उम्र को लेकर उठे विवाद से नाराज सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह सरकार को शीर्ष अदालत में घसीट सकते हैं। रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को जनरल सिंह की जन्म के वर्ष में बदलाव करने की उनकी शिकायत खारिज कर दी। जन्म वर्ष में बदलाव खारिज हो जाने से यह साफ हो गया है कि सिंह अब 31 मई 2012 को रिटायर हो जाएंगे। सेना प्रमुख अदालत जा सकते हैं
कुछ दस्तावेजों के मुताबिक जनरल सिंह की जन्म तिथि 10 मई 1950 है तो कुछ के मुताबिक यह 1951 है। मंत्रालय के आदेश का मतलब वी के सिंह का जन्म 1950 में हुआ होगा और इसलिए उन्हें इस साल रिटायर होना होगा। यदि ऐसा नहीं होता तो उन्हें एक साल और सेना प्रमुख बने रहने का मौका मिलता और 2013 में रिटायर होना होता।
सेना प्रमुख मंत्रालय की बात इतनी आसानी से मानने के मूड में नहीं दिखाई देते हैं। अलग-अलग मीडिया में सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक सिंह इसे 'सम्मान की लड़ाई' मान कर कानूनी विकल्प आजमा सकते हैं। शिकायत खारिज होने के बाद जनरल सिंह के पास सुप्रीम कोर्ट या आर्म्ड फोर्सेज ट्राइब्यूनल में जाने का विकल्प बचता है। हालांकि सिंह रिटायर होने से भी इनकार नहीं कर रहे हैं। लेकिन उनका कहना है कि वह नौकरी के लिए नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की लड़ाई के रूप में इस मुद्दे को देखते हैं। ऐसी भी खबर है कि जनरल सिंह कानूनी सलाहकारों से राय ले रहे हैं।
अब देखना है कि अदालत में सरकार को घसीटने से पहले सेना प्रमुख अपना पद छोड़ने की जरूरत पड़ती है या नहीं। कानून के जानकारों के मुताबिक रक्षा मंत्रालय के फैसले को छह महीने के भीतर और 31 मई से पहले कानूनी तौर पर चुनौती देने का विकल्प है। यदि जनरल सिंह सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाते हैं तो देश के इतिहास में ऐसी पहली बार होगा जब कोई सेना प्रमुख सरकार के आदेश को चुनौती देगा।
जनरल सिंह ने आधिकारिक दस्तावेजों में अपनी जन्मतिथि 10 मई 1950 की जगह 10 मई 1951 करने के लिए आवेदन दिया था जिसका एटार्नी जनरल ने स्टडी किया। इसके बाद उन्होंने अपनी अनुशंसा रक्षा मंत्रालय को भेजी। मंत्रालय ने एटार्नी जनरल की अनुशंसा पर अपना फैसला सेना प्रमुख को भेजा कि उनकी शिकायत खारिज की जाती है।
एक कानूनी जानकार के मुताबिक, ‘चार पूर्व चीफ जस्टिस ने जनरल सिंह के उम्र के दावे का समर्थन किया है। सेना प्रमुख कानूनी सलाहकारों की टीम से संपर्क में हैं। यदि वो सेवा में रहते हुए सरकार के फैसले को चुनौती देते हैं तो इसका व्यापक असर पड़ेगा। सेना प्रमुख का अभियान उनके सम्मान और न्याय की लड़ाई बन चुका है। यदि उन्हें इस अभियान में जीत मिलती है तो सैन्य बलों का हौसला बढ़ेगा।’
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