बीजेपी और लेफ्ट के तगड़े विरोध की अनदेखी करके लोकपाल का मसौदा तैयार कर रही स्टैंडिंग कमेटी ने 24 घंटे के भीतर ग्रुप-सी पर यूटर्न ले लिया। ग्रुप सी में देश के करीब 57 लाख सरकारी कर्मचारी शामिल हैं।
वर्तमान मसौदे के मुताबिक 57 लाख सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्ट आचरण की जांच का अधिकार लोकपाल का नहीं होगा। ये वो सरकारी कर्मचारी हैं जो सरकारी दफ्तरों में फाइलें हैंडल करते हैं और अक्सर घूस की जहरीली बेल इनसे ही निकलती है। इन कर्मचारियों को पहले दिन स्टैंडिंग कमिटी की बैठक में लोकपाल के दायरे में लाया गया था और 24 घंटे बाद उन्हें मसौदे से बाहर निकाल दिया गया। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और बीएसपी के सदस्यों ने कहा कि उन्हें पहले ये पता ही नहीं था कि ग्रुप सी में कौन से कर्मचारी आते हैं। अब जब उन्हें ये पता चल गया है तो वे नहीं चाहते कि ये कर्मचारी लोकपाल के दायरे में रहें।
राजनीति में अचानक ही यूं ज्ञान चक्षु नहीं खुलते हैं न बंद होते हैं, इस यूटर्न के पीछे कांग्रेस या सरकार की सोची समझी रणनीति है। सूत्रों की मानें तो बीजेडी के नेता पिनाकी मिश्रा ने कमेटी की बैठक में सबसे पहले ग्रुप सी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने पर एतराज जताया था। उन्होंने कहा कि इन कर्मचारियों की संख्या इतनी बड़ी है कि उसके मामलों को संभाल पाना अकेले लोकपाल के बस में नहीं होगा। उनका ये बोलना था कि कांग्रेस के सदस्यों ने भी हां से हां मिलाना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि क्यों न ग्रुप सी कर्मचारियों को सीवीसी के दायरे में रख दिया जाए और सीवीसी हर दो महीने में अपनी रिपोर्ट लोकपाल को सौंप दे। लेकिन ये प्रस्ताव विपक्ष को मंजूर नहीं था।
सूत्रों के अनुसार लोकपाल स्टैंडिग कमेटी के रुख में आए बदलाव के पीछे कांग्रेस का दबाव है। बुधवार को कमेटी की बैठक के बाद अभिषेक मनु सिंघवी और कानूनमंत्री सलमान खुर्शीद ने कांग्रेस कोर ग्रुप के साथ मुलाकात की थी। कोर ग्रुप ने ग्रुप सी को लोकपाल के दायरे में लाने का विरोध किया। जिसके बाद गुरुवार की बैठक में इस मुद्दे पर बनी सहमति टूट गई। वैसे, इस बैठक में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने पर कोई चर्चा नहीं हुई। इस मसले को संसद पर ही छोड़ दिया गया है।
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