बैसाखियों के सहारे ग्राफ बढ़ाने की चुनौती
उत्तराखण्ड में राजनैतिक ड्रामे पर कैबिनेट मंत्रीमण्डल का गठन होने के साथ ही विराम लग गया है, लेकिन प्रदेश की जनता के बीच कांग्रेस जनता के जनादेश के अनुरूप संदेश देने में नाकामयाब साबित होती दिख रही है। उत्तराखण्ड से लेकर दिल्ली तक चले इस हाइप्रोफाइल राजनैतिक ड्रामे के बाद हरीश रावत, हरक सिंह रावत सहित कई ऐसे नेताओं की वह जमीनी हकीकत भी जनता के सामने उजागर हो गई है, जो खुद को जमीन से जुड़ा नेता बताकर अपने हितों को साधने का काम करते रहे हैं।
उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर मचा घमासान भले ही थम गया हो, लेकिन इस लड़ाई के पीछे जिन राजनेताओं ने जनता के बीच फायदा लेने का ट्रम्प कार्ड खेला वह उन्हीं पर भारी पड़ गया है। अब सोनिया दरबार के बाद यह नेता अपनी राजनैतिक जमीन बचाने के लिए छटपटाते नजर आ रहे हैं। क्योंकि सोनिया दरबार के फैसले को चुनौती देते हुए हरीश रावत कैंप ने जिस तरह कांग्रेस की देश भर के अंदर किरकिरी करवा डाली है, उसकी भरपाई करना कांग्रेस के लिए बेहद कठिन है।
राजनैतिक विश्लेषक भी मानकर चल रहे हैं कि वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप उत्तराखण्ड में यदि चुनाव करा लिए जाए तो यहां भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है, क्योंकि वर्तमान हालात कांग्रेस के खिलाफ नजर आ रहे हैं, इस हाइप्रोफाइल ड्रामे ने कांग्रेस की साख का बट्टा भी लगाया है। यहंा यह बात भी दीगर है कि खण्डित जनादेश के बाद सरकार बनाने को लेकर दौनों ही दलों में इस तरह की स्थिति आनी लाजमी थी। एक सीट के समीकरण के चलते कांग्रेस सरकार बनाने के करीब पहुंची है। हालांकि भाजपा को कांग्रेस के भीतर मची उथल-पुथल से खुश होने की जरूरत नहीं है। राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि यह स्थिति भाजपा के साथ होती तो उनके दल में भी इस तरह का ड्रामा होता।
लेकिन कैबिनेट का गठन हो जाने के बाद कांग्रेस के भीतर उठी विद्रोह की चिंगारी अब थम गई है और कैबिनेट में सभी असंतुष्टो को मनाने के साथ-साथ उन्हें पूरा सम्मान दिया गया है। उत्तराखण्ड में कांग्रेस के लिए पांच साल तक सरकार चलाने के साथ-साथ खुद को साबित करने की भी चुनौती सामने है और खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने के लिए भी कड़ी मेहनत की जानी है। क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप प्रदेश में कंाग्रेस का ग्राफ बेहद नीचे चला गया है और अब सरकार को चलाने के साथ-साथ विकास की बयार पगडंडी के सहारे ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने की कठिन चुनौती कांग्रेस के सामने है।
माना जा रहा है कि कैबिनेट मंत्रीमण्डल विस्तार के बाद कांग्रेस सबको साथ लेकर सरकार चलाने का रोड़ मैप तैयार करने में जुट जाएगी और कांग्रेस हाइकमान भी चाहता है कि पांच साल तक उत्तराखण्ड में सरकार बिना किसी अवरोध के लगातार आगे बढ़ती रहे। 2002 के विधानसभा चुनाव में जनता का जनादेश कंाग्रेस को मिला था और तभी से दिल्ली दरबार का हुक्म उत्तराखण्ड पर चलता हुआ नजर आया। इस कड़ी को 2007 के विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद भाजपा ने भी कायम रखा और दिल्ली दरबार का हुक्म भाजपा की सरकार भी मानती आई पंाच साल तक भाजपा दिल्ली दरबार के सहारे सरकार चलाती नजर आई और पांच मुख्यमंत्री भाजपा की सरकार में ही बदलते हुए नजर आए। जबकि कांग्रेस 2002 में एनडी तिवारी के शासनकाल में पूरा सफर तय कर पाई और अब एक बार फिर दिल्ली दरबार का हुक्म उत्तराखण्ड पर लागू किया गया है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियां पिछले विधानसभा चुनाव के अनुरूप परिवर्तित हैं और सरकार चलाने के लिए कांग्रेस को चार निर्दलीय विधायकों की बैसाखियों के साथ-साथ बसपा का भी सहारा लेना पड़ा है। राजनैतिक विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि उत्तराखण्ड में जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं, वह यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं यदि उत्तराखण्ड की परिवर्तित हो रही राजनीति पर विराम नहीं लगाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब राजनीति दूषित होने के साथ-साथ बेहद गंभीर मुहाने पर आ सकती है। कुल मिलाकर कांग्रेस सरकार को पंाच साल तक बैसाखियों के सहारे अपनी सरकार को चलाने की कठिन चुनौती बनी रहेगी।
(राजेन्द्र जोशी)
1 टिप्पणी:
इटली की बार डांसर आज भारत की मालकिन बनी हुयी है और भारत पर जुल्म कर रही है ! अब इसमेँ क्या कोमेन्ट करेँ?
भारत की जनता इस बात को कब समझेगी ! NO COMMENT IS THE BEST COMMENT
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