उम्र विवाद को लेकर अदालती लड़ाई लड़ रहे सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह को शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा झटका लगा। न्यायालय ने उन्हें वह याचिका वापस लेने के लिए बाध्य किया जिसमें उन्होंने सरकारी रिकार्ड में अपनी जन्मतिथि 10 मई 1950 के बजाय 1951 माने जाने की मांग की थी। न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा और एच. एल. गोखले ने उन्हें झटका देते हुए यह साफ कर दिया कि उनकी जन्मतिथि 10 मई, 1951 के बजाय 10 मई, 1950 ही मानी जाएगी, जैसा कि उनके विद्यालय त्याग प्रमाण-पत्र में अंकित है।
न्यायमूर्ति लोढ़ा और न्यायमूर्ति गोखले ने कहा, "हमारे समक्ष सवाल वास्तविक जन्मतिथि निर्धारित करने का नहीं है, बल्कि यह मुद्दा अधिकारी के सेवा रिकार्ड में सरकार द्वारा किसी विशेष जन्मतिथि को मान्यता देने से सम्बंधित है।" फैसले के दौरान अदालत का कक्ष खचाखच भरा था जिसमें 100 वकील व अन्य लोग मौजूद थे। सभी लोग सरकार के खिलाफ सेना प्रमुख की लड़ाई की इस अप्रत्याशित घटना को उत्सुकता से देख रहे थे। न्यायालय ने जनरल सिंह से दो टूक कहा कि या तो वह सरकार के आदेश के चुनौती देने वाली याचिका वापस ले लें या उसे खारिज कर दिया जाएगा। इसके बाद उन्होंने याचिका वापस ले ली।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से महान्यायवादी जी.ई. वाहनवती ने न्यायालय को बताया कि इसके तीन फरवरी के निर्देश के आधार पर सरकार ने अपना 30 दिसम्बर का आदेश वापस ले लिया है, जिसमें अपनी जन्मतिथि 10 मई, 1950 के बजाय 10 मई, 1951 मानने से सम्बंधित सेना प्रमुख की वैधानिक शिकायत खारिज कर दी गई थी। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि सेना प्रमुख को वर्ष 2008 तथा 2009 के अपने उन पत्रों का सम्मान करना चाहिए, जिसमें उन्होंने अपने जन्म का वर्ष 1950 स्वीकार किया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि सेना प्रमुख के जन्म का वर्ष 1950 मानने के सरकारी फैसले में बदनीयती नहीं दिखती। जनरल सिंह के प्रति सरकार में किसी तरह का पूर्वाग्रह नहीं है। सरकार को उनमें पूरा भरोसा है।
इस बीच, रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "हम खुश हैं कि मामले का समाधान आपसी सहमति से हो गया और यह यहीं समाप्त हो गया।" जनरल सिंह के वकील पुनीत बाली ने न्यायालय परिसर में संवाददाताओं से कहा कि मामले का 'सम्मानजनक' समाधान हो गया। उन्होंने कहा कि महान्यायवादी वाहनवती का यह कहना जनरल सिंह की संतुष्टि के लिए काफी है कि सरकार ने उनकी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाए। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख बार-बार कहते रहे हैं कि उनकी लड़ाई 'ईमानदारी व सम्मान' के लिए है, न कि इस साल 31 मई को समाप्त हो रहे कार्यकाल के विस्तार के लिए। हम इसी की लड़ाई लड़ रहे थे और अब इसका समाधान "परस्पर सहमति व सम्मानजनक तरीके से हो गया है। हम इस मामले को और तूल देना नहीं चाहते.. यह मुद्दा समाप्त हो गया।"
इस बीच, केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सेना प्रमुख जनरल सिंह को मनाने का प्रयास किया और उनसे पद न छोड़ने की अपील की। जनरल सिंह ने जब वह याचिका वापस ले ली जिसमें उन्होंने आधिकारिक रिकार्डो में अपनी जन्मतिथि में सुधार कर 10 मई 1951 रखने की मांग की थी, तब महान्यायवादी जी.ई. वाहनवती ने सर्वोच्च न्यायालय में उनसे पद न छोड़ने की अपील की। वाहनवती ने अदालत से कहा कि सरकार को किसी भी स्थिति में सेना प्रमुख की सत्यनिष्ठा और योग्यता पर संदेह नहीं है। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख की याचिका का विरोध करने का सरकार का निर्णय उनकी नेतृत्व क्षमता पर संदेह को प्रतिबिंबित नहीं करता।
उधर, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सेना प्रमुख के उम्र विवाद को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और सवाल किया कि इस विवाद पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुप्पी क्यों साधे रहे। पार्टी प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, "यह दुखद घटना है..जिस मुद्दे का हल बंद कमरे में आपसी बातचीत से हो सकता था उसे सार्वजनिक रूप देने की नौबत नहीं आने देनी चाहिए थी।"
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