उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार को नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना को समयबद्ध तरीके से लागू करने का निर्देश दिया और इसकी योजना एवं क्रियान्वयन के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया।
प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि परियोजना में पहले ही देरी से इसकी लागत में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि केंद्र तथा संबंधित राज्य सरकारों को समयबद्ध तरीके से इसे प्रभावी रूप से लागू करने में भाग लेना चाहिए।
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति एके पटनायक भी हैं, ने अनेक सरकारी विभागों, मंत्रालयों के प्रतिनिधियों, विशेषज्ञों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की उच्चाधिकार प्राप्त समिति की नियुक्ति परियोजना पर विचार करने और उसे लागू करने के लिए की है। समिति में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री, इस मंत्रालय के सचिव, पर्यावरण और वन मंत्रालय के सचिव तथा जल संसाधन मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, योजना आयोग और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नियुक्त चार विशेषज्ञ सदस्य शामिल होंगे।
समिति में राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, दो सामाजिक कार्यकर्ता और मामले में अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार भी शामिल होंगे। पीठ ने कहा कि हम केंद्र सरकार को नदियों को जोड़ने के लिए तत्काल एक समिति के गठन का निर्देश देते हैं। पीठ ने कहा कि हम समिति को परियोजना को लागू करने का निर्देश देते हैं। समिति परियोजना को लागू करने की योजना बनाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस परियोजना में देरी के नतीजतन पहले ही इसकी लागत में बढ़ोतरी हुई है।
नदियों को जोड़ने की परियोजना का मूल विचार राजग सरकार के समय आया था और अक्टूबर, 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस साल भीषण सूखे की पृष्ठभूमि में इस परियोजना के लिए एक कार्यबल का गठन किया था। केंद्र द्वारा नियुक्त एक कार्यबल ने अपनी रिपोर्ट में परियोजना को दो भागों प्रायद्वीपीय और हिमालयी चरणों में बांटने की सिफारिश की थी। प्रायद्वीपीय भाग में दक्षिण भारत की नदियां होंगी। इस भाग में महानदी और गोदावरी से अतिरिक्त जल को पेन्नार, कष्णा, वैगाई तथा कावेरी में प्रवाहित करना शामिल होगा।
हिमालयी भाग में गंगा और ब्रहमपुत्र और भारत तथा नेपाल में इनकी मुख्य सहायक नदियों पर जलाशय बनाना शामिल है। कार्यबल ने यह भी कहा था कि देश में नदियों को जोड़ने से 2050 तक सभी तरह की फसलों के लिए सिंचाई क्षमता बढ़कर 16 करोड़ हेक्टेयर हो जाएगी। जबकि सिंचाई के परंपरागत स्रोतों से अभी अधिक से अधिक करीब 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि को सींचा जा सकता है।
मुख्य नदियों को 2016 तक जोड़ने के लिए पांच लाख करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना का भविष्य एक तरह से अधर में है और इसकी विस्तत परियोजना रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी है। कार्यबल ने केरल और कर्नाटक की पश्चिम दिशा की ओर बह रहीं नदियों के जल को पूर्व की ओर मोड़ने, पश्चिमी तट से तापी के दक्षिण और मुंबई के उत्तर में बहने वाली छोटी नदियों को आपस में जोड़ने और यमुना की दक्षिण में सहायक नदियों को जोड़ने का भी प्रस्ताव रखा।
कार्यबल ने कोसी-घागरा, कोसी-मेछ, घागरा-यमुना, गंडक-गंगा, यमुना-राजस्थान, राजस्थाऩ-साबरमती, शारदा-यमुना, फरक्का-सुंदरवन, ब्रहमपुत्र-गंगा, सुवर्णरेखा-महानदी और गंगा-दामोदर-सुवर्णरेखा समेत 14 लिंकों की पहचान की थी।
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