बिहार दौरे पर आये केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने मंगलवार को कहा कि बेहतर निगरानी, सोशल ऑडिट और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अंकेक्षण से मनरेगा और इंदिरा आवास योजना में कथित भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।
रमेश ने कहा कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय का सालाना खर्च करीब 88500 करोड़ रुपये है और हमने इसके खर्च का मूल्यांकन सीएजी से कराने का निर्णय लिया है। निगरानी, सोशल ऑडिट और सीएजी के मूल्यांकन से भ्रष्टाचार रोकने में मदद मिलेगी।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान का उल्लेख करते हुए रमेश ने कहा कि मुख्यमंत्री ने बिहार में मुखिया और अन्य पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों द्वारा मनरेगा और इंदिरा आवास योजना के राशि का दुरुपयोग करने और उससे महंगे वाहन खरीदने की बात कही है। तीन महीने पहले भी नीतीश कुमार ने यह बात दुहरायी थी। हमारा मानना है कि राज्य सरकार भी अपने स्तर से कठोर निगरानी रखे तो मनरेगा और इंदिरा आवास योजना की राशि के दुरुपयोग पर रोक लगेगी। उन्होंने कहा कि मनरेगा और इंदिरा आवास योजनाओं में भ्रष्टाचार की बात बहुत चिंताजनक है। मनरेगा एक मांग पर आधारित योजना है। केंद्र सरकार राज्यों के मांग के आधार पर राशि प्रदान करती है।
रमेश ने मनरेगा के संबंध में बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों के पिछड़ने पर अफसोस जताते हुए कहा कि मनरेगा बिहार, उडीसा और झारखंड जैसे अत्यंत गरीब राज्यों के लिए है लेकिन अफसोस है आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की तुलना में ये राज्य पिछडे हैं। हम गरीब राज्यों को खर्च के लिए मदद नहीं देंगे तो और किसे देंगे।
केंद्रीय मंत्री रमेश ने कहा कि आंध्र प्रदेश ने बेहतर मांग और उपयोगिता के कारण केंद्र से एक साल में करीब आठ हजार करोड़ रुपये लेने में सफलता प्राप्त की जबकि जरूरतमंद होते हुए भी बिहार ने केवल तीन हजार करोड़ रुपये लिये।
मनरेगा के संबंध में बिहार के प्रदर्शन पर एक प्रश्न के जवाब पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मैं यहां कोई प्रमाण-पत्र देने नहीं आया हूं। बिहार, उत्तर प्रदेश, उडीसा, झारखंड और छत्तीसगढ जैसे राज्य केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्राथमिकता सूची में हैं। पश्चिम और दक्षिण भारत के राज्य की तुलना में इन राज्यों में आधारभूत संरचना की कमी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इन राज्यों के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगी।
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