बिहार के लोकायुक्त बिल के प्रारूप पर चर्चा के लिए आयोजित सर्वदलीय बैठक में कोई सहमति नहीं बन सकी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में दो घंटे से ज्यादा चली बैठक में विपक्ष ने कई आपत्तियां की। लगभग समूचे विपक्ष ने केंद्र के लोकपाल बिल के आने का इंतजार करने का सुझाव दिया। मुख्यमंत्री ने विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में लोकायुक्त बिल लाने की बात कही। जबकि विपक्ष व्यापक चर्चा के बाद बजट सत्र में बिल लाने का पक्षधर है।
बिल के प्रारूप में मुख्यमंत्री के चयन समिति अध्यक्ष और उनके द्वारा नामजद मंत्री के सदस्य होने पर राजद-लोजपा को आपत्ति है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और लोजपा के प्रधान महासचिव राघवेंद्र कुशवाहा ने कहा कि चयन में आरक्षण होना चाहिए। आरोप साबित नहीं होने पर शिकायतकर्ता के विरुद्ध छह माह की सजा और एक लाख के जुर्माने के प्रावधान पर भी दोनों नेताओं ने आपत्ति जताई। साथ ही अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के पहले सरकार की अनुमति का भी विरोध किया।
लोकायुक्त बिल के मौजूदा प्रारूप को कांग्रेस ने दंत-नख विहीन करार दिया। विधायक दल नेता सदानंद सिंह ने उत्तराखंड के सशक्त लोकायुक्त बिल का अध्ययन और केंद्र के लोकपाल बिल का इंतजार करने की मांग की। भाकपा के बद्रीनारायण लाल ने कहा कि बिल के प्रारूप में शिकायतकर्ताओं को काफी डरा दिया गया है। भाजपा भी बिल से सहमत नहीं दिख रही। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सीपी ठाकुर ने लोकायुक्त को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखने का सुझाव दिया। सभी लोगों के बहुमूल्य सुझाव आए हैं। मंत्रिमंडलीय उपसमिति विचार कर प्रारूप को अंतिम रूप देगी। कैबिनेट की मंजूरी के बाद विधेयक आएगा।
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