झारखंड की राजधानी रांची में एक बच्चे की स्कूल में ऐसी पिटाई ऐसी हुई कि बेचारे को सुनाई पड़ना ही बंद हो गया. बच्चे तो बच्चे हैं. शैतानी और नियमों को तोड़ना उनकी फितरत में होता है. अगर बच्चे नियम-कानून और अनुशासन को पूरी तरह अपना ही लें तो वो बच्चे कहां. स्कूल वह जगह है जहां पर बच्चों को पढ़ाई के अलावा अनुसासन में रहना सिखाया जाता है. और ज़िम्मेदारी को निभाते हैं उनके टीचर. कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि टीचर ने खुद अनुशासन तोड़ दिया और बच्चों के साथ वह बर्ताव नहीं किया जो किया जाना चाहिए था.
रांची के सेंट ज़ेवियर्स स्कूल में अमृत नाम के इस छात्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला अमृत अपने दोस्त से बात कर रहा था. क्लास मॉनिटर ने अमृत और दूसरे छात्रों का नाम फादर को दे दिया. बच्चों के बातचीत करने की शिकायत से नाराज़ फादर अपना आपा खो बैठे. उन्होंने मासूम अमृत को जो सज़ा दी उससे बेचारे की ज़िंदगी ही खराब हो गई. फादर ने उसे इतनी ज़ोर से चांटा जड़ा कि बेचारे के बाएं कान से सुनाई पड़ना बंद हो गया.
फादर के सज़ा देने के इस तरीके से किसी को भी गुस्सा आ जाएगा. अमृत की दादी बहुत नाराज़ हैं और स्कूल प्रबंधन से इस बात की शिकायत भी की है. लेकिन प्रबंधन फादर के बचाव में आ गया है और इस घटना को मानने से साफ इंकार कर दिया है. फादर और स्कूल प्रबंधन अमृत के कान में आई खराबी को दूर तो कर नहीं सकते पर अगर इस घटना को स्वीकार करके उसके प्रति संवेदना और हमदर्दी ही जता देते तो शायद उसकी तकलीफ कुछ कम लगती. सेंट ज़ेवियर्स स्कूल के प्रबंधन ने इतनी संवेदनहीनता दिखाई कि दोषी शिक्षक को बच्चे के अभिभावकों के सामने पेश तक नहीं किया.
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