उच्चतम न्यायालय ने मई 2010 में हुए मंगलोर विमान हादसे में मारे गये सभी 158 लोगों में से प्रत्येक के परिवार को कम से कम 75 लाख रुपये का मुआवजा दिये जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को केंद्र और एयर इंडिया को नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने केंद्र और राष्ट्रीय विमानन कंपनी को इस पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा। इस मामले की अंतिम सुनवाई अब अप्रैल में होगी। अदालत ने यह आदेश मोहम्मद रफीक सलाम की याचिका पर दिया जिनके बेटे की इस हादसे में मौत हो गई थी। सलमान का बेटा दुबई में काम करता था और हादसे के दिन घर लौट रहा था।
सलाम ने केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें प्रत्येक पीड़ित के परिवार को कम से कम 75 लाख रुपये मुआवजा दिये जाने की बात कही गई थी। याचिकाकर्ता की तरफ से वरीष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अदालत से अनुरोध किया कि पीड़ितों के परिवार वालों को मोंट्रिअल समझौते के अनुसार मुआवजा दिया जाना चाहिये जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किया है।
मोंट्रिअल समझौते के मुताबिक याचिकाकर्ता एक लाख रुपये के विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) मुआवजे के हकदार होते हैं। एसडीआर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा जारी किये जाते हैं और एक लाख एसडीआर करीब 75 लाख रुपये होता है। 22 मई, 2010 को दुबई से आ रहे एयर इंडिया के विमान में 158 यात्री और चालक दल के सदस्य सवार थे और इसके एक पंख के मंगलोर के केंजर में एक पहाड़ी से टकरा जाने के बाद उसमें आग लग गई थी। जुलाई 2011 में केरल उच्च न्यायालय की एक एकल न्यायाधीश की पीठ ने सलाम की याचिका पर सुनवाई करते हुए व्यवस्था दी थी कि एयर इंडिया को एक लाख एसडीआर देना होगा।
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