एक महिला के ऊपर हाथ छोड़ने के कारण पटना सिटी एसपी किम सबके निशाने पर आ गयीं, खासतौर पर मिडिया के निशाने पर.कलतक एक महिला अधिकारी होने के नाते एकसाथ कानून व्यवस्था और राजधानी की ट्राफिक व्यवस्था को बखूबी संभालने के कारण किम को मिडिया ने खूब सराहा.उनकी तारीफों के पूल बाँध दिये. लेकिन एक छोटी सी चूक क्या हो गयी, उनकी सारी अच्छाइयां मिडिया ने भुला दिया और उन्हें एक महा खलनायिका साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा. अखबारों में जमकर किम की निंदा की गयी.सोसल साइट्स पर जमकर किम की घेराबंदी की गयी .वाकई किम ने एक महिला पर हाथ छोड़कर एक बड़ी गलती की है.लेकिन ये गलती कैसे हो गयी ? परिस्थितियां क्या थीं ? क्या किम वाकई एक उदंड पुलिस अधिकारी हैं ,उनका जॉब रिकार्ड्स कैसा है ? महिला के ऊपर हाथ छोड़ने की यह भूल कानून व्यवस्था बनाए रखने के दबाव में हुआ या फिर कोई और वजह थी ,इन पहलूओं पर किसी मीडियाकर्मी ने थोडा भी सोच विचार नहीं किया.एक महिला पर हाथ छोड़ने के लिए किम की निंदा की जानी चाहिए लेकिन इस खबर को प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी कि अपराधियों के साथ साथ कानून का डर भी लोगों के मन से ख़त्म हो गया है. हंगामा कर रहे नशे में धूत लम्पटों से निबटने की कोशिश कर रही सिटी एसपी को एक महिला ने थप्पड़ मारा.सिटी एसपी के ऊपर थप्पड़ चलाया जाना, क्या एक छोटी घटना है.? क्या यह साबित नहीं करता है कि लोगों के मन से पुलिस और कानून का भय भी समाप्त हो गया है.? अगर यहीं हाल रहा,पुलिस और कानून का डर जनता के मन से निकल गया तो फिर मुठी भर पुलिसवाले कैसे लाखों करोड़ों की आबादी पर नियंत्रण रख पाएगी.? कानून का डर अगर मन से निकल जाए तो क्या ट्राफिक के चौराहे पर खड़ा एक अदना सा सिपाही या फिर एक मरियल सा दिखानेवाला रमाकांत जैसा इंस्पेक्टर और डीएसपी शहर के खतरनाक लम्पटों को काबू में कर पायेगा.? क्या कोई एसएसपी ,डीएम और सीएम पागलपन पर उतारू भीड़ को काबू में रख पायेगा ? .शहरों में हुदंग और प्रदर्शन कर रहे राजनीतिक दलों के लम्पटों से आम शहरी की रक्षा मुट्ठी भर पुलिस कर पाएगी ?.
मुख्यमंत्री ने विधान परिषद् में किम द्वारा एक महिला के ऊपर हाथ छोड़ने के लिए जनता से सरेआम माफ़ी मांगी .लेकिन मुख्यमंत्री जी को जनता से माफ़ी मांगने के साथ साथ जनता के बीच यह सन्देश भी जरुर दे देना चाहिए कि अपराधियों का डर मन से निकल जाना तो ठीक है,लेकिन कानून का डर नहीं है , यह सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी. .महिला होने के नाते सुजाता देवी को माफ़ कर देना तो ठीक है लेकिन उसी गलती के लिए एक महिला सिटी एसपी को उल्टा लटका देने की व्यग्रता समझ के परे है.यह पहलीबार नहीं हुआ है जब एक पुलिस अधिकारी के गाल पर तमाचा पड़ा है.आये दिन प्रशासनिक अधिकारियों को जनता द्वारा बंधक बनाए जाने और पुलिसवालों की पिटाई किये जाने की खबरे आ रही हैं.यह खतरनाक संकेत है .
पार्लियामेंट्रिक डेमोक्रेसी में तो सिस्टम ही काम करता है.अगर सिस्टम को ही जनता बंधक बनाने लगे तो पार्लियामेंट्रिक डेमोक्रेसी की जगह मोबोक्रेसी ले लेगी . १७९३ में फ़्रांस क्रांति के बाद वहां भी यहीं हुआ था.वहां की डायरेक्टरी शासन पर मोबोक्रेसी का कब्ज़ा हो गया था.कानून मोबोक्रेसी के कब्जे में वहां तबतक रहा जबतक की वहां नेपोलियन के हाथ में सता की बागडोर नहीं आयी.अगर आज हमने सस्ती लोकप्रियता के लिए कानून को ठेंगा दिखानेवाली जनता की निंदा करना छोड़ दें तब तो हमें पार्लियामेंट्रिक डेमोक्रेसी की जगह मोबोक्रेसी के लिए तैयार रहना होगा,जहाँ भीड़ को एक सिपाही नहीं बल्कि चार गुंडे नियंत्रित करेंगें.मैं जनता हूँ, मेरे इस विचार को कुछ लोग सिटी एसपी के बचाव के रूप में देखेंगें.मुझे गालियाँ देकर अपने को प्रो-पीपुल साबित करने का मौका नहीं गवायेंगें क्यूंकि आज तो पत्रकारिता का मतलब ही सिस्टम को गाली देना है,सच्चाई के साथ खड़ा होना नहीं.जो सिस्टम को जितना गाली देता है,वह उतना ही बड़ा बुध्जीवी और तगड़ा पत्रकार माना जाता है.शायद यहीं वजह है कि हम सही बात , दिल की बात अपने मन की बात करने की बजाय वैसी बनावटी बातें करते हैं जिससे जनता के बीच सही खबर भले न जाय ,हमारी जय जय जरुर हो जाए.
(श्रीकांत प्रत्युष)
वरिष्ट पत्रकार,
पटना
1 टिप्पणी:
प्रत्युष जी, पुलिस का तो इतना भय है शरीफ लोगों में कि नाम से ही डरते हैं.
लोगों को पीटने का लाइसेंस किसने दिया पुलिस वालों को.
पुलिस से भय के ही चलते कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो रही है.
एसपी होने का मतलब आम आदमी को पीटने का लाइसेंस.
पुलिस वाले जो रोज जनता को कूटते रहते हैं, उसे आपने नहीं देखा.
कमाल है. आप तो पत्रकार हैं.
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