आज ही के दिन मिथिला के विभूति श्री लल्लन प्रसाद का जन्म हुआ था . लल्लन जी एक ऐसे नाटककार, कलाकार थे जिसने बहुत ही कम समय में मिथिला और मैथिली नाटक को एक नई दिशा दी. श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर ने अपनी स्कूली शिक्षा मधुबनी के "वाटसन स्कूल" से पूरी कर अपनी इंजीनियरिंग की पढाई एम आई टी मुजफ्फरपुर से की . बचपन से ही उन्हें गाने एवम नाटक का शौक रहा और सदा अपने विद्यालय में अव्वल आने के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी उतनी ही रूचि लेते.
"श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर" पेशे से अभियंता थे और टाटा स्टील, जमशेदपुर में में कार्यरत रहते हुए हिन्दी एवम मैथिली नाटक को नई दिशा दी. उनमे निहित साहित्यिकार उन्हें सदा साहित्यिक सृजन को उत्प्रेरित करता रहा, जो उन्हें आंतरिक ख़ुशी देती थी.श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर सामाजिक मुद्दों को बहुत ही सहज ढंग से अपने नाटक द्वारा दर्शकों तक पहुँचा देते. वे सदा अपने ही लिखे नाटक का मंचन करते थे और अपने नाटक में मुख्य भूमिका के साथ उस नाटक के संगीतकार और गीतकार भी खुद ठाकुर रहते थे. एक व्यक्ति में इतने सारे गुण विरले देखने को मिलता है. लल्लन प्रसाद ठाकुर ने बहुत ही कम समय में कई हिन्दी एवम मैथिली नाटक लिखे हैं. मैथिली नाटक तो आज भी मिथिला के गांवों और शहरों में बहुत ही लोक प्रिय है और बार बार उसका मंचन किया जाता है.
लल्लन जी की एक रचना :
सब सपना बन के मिले, कोई अपना बन के मिले ।
सुख जब साथी होता है,
लाख सहारे मिलते हैं,
फूलों की फुलवारी में,
फूल हमेशा खिलते हैं,
विरानो के आँगन में ,
बरसों में एक फूल खिले।
सब सपना बनके मिले कोई अपना बन के मिले।
सुख की उजली राहों पर,
हर राही चल सकता है,
घर की चारदीवारी में,
हर दीपक जल सकता है,
गम की तेज़ हवाओं में,
कोई कोई दीप जले।
सब सपना बन के मिले कोई अपना बन के मिले।
आबादी में चैन कहाँ,
ऐ दिल चल तनहाई में,
शायद मोती हासिल हो,
सागर की गहराई में,
अपना कोई मीत नहीं,
धरती पर आकाश तले।
सब सपना बन के मिले, कोई अपना बन के मिले।
गीतकार : लल्लन प्रसाद ठाकुर
संगीतकार लल्लन प्रसाद ठाकुर
ऐसे विभूति को आज आर्यावर्त परिवार हार्दिक श्रद्धाँन्जलि अर्पित करता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें