मशहूर उर्दू शायर शहरयार का यहां सोमवार को अपने निजी आवास पर निधन हो गया। 76 वर्षीय शायर कुछ दिनों से बीमार थे। पेशे से प्राध्यापक शहरयार को वर्ष 1981 में बनी फिल्म 'उमराव जान' के गीतों की रचना से नई पहचान मिली थी। वह ज्ञानपीठ सहित कई पुरस्कारों से नवाजे गए थे। शहरयार के निधन की जानकारी मिलते ही समूचे साहित्य जगत में शोक छा गया। उन्हें मंगलवार को अलीगढ़ में ही सुपुर्दे खाक किया जाएगा।
शहरयार का मूल नाम कुंवर अखलाक मुहम्मद खान है, लेकिन उन्हें उनके तखल्लुस यानी उपनाम 'शहरयार' से ही पहचाना जाता रहा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हरदोई में हुई थी। 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया था। वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए।
शहरयार ने हिंदी फिल्म 'गमन', 'अंजुमन' और 'आहिस्ता-आहिस्ता' के लिए भी गीत लिखे थे, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता 'उमराव जान' के गीतों से मिली। वर्ष 2008 के लिए 44वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गए शहरयार का जन्म 16 जून 1936 में बरेली के आंवला में हुआ था। उर्दू साहित्य जगत में एक विद्वान शायर के तौर पर उनकी अलग ही पहचान थी। अपनी रचनाओं में वह आधुनिक युग की समस्याओं पर रोशनी डालते रहे।
यह शहरयार की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उनके लिखे गीत 'इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं', 'जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने', 'दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए', 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता' आम लोगों की जुबान पर चढ़ गए। उर्दू शायरी को नए मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
उनकी प्रमुख कृतियों में 'इस्म-ए-आजम', 'ख्वाब का दर बंद है', 'शाम होने वाली है' तथा 'मिलता रहूंगा ख्वाब में' शामिल हैं। वह अच्छे हॉकी खिलाड़ी और एथलीट भी थे।
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