खण्डित जनादेश के बाद भी उत्तराखण्ड के आवाम को इस बात की उम्मीद थी कि भाजपा जोड़-तोड़कर सरकार बना लेगी, लेकिन भाजपा को अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं रहा तो वह जोड़-तोड़कर कैसे सरकार बना सकती यह अपने आप में दीगर सवाल बनकर राजनीति की फ़िजा में तैर रहा है।
राज्य में कांग्रेस को 32 और भारतीय जनता पार्टी को 31 विधानसभा सीटें देकर प्रदेश की जनता ने खण्डित जनादेश दिया है। ऐसे में प्रदेश के लोगों में यह उम्मीद थी कि भाजपा सरकार बना लेगी, लेकिन भाजपा को तो अपने ही विधायकों से पाला बदलने का खतरा सताने लगा। इतना ही नहीं भाजपा ने खतरे को भांपते हुए अपने सारे विधायक दिल्ली बुला दिए। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को अपनी उस करनी की याद आई जो उसने 2007 में सरकार बनाते वक्त की थी। गौरतलब हो कि 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में जनरल टीपीएस रावत कांग्रेस के टिकट पर धूमाकोट विधानसभा चुनाव जीते थे, जिन्हें भाजपा ने बाद में लोकसभा में भेजने का लालच देकर इस्तीफा करवा दिया था और उनकी जगह पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूडी चुनाव लड़ने के बाद जीत गए थे। लेकिन टीपीएस रावत का वह हाल हुआ जिसे ‘‘न मिला खुदा न मिला बिसाले सनम‘‘ कहा जा सकता है।
अबकी बार फिर चक्र घूमा और कांग्रेस भी भाजपा के नक्शे कदम पर चलते हुए कांग्रेस के विधायकों पर ही डोरे डालने लगी। इसके पीछे कांग्रेस की मंशा यह है कि विधानसभा में उसके 32 विधायकों में से किसी को भी मुख्यमंत्री के स्थान पर चुनाव लड़ने के लिए विवश न किया जाए। वहीं कांग्रेस की यह मंशा भी है कि जैसा भाजपा ने उसके साथ किया था वैसा ही वह भी भाजपा के साथ करे यही कारण है कि भाजपा के आला नेताओं को अपने ही विधायकों का कांग्रेस में जाने का खतरा सालने लगा और उसने आनन-फानन में विधायकों को एक दिन के नोटिस पर दिल्ली बुला लिया ताकि उत्तराखण्ड के विधायक कांग्रेसियों के संपर्क में न रह पाएं। दिल्ली में इन विधायकों को पार्टी की रीति नीति और अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया, लेकिन फिर भी कुछ विधायक ऐसे थे, जो दिल्ली नहीं गए। अब इन विधायकों पर जहां भाजपा के आला नेताओं की नजर लगी हैं, वहीं एक जानकारी के अनुसार ये भाजपा के विधायक कांग्रेसियों के संपर्क में भी हैं। जानकारों का कहना है कि कहीं ऐसा न हो कि भाजपा के विधायक एन वक्त पर कांग्रेस का दामन न थाम लें। चर्चाओं के अनुसार कांग्रेस ने ऐसे विधायकों को दो-दो करोड़ रूपये का ऑफर व लाल बत्ती देने का चुग्गा भी फेंका है। अब यह देखना है कि भाजपा के नेता इन विधायकों को कैसे रोक पाते हैं।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा अपने ही विधायकों पर जब भरोसा नहीं कर रही हो, तो ऐसे में कांग्रेसी नेता कुछ भी कर सकते हैं और यह भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
(राजेन्द्र जोशी)
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