केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने ग्रामीण विकास के लिए राज्यों को अधिक स्वतंत्रता दी जाने की वकालत की है। उनका कहना है कि ग्रामीण विकास योजनाओं के लिए आवंटित राशि का 50 प्रतिशत खर्च करने की स्वतंत्रता राज्यों को दी जानी चाहिए। यह बात उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष भी रखी है।
केरल के तीन दिवसीय दौरे पर पहुंचे रमेश ने ग्रामीण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में परिवर्तन की आवश्यकता जताई ताकि विकास के पैमाने पर पिछड़े राज्यों की तुलना में विकसित राज्यों को इसका अधिक से अधिक लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि मौलिक परिवर्तन की आवश्यकता है..
राज्यों को अधिक स्वतंत्रता दी जाने की जरूरत है। नियम दिल्ली में बनते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के समक्ष मैंने यह सुझाव रखा है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत से ग्रामीण विकास अनुदान की 50 प्रतिशत राशि राज्यों को दी जानी चाहिए। अलापुझा जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) पर एक सम्मेलन में रमेश ने कहा कि ग्रमीण विकास कार्यक्रम 'लचीले' नहीं, बल्कि 'अत्यधिक जटिल' हैं। मेरा सुझाव यह है कि वर्ष 2017 से ग्रामीण विकास अनुदानों की 50 प्रतिशत राशि निश्चित तौर पर राज्यों को दी जानी चाहिए।
रमेश ने कहा कि ग्रामीण विकास योजनाएं पिछड़े राज्यों को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं, जो केरल जैसे राज्यों की आवश्यकता को नहीं दर्शाती, जहां साक्षरता दर सबसे अधिक है और जमीन से जुड़े प्रभावी संगठन भी हैं। उन्होंने इस पर जोर दिया कि राज्यों को अपनी प्राथमिकता के अनुसार अनुदान राशि खर्च करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। सम्मेलन में केरल के ग्रमीण विकास मंत्री के. सी. जोसेफ ने भी शिरकत की और ग्रामीण विकास योजनाओं पर राज्यों को अधिक अधिकार देने की मांग की। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की विभिन्न ग्रामीण विकास योजनाओं पर हर साल करीब 90,000 करोड़ रुपये खर्च करता है।
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