भारतीय वैज्ञानिकों ने भारत के वैज्ञानिक माहौल में व्यापक बदलाव लाने और वैज्ञानिकों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर दृढ़ता दिखाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को श्रेय दिया है। अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका 'साइंस' में यह बात सामने आई है। पत्रिका का 24 फरवरी का अंक जो 'साइंस इन इंडिया' पर केंद्रित है, उसके मुताबिक, "डींगे मारने वाली भारत की शक्तिशाली नौकरशाही जैसी चुनौतियों के बावजूद कई भारतीय अनुसंधानकर्ता जिन्होंने विदेशों में पढ़ाई की और अन्य देशों में प्रयोगशलाएं खोलीं वे अब स्वदेश लौटने लगे हैं।"
पत्रिका के लेखकों रिचर्ड स्टोन एवं पल्लव बागला के मुताबिक, "भारत के वैज्ञानिक माहौल में व्यापक बदलाव का ज्यादातर श्रेय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को है, जो अंतरिक्ष एवं परमाणु विज्ञान को ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक क्षेत्र को मजबूत बनाना चाहते हैं। भारत में विज्ञान को केंद्र सरकार का व्यापक समर्थन प्राप्त है।" स्टोन एवं बागला द्वारा लिखित 'इंडिया राइजिंग' लेख में वर्ष 1974 के भारत के पहले परमाणु परीक्षण से लेकर विज्ञान के आधुनिक इतिहास के बारे में बताया गया है। लेख में बताया गया है कि भारत विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़े केंद्र के रूप में उभर रहा है।
दोनों लेखकों ने बताया है कि दशकों तक संसाधनों के अभाव से जूझने वाले भारतीय वैज्ञानिक अब सरकार की ओर से दी जा रही सुविधाओं और वित्तीय राहत का लाभ उठा रहे हैं। मनमोहन सिंह ने पिछले महीने वादा किया कि सरकार वर्ष 2017 तक देश के अनुसंधान एवं विकास पर खर्च को दोगुने से अधिक करेगी। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों की स्वदेश वापसी के लिए देश में विशेष विश्वविद्यालय और अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन की तर्ज पर एक अनुदान एजेंसी की स्थापना की घोषणा की।
पत्रिका के मुताबिक भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक रघुनाथ रमेश माशेलकर के ने कहा, "अकादमिक गलियारों में मनमोहन सिंह एक विद्वान एवं विचारक हैं।" पत्रिका के मुताबिक वर्ष 1991 से 1996 तक देश के केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में सिंह ने सुधारों की शुरुआत की और इन सुधारों ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की कतार में ला खड़ा किया।
2 टिप्पणियां:
आज भारत में अगर स्थतियां बेहतर हो रही हैं तो इन्ही हांकने वाले नौकर शाहों के रहते हो रही हैं व इन तथाकथित बुद्धिजीवियों के, जरूरत के समय साथ न देने के बावजूद ये स्थतियां बेहतर हो रहीं हैं. अब ये चले आ रहे हैं गाल बजाते. पहले मौक़े का फ़ायदा उठाने विदेश भागे अब बहां हालात बिगड़े हैं एवं भारत में बेहतर हैं तो भारत में लौट कर एहसान किस पर जता रहे हैं. बरसाती मेंढक हैं ये.
आज भारत में अगर स्थतियां बेहतर हो रही हैं तो इन्ही हांकने वाले नौकर शाहों के रहते हो रही हैं व इन तथाकथित बुद्धिजीवियों के, जरूरत के समय साथ न देने के बावजूद ये स्थतियां बेहतर हो रहीं हैं. अब ये चले आ रहे हैं गाल बजाते. पहले मौक़े का फ़ायदा उठाने विदेश भागे अब बहां हालात बिगड़े हैं एवं भारत में बेहतर हैं तो भारत में लौट कर एहसान किस पर जता रहे हैं. बरसाती मेंढक हैं ये.
एक टिप्पणी भेजें