संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने सरकार की मांग रखते हुए गूगल, याहू और फेसबुक के भारतीय प्रतिनिधियों से मुलाकात की.सरकार चाहती है कि इन साइट पर सेंसरशिप के बाद ही कोई चीज अपलोड की जाए. हालांकि कपिल सिब्बल ने साफ किया कि सरकार अपनी तरफ से किसी भी सेंसरशिप की तैयारी नहीं कर रही है लेकिन इन कंपनियों से उम्मीद करती है कि वह खुद अपने अंदर स्वनियंत्रण की व्यवस्था बनाएं.
बताया जा रहा है कि सरकार ने अपनी बात के समर्थन में पिछले कुछ महीनों के क्लिपिंग इन कंपनियों को दिखाई है, जिसमें धार्मिक और व्यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा रही है. लेकिन इन कंपनियों के यूजर्स और उनके द्वारा लिखे जा रहे कंटेंट की संख्या करोड़ों में है. ऐसे में किसी भी तरह के इंटरनेशनल रेगुलेशन को लागू कर पाना तकरीबन असंभव माना जा रहा है.
सोशल नेटवर्किंग पर शिकंजा कसने की सरकारी कोशिश का दिल्ली में बैठे अमेरिकी अधिकारियों ने विरोध किया है. हाल ही में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने ऊपर डाले गए कमेंट के आधार पर कई वेबसाइट के खिलाफ आपत्तिजनक चीजें छापने के विरोध में एफआईआर भी दर्ज करा रखी है. अगर केंद्र सरकार की चली तो फेसबुक या दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट पर आपकी मनचाही बात नहीं छपेगी. केंद्र सरकार इंटरनेट पर सेंसर लगाना चाहती है. सरकार चाहती है कि उपभोक्ता जो कुछ भी लिखता है उसकी पहले पड़ताल है यानी सरकार को अगर कंटेंट गलत लगेगा तो वह नहीं छपेगा. हालांकि पहले दो दौर की बातचीत में कंपनियां इस मांग को नकार चुकी हैं.
मिडिल ईस्ट की क्रांति और देश में लोकपाल के मुद्दे पर अन्ना हजारे टीम को जनसमर्थन मिलने में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का बड़ा योगदान रहा है. इसी के मद्देनज़र दुनिया भर की सरकारों की तरह केंद्र सरकार भी चिंतित नज़र आ रही है. आईटी एक्ट को सरकार पहले ही कठोर बनाने का संकल्प ले चुकी है. कंपनियां फिलहाल ना नुकुर कर रही हैं लेकिन अगर कानून बनता है या कोर्ट का कोई आदेश आता है तो कंपनियों को मजबूर होकर सरकार की मर्जी से कंटेंट छापने होंगे.
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