बाद भी ज्यादातर किसान खेती परंपरागत प्रक्रिया से ही करते हैं| यहाँ के लोग काफी परम्परावादी और पुराथनपंथी हैं गाँव में हर रोज प्रवचन, भजन जैसे कार्यक्रम किये जाते हैं| वहीँ शिक्षा का प्रमाण भी काफी अधिक हैं भद्रावती और वरोरा दोनों तहसील पास होने के कारण लगभग 75 प्रतिशत लोग साक्षर हैं| शायद इसिलिए बेटा 20 से25 साल का होने तक बाप को उसकी परवरिश करनी पड़ती हैं| पिछले साल अतिवृष्टि के कारण कई फसलों का नुकसान नंदोरी में हुआ उसका मुआवजा घोषित तो हुआ लेकिन मिला नहीं| कपास,सोयाबीन, गेहूँ आदि फसलों का प्रमुखता से निर्माण करने वाले इस गाँव में ग्रामीण विकास बैंक और को-ऑपरेटिव बैंक जैसी दो बैंक हैं जिससे सरकारी योजनाओं के अनुसार लेन-देन की व्यवस्था चलती हैं| इन जैसे तमाम समस्याओं के साथ अन्य कई कारणों की वजह से पिछले 10 सालों में 12 आत्महत्याएँ हुई हैं जिनमे से दो किसान आत्महत्या थी|
22 नवंबर 2009 को संतोष बाजीराव निखाडे ने कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या कर ली| गाँव के एकदम किनारे पर पुराने मिट्ठी के मकान में अपने बूढ़े माँ-बाप, पत्नी, और दो बच्चों के साथ संतोष रहता था| हालाँकि कुछ पारिवारिक कारणों की वजह से संतोष के ही घर में उसके दो भाइयों ने आत्महत्या कर ली थी| संतोष का छोटा भाई गणेश ने रेल के आगे अपनी जान दे दी वही पिंटू ने फांसी लगाकर हालाँकि इसके स्पष्ट कारण पता नहीं चल सकें| इस स्थिति में अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ पुरे परिवार की जिम्मेदारी संतोष पर आ गयी | संतोष अपनी चार एखड खेती के साथ दूसरों की खेती ठेके पर लेकर करने लगा| इसके लिए संतोष को कई बार कर्ज लेना पडा| प्राथमिक क्रेडिट संस्था का 12 हजार रु कर्ज के साथ संतोष ने कई अन्य कर्ज ले लिए| लेकिन संतोष को विश्वास था कि अपने खेती से नहीं लेकिन ठेके खेती से तो फसल अच्छी आएगी| लेकिन संतोष के सपने पर हंगामी बारिश ने पानी फेर दिया अगस्त-सितम्बर तक बारिश ही नहीं हुई और सारी फसल बर्बाद हो गयी| फसल तो खत्म हो गयी लेकिन कर्ज बढ़ गया था और इसी कर्ज के बोझ तले दबे संतोष ने 22 नवंबर 2009 को खेत में ही जहर पीकर आत्महत्या कर ली| भलेही तमाम कागजोंकी की पूर्तता के बाद सरकार की एक लाख की मदत संतोष के घरवालों को प्राप्त हुई उसकी आत्महत्या को पात्र करार दिया गया ,लेकिन अपने पीछे दो मासूम बच्चे ,बूढ़े माँ-बाप और निराधार पत्नी के जीवन को अपात्र कर संतोष चला गया|
इसी गाँव में तीन साल पहले शालिक जीवतोडे नाम के किसान ने भी आत्महत्या की थी| 45 वर्षीय शालिक जीवतोडे ने भी अपने जीवन को तमाम कर्जों के बोझ तले खत्म कर दिया था| जिसके कारण आज उसके बेटे को ना पढ़ने का मौका मिला ना आगे बढ़ने का उसके साथ के सभी लड़के पढकर अच्छी नोकरी करने लगे लेकिन इसको अपना जीवन मजदूरी के कामों में लगाना पड़ा. क्या करता वह बाप के मारने के बाद माँ सहित सभी परिवार की जिम्मेदारी इसीके कंधे पर आ गयी थी|
गौरतलब बात यह हैं कि ‘कृषि का तंत्र सिखाने वाला विद्यालय’ नंदोरी में स्थापित हैं लेकिन गाँव के किसानों को ही तंत्र सिखाने में अक्षम हैं| गाँव के सरपंच सोमेश्वर आत्राम कहते हैं ‘उस कॉलेज का गाँव से कोई लेना-देना नहीं हैं |वहाँ से पढकर ग्रामसेवक, तलाठी की नोकरी मिलती हैं ऐसा हमने सुना हैं,बाकि कुछ नहीं’|
22 नवंबर 2009 को संतोष बाजीराव निखाडे ने कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या कर ली| गाँव के एकदम किनारे पर पुराने मिट्ठी के मकान में अपने बूढ़े माँ-बाप, पत्नी, और दो बच्चों के साथ संतोष रहता था| हालाँकि कुछ पारिवारिक कारणों की वजह से संतोष के ही घर में उसके दो भाइयों ने आत्महत्या कर ली थी| संतोष का छोटा भाई गणेश ने रेल के आगे अपनी जान दे दी वही पिंटू ने फांसी लगाकर हालाँकि इसके स्पष्ट कारण पता नहीं चल सकें| इस स्थिति में अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ पुरे परिवार की जिम्मेदारी संतोष पर आ गयी | संतोष अपनी चार एखड खेती के साथ दूसरों की खेती ठेके पर लेकर करने लगा| इसके लिए संतोष को कई बार कर्ज लेना पडा| प्राथमिक क्रेडिट संस्था का 12 हजार रु कर्ज के साथ संतोष ने कई अन्य कर्ज ले लिए| लेकिन संतोष को विश्वास था कि अपने खेती से नहीं लेकिन ठेके खेती से तो फसल अच्छी आएगी| लेकिन संतोष के सपने पर हंगामी बारिश ने पानी फेर दिया अगस्त-सितम्बर तक बारिश ही नहीं हुई और सारी फसल बर्बाद हो गयी| फसल तो खत्म हो गयी लेकिन कर्ज बढ़ गया था और इसी कर्ज के बोझ तले दबे संतोष ने 22 नवंबर 2009 को खेत में ही जहर पीकर आत्महत्या कर ली| भलेही तमाम कागजोंकी की पूर्तता के बाद सरकार की एक लाख की मदत संतोष के घरवालों को प्राप्त हुई उसकी आत्महत्या को पात्र करार दिया गया ,लेकिन अपने पीछे दो मासूम बच्चे ,बूढ़े माँ-बाप और निराधार पत्नी के जीवन को अपात्र कर संतोष चला गया|
इसी गाँव में तीन साल पहले शालिक जीवतोडे नाम के किसान ने भी आत्महत्या की थी| 45 वर्षीय शालिक जीवतोडे ने भी अपने जीवन को तमाम कर्जों के बोझ तले खत्म कर दिया था| जिसके कारण आज उसके बेटे को ना पढ़ने का मौका मिला ना आगे बढ़ने का उसके साथ के सभी लड़के पढकर अच्छी नोकरी करने लगे लेकिन इसको अपना जीवन मजदूरी के कामों में लगाना पड़ा. क्या करता वह बाप के मारने के बाद माँ सहित सभी परिवार की जिम्मेदारी इसीके कंधे पर आ गयी थी|
गौरतलब बात यह हैं कि ‘कृषि का तंत्र सिखाने वाला विद्यालय’ नंदोरी में स्थापित हैं लेकिन गाँव के किसानों को ही तंत्र सिखाने में अक्षम हैं| गाँव के सरपंच सोमेश्वर आत्राम कहते हैं ‘उस कॉलेज का गाँव से कोई लेना-देना नहीं हैं |वहाँ से पढकर ग्रामसेवक, तलाठी की नोकरी मिलती हैं ऐसा हमने सुना हैं,बाकि कुछ नहीं’|
( निलेश झालटे )
स्वतंत्र पत्रकार (09822721292 )
स्वतंत्र पत्रकार (09822721292 )
1 टिप्पणी:
देश के अन्नदाताओं की हालत देश के राजनीतिबाजों की नीतियों ने खराब कर दी है...
एक टिप्पणी भेजें