अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अब तक का सबसे बड़ा रोबोट आधारित खोजी अंतरिक्ष यान क्यूरिओसिटी मंगल ग्रह की यात्रा पर रवाना हो गया। यह इस बात का पता लगाने की कोशिश करेगा कि क्या कभी इस लाल ग्रह पर जीवन था।
आकार में एक कार के बराबर और एक टन वजनी क्यूरिओसिटी यान में लेजर किरणें हैं जो उपयोगी चट्टानों को चूर-चूर कर सकती हैं। इसमें ऐसे उपकरण लगे हैं जो इन चट्टानों का विश्लेषण कर सकेंगे। नासा की इस ड्रीम मशीन में एक रोबोट चालित भुजा, खुदाई करने वाली मशीन और दो रंगीन वीडियो कैमरों समेत विज्ञान के 10 उपकरणों का एक सेट लगा है। इसमें लगे सेंसर उसे मंगल ग्रह के मौसम और वातावरण में विकिरण के स्तर के बारे में रिपोर्ट और महत्वपूर्ण आंकड़े नासा को भेजने में मदद करेंगे। नासा भविष्य में मानव मिशन की योजना बना रहा है, जिसके लिये ये आंकड़े बेहद जरूरी हैं।
मार्स साइंस लेबोरैटरी (एमएसएल) के नाम से मशहूर यह अंतरिक्ष यान स्थानीय समयानुसार सुबह 10 बजकर दो मिनट पर एटलस वी राकेट के जरिये करीब नौ महीने की मंगल यात्रा पर रवाना हो गया। सफेद धुएं का गुबार छोड़ता यह अंतरिक्ष यान जैसे ही फ्लोरिडा के आकाश की ओर रवाना हुआ वैसे ही नासा के कमेंटेटर जार्ज डिलेर ने कहा, एटलस वी राकेट क्यूरिओसिटी के साथ रवाना हो गया जो मंगल ग्रह पर जीवन की पहेली का हल जानने के लिये सबूतों की तलाश करेगा।
पृथ्वी के सबसे नजदीकी पड़ोसी ग्रह पर खोजबीन के लिये बनाई गई अब तक की इस सबसे आधुनिक मशीन के निर्माण और प्रक्षेपण पर कुल ढ़ाई अरब डॉलर का खर्च आया है और इसे नासा के एक ड्रीम मशीन की संज्ञा दी गई है। क्यूरिओसिटी खोजी यान परमाणु ईंधन से संचालित है और यह वर्ष 2004 में नासा द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गये सौर ऊर्जा से संचालित दो यानों स्प्रिट और अपरच्यूनिटी से दो गुना बड़ा है। वैज्ञानिकों को आशा है कि यह यान मंगल ग्रह के अतीत, वर्तमान और भविष्य में रहने की संभावनाओं के बारे में जरूरी सूचनायें वैज्ञानिकों को देगा, जिससे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को संभवत: वर्ष 2030 के दशक में वहां मानव मिशन भेजने की योजना में मदद मिलेगी। इस खोजी यान में जिंदा जीवों के बारे पता लगाने की क्षमता नहीं है लेकिन यह जैविक कार्बन के नमूनों का पता लगा सकता है जो इस बात का संकेत देंगे कि कभी मंगल ग्रह पर जीवन था या अब भी यह सूक्ष्म जीवों के रूप में विद्यमान है।
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