डरबन में चल रहे जलवायु सम्मेलन में भारत ने जोर देकर कहा है कि जलवायु से जुड़ी वार्ताओं का केंद्र समानता होना चाहिए। भारत ने शनिवार को ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के लिए ज्यादा कुछ न करने के लिए विकसित देशों की आलोचना भी की। उसने सम्मेलन में मौजूद देशों से भावुक अपील की, जिसमें उसके 1 अरब 20 करोड़ लोगों के आधारभूत विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए मदद की मांग की गई।
आलोचनाओं के बीच सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहीं केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री जयंती नटराजन ने 194 देशों से आए प्रतिनिधियों से कहा कि भारत वार्ता की राह में रुकावट नहीं पैदा कर रहा है। उसकी कानूनी पर तौर पर बाध्यकारी संधि पर सहमत न होने के लिए आलोचना की जा रही है। यूरोपीय यूनियन (ईयू) ने एक संधि की पेशकश की है, जो कि कानूनी तौर पर बाध्यकारी है। अमेरिका और चीन समेत भारत पर इस पर हस्ताक्षर करने का दबाव है। प्रस्तावित संधि पर 2015 तक हस्ताक्षर होने हैं और यह 2020 में लागू होगी।
नटराजन ने कहा, 'मैं कनाडा से आए साथी की टिप्पणियां सुनकर हैरान और परेशान हूं। वह हमारी तरफ इशारा कर रहे हैं कि हम इस रोडमैप के खिलाफ क्यों हैं? मैं यह जानकर परेशान हूं कि महज 14 साल पहले की गई एक कानूनी तौर पर बाध्यकारी संधि को अब नकारा जा रहा है। जिन देशों ने इस पर हस्ताक्षर किया था और इसे मंजूर किया था, अब वे बगैर किसी शिष्टाचार के इससे पीछे हट रहे हैं। बावजूद इसके दूसरों की तरफ उंगली उठा रहे हैं।' नटराजन के कड़े शब्दों का तालियों के साथ स्वागत किया गया। उन्होंने बाद में कहा कि यह तथ्यात्मक, भावनात्मक बयान है।
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