धार्मिक स्थलों को नुकसान और उनके लिए मुआवजे के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को गुजरात विधानसभा के समक्ष नहीं रखने पर नरेंद्र मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने इसे गंभीर त्रुटि और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है।
उच्च न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार ने धार्मिक स्थलों को बहाल करने के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वार्षिक तथा अन्य रिपोर्टों को आज तक विधानसभा में नहीं रखने पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। जबकि उन्हें रिपोर्ट 2005 की शुरुआत में ही मिल गई थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भास्कर भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से इस तरह की गंभीर भूल मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 20 का स्पष्ट उल्लंघन है।
अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की नीति में मुआवजा केवल क्षतिग्रस्त आवासीय एवं व्यावसायिक स्थानों तक सीमित रखना और धार्मिक स्थलों के लिए मुआवजा नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 के तहत मिले बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है। इस नीति से नागरिकों में यह गलत संदेश जाएगा कि धार्मिक स्थानों को खुद बंदोबस्त संभालना चाहिए क्योंकि उन स्थानों में तोड़फोड़ की स्थिति में कोई वित्तीय मदद सरकार की ओर से नहीं मिलेगी।
अदालत ने कहा कि इससे धार्मिक कट्टरपंथी अन्य लोगों पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिहाज से धार्मिक स्थलों एवं कमजोर आर्थिक वर्ग के अन्य उपासना स्थलों को क्षतिग्रस्त करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। अदालत ने इस्लामिक रिलीफ कमेटी ऑफ गुजरात की याचिका पर गुजरात दंगों के दौरान प्रदेश में क्षतिग्रस्त हुए 500 से अधिक धार्मिक स्थलों के लिए मुआवजे का आदेश देते हुए यह टिप्पणी कीं।
अदालत ने फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार को दंगों के दौरान कार्रवाई नहीं करने के मामले में फटकार भी लगाई। इस बीच सरकार के प्रवक्ता और प्रदेश के उर्जा राज्य मंत्री सौरभ पटेल ने कहा कि सरकार उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार मुआवजा देगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें