पलायन की मार झेल रहे उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों के हिस्से मात्र चार ही मंत्री आए हैं। जबकि राज्य के मैदानी जिलों से छह मंत्रियों को मंगलवार को शपथ दिलाई गई। बहुगुणा मंत्रिमण्डल में क्षेत्रीय संतुलन बिलकुल नदारद दिखाई दिया। ऐसे में पहाड़ों की पहाड़ जैसी समस्याओं का निराकरण कैसे होगा, यह तो भगवान ही जाने, लेकिन यह जरूर है कि नेताओं को उत्तराखण्ड के नाम पर पांच साल तक राज करने के लिए कुर्सी जरूर इस पहाड़ी राज्य ने दे दी है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस को सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें पहाड़ी जिलों से मिली। ऐसे में पहाड़ की उपेक्षा कांग्रेस को कितनी भारी पडे़गी यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। गढ़वाल के गंगोत्री, बद्रीनाथ, थराली, कर्णप्रयाग, केदारनाथ, रूद्रप्रयाग, नरेन्द्र नगर, प्रताप नगर, चकराता, पौड़ी तथा श्रीनगर विधानसभा सीट क्षेत्र के लोगों ने कांग्रेस को दी, जबकि कुमाउं क्षेत्र की पिथौरागढ़, धारचूला, गंगोलीहाट, कपकोट, अल्मोड़ा, द्वाराहाट, हल्द्वानी, जागेश्वर, चंपावत तथा नैनीताल सीट पर कांग्रेस को चुनकर एक इतिहास बनाया। भाजपा को पहाड़ से केवल 11 सीटें ही मिली हैं। ऐसे में मंत्रिमण्डल के गठन के दौरान क्षेत्रीय संतुलन कांग्रेस नहीं कर पाई और सबसे ज्यादा विधायक देने वाले पर्वतीय जिलों को कांग्रेस ने अपनी सूची से हटा दिया। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रवासी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि जिस तरह पहाड़ से रोजगार की तलाश में बेरोजगार मैदानों की ओर पलायन कर रहे हैं, ठीक उसी तरह अब नेता भी पहाड़ छोड़कर मैदान की ओर चल दिए हैं। इनका कहना है कि पर्वतीय लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, इतना ही नहीं उनका तो यहां तक कहना है कि पर्वतीय जन का राजनैतिक दल केवल चुनाव के समय ही सुध लेते हैं अन्यथा पर्वतीय जन आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है। देहरादून जनपद में दो, टिहरी में एक, उत्तरकाशी में एक, पौड़ी एक, हरिद्वार में एक तथा उधमसिंह नगर में एक, नैनीताल जिले से दो और हरिद्वार से एक मंत्री शामिल हैं।
(राजेन्द्र जोशी)
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