डिप्टी सीएम के मूड में नहीं भाजपा व कांग्रेस आलाकमान।
देहरादून। उत्तराखण्ड की तीसरी निर्वाचित होने जा रही सरकार को लेकर और मुख्यमंत्री पद के लिए लॉबिंग तेज हो गई है। सत्ताधारी दल डिनर डिप्लोमेसी के सहारे निर्दलीय विधायकों के साथ साथ सत्ताधारी दल व विपक्ष के बागी विधायकों को भी अपने पाले में मिलाने का खेल शुरू हो गया है हालांकिं उत्त्राखण्ड में भाजपा के सत्ता वापसी के संकेत बेहद कम नजर आ रहे हैं लेकिन इसके बाद भी भाजपा सत्ता में वासपी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती इसी के चलते डीनर डिप्लोमेसी का खेल शुरू हो चुका है। सूत्रों की मानें तो सत्ताधारी दल के आला लेता ऐसे कुछ बागियों को बीते दो दिन पूर्व एक डीनर भी दे चुके हैं, ताकि ये बागी सरकार बनाने के लिए आवश्यक गणित जुटा सकें।
छह मार्च को भले ही प्रदेश के सीएम खंडूरी राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप देंगे और इसी दिन प्रदेश की राज्यपाल सबसे बड़े राजनैतिक दल को सरकार बनाने के लिए बुलाएंगी। वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर के कारण कांग्रेस सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में उभर कर सामने आती हुई देखी जा रही है और इसी राजनैतिक दल के साथ निर्दलीय विधायक भी अपना समर्थन देते हुए नजर आयेंगे। क्योकि सरकार बनाने के लिए किसी भी राजनैतिक दल को बहुमत के आधार पर 36 सीटें विधानसभा में चाहिए होंगी। 2007 की निर्वाचित सरकार को सरकार बनाने के लिए जनता ने 35 सीटें विधानसभा की दी थी और एक निर्दलीय विधायक राजेन्द्र सिंह भण्डारी के समर्थन दे देने के बाद प्रदेश मे ंभाजपा की सरकार बन गई थी। लेकिन वर्तमान परिस्थितियां परिसीमन के आधार पर बदल गई हैं जिस कारण राजनीतिक विश्लेषक उत्त्राखण्ड में कांग्रेस को 32 से 37 सीटांे के साथ सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप आता बता रहे हैं। इसके अलावा राजनैतिक विश्लेषको का मानना है कि भाजपा 22 से 25 सीटों को लेकर दूसरा राजनैतिक दल बनकर उभरेगा और विपक्ष में बैठने के लिए भाजपा को मजबूर होना पड़ेगा लेकिन विपक्ष में बैठने के लिए नेता प्रतिपक्ष को लेकर अभी से ही भाजपा के भीतर घमासान तेज हो गया है और भाजपा संगठन के साथ साथ हाइकमान भी उत्तराखण्ड के नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर भाजपा दिग्गजों पर अपनी नजर बनाने में जुट गया है।
सत्ता में कांग्रेस की वापसी को लेकर अधिकारी वर्ग के साथ साथ कर्मचारियो में भी कयास तेज हो गए हैं और वर्तमान में प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी परिवर्तन के कारण अभी से कमर कसती हुई नजर आ रही हैै। 5 साल तक भाजपा शासन में तवज्जो ना मिल पाने के कारण अब ऐसे अधिकारी कांग्रेस के संपर्क में आते हुए देखे जा रहे हैं जिनका वजन नई सरकार के बाद बढ़ना तय है। हालाकि 6 मार्च को उत्त्राखण्ड की तीसरी निर्वाचित सरकार का फैसला जनता के सामने प्रस्तुत हो जाएगा और इसके बाद मुख्यमंत्री को लेकर तस्वीर भी साफ हो जाएगी। उत्त्राखण्ड मे कांग्रेस वर्तमान परिस्थितियो के अनुसार सरकार बनाती हुई देखी जा रही है राज्य की 12 एससीएसटी विधानसभा सीटों को लेकर कांग्रेस का ग्राफ इन सीटों पर सबसे अधिक नजर आता हुआ बताया जा रहा ळै। 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास महज दो विधानसभा की सीटों के साथ अपना वजन था लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की 12 विधानसभा सीटो में से कांग्रेस को 10 सीटो पर जीत का सेहरा बंधता हुआ देखा जा रहा है । राजनैतिक विश्लेषको के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस बसपा के ग्राफ को दलित कार्ड के सहारे ही रोकने में कामयाब हो सकती है और यदि 2012 के विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस को उत्त्राखण्ड की एससीएसटी की 10 सीटें मिलती है तो यह कांग्रेस के लिए उत्त्राखण्ड में बेहद मजबूत नींव होगी। 2007 के अनुसार उत्तराखण्ड में कांग्रेस के पास महज जहां दो सीटे थी।
वर्तमान में केन्द्र में बैठी कांग्रेस सरकार उत्तराखण्ड में एम पी को लेकर कोई छेड़छाड़ करने के मूड में नजर नही आ रही क्योकि कांग्रेस के पास वर्तमान में बैसाखियो के सहारे केन्द्र सरकार चलाने की मजबूरी है और ऐसे में उत्त्राखण्ड के मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस किसी भी एमपी पर दांव कतई नहीं खेलेगी जिससे साफ हो जाता है कि कांग्रेस जीते हुए विधायकों मे से ही प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनती हुई नजर आयेगी। ऐसे में लाटरी किसकी खुलेगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है। वहीं राजनैतिक विश्लेषक भी मानते है कि उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस प्रदेश के पांचो सांसदो में से किसी को भी इस पद पर बैठाने का जोखिम नही लेगी क्योकि किसी भी सांसद को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने के बाद कांग्रेस को दो चुनाव करवाने पड़ेगे और 2014 को लेकर कांग्रेस बेहद गम्भीर नजर आ रही है। इसके अलावा उधमसिंह नगर से कांग्रेस के उपनेता तिलकराज बेहड़ तथा हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक ने भी तराई सेडिप्टी सीएम बनाए जाने की मांग भी जिस तरह से उठाई है उसे लेकर कांग्रेस के साथ ही भाजपा हाइकमान बेहद गम्भीर नजर आ रहा है और माना जा रहा हैै कि उत्तराखण्ड में इस तरह की बातों को कांग्रेस किसी भी कीमत पर दबाव के चलते पूरा करने के मूड में नजर नही आ रही। उत्तराखण्ड में वर्तमान में निर्दलीय विधायकांे पर भी लगातार राजनैतिक दलो की निगाहें लगी हुई है।
राजेन्द्र जोशी
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