फागुनी लोक लहरियों का समापन उत्सव
तीन राज्यों की लोक संस्कृतियों का होता है दिग्दर्शन
सदियों से चला आ रहा है जंगल में मंगल का अनूठा लोकोत्सव
जनजातीय लोक जीवन में उत्सवों-मेलों-पर्वों की आदिकाल से अहम् भूमिका रही है। राजस्थान का दक्षिणांचल ऐसा ही प्रदेश है जो जनताति बहुल होने की वजह से वनवासी लोक संस्कृति का केन्द्र है। प्रत्येक माह कहीं न कहीं लगने वाले मेले में आंचलिक जनजीवन की सम सामयिक धाराओं-उप धाराओं के दिग्दर्शन सहज ही होते हैं वहीं पुरातन परिपाटियांे और लोक परम्पराओं के सजीव चित्रण के लिहाज से ये बेहतर प्रतिदर्श हैं। जनजाति संस्कृति की विलक्षण परम्पराओं भरी अनंत श्रृंखलाओं को अपनी आंखों से देखना और आनंद पाना जीवन का ऐतिहासिक क्षण ही होता है जिसकी झलक और कहीं नहीं पायी जा सकती।
भारतीय परम्परा म चैत्र नव वर्ष का स्वागत आम तौर पर कई पारंपरिक सामाजिक अनुष्ठानों और लोक जीवन के इन्द्रधनुषी रंगों के साथ होता है लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के सरहदी संगम स्थल बांसवाडा जिले म चैत्री नव वर्ष का स्वागत पहाड़ों की गोद म किया जाता है। पाण्डवों के विहार और तपस्या स्थल के रूप म जाने कितने युगों से प्रसिद्ध घोटिया आम्बा के पहाड, पठार और जंगल वर्ष संक्रमण उत्सव के साक्षी रहे ह®। तीनों राज्यों के आदिवासी मेलार्थी घोटिया आम्बा के जंगलों म जमा होते ह® और पाण्डवों की साक्षी म नए संकल्पों के साथ नव वर्ष का स्वागत-अभिनंदन करते ह®।
घोटिया आम्बा तीर्थ पर हर साल होली के पन्द्रह दिन बाद विक्रम संवत् के अंतिम दिन अमावस्या को लगने वाले मेले म इस सीमावर्ती अँचल के हजारों-हजार वनवासी अपने परिवार के साथ यहाँ के जंगलों म आकर सामूहिक रूप से पुराने वर्ष को विदा कर नव वर्ष के स्वागत म जश्न मनाते ह®। मुख्य मेला अमावास्या के दिन 22 मार्च गुरुवार को भरेगा। महाभारतकाल की गाथाओं से सम्बन्ध जोड़ने वाले ढेरों कथानक इस स्थल से जुड़े हुए ह®। यहाँ पाण्डवों का मन्दिर है जिसम घोटेश्वर शिव, पार्वती व गणेश, नन्दी आदि के अलावा पाण्डवों की सात मूर्तियाँ ह® जिनकी श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती ह®।
जाने कितनी सदियों से पाण्डवां की स्मृति म लगने वाला यह मेला आदिवासियों के विराट संगम के कारण ”वनवासियों का कुम्भ“ भी कहा जाता ह®। घोटेश्वर शिवालय के समीप पवित्र धूँणी, आश्रम, गौशाला, हनुमान मन्दिर व वाल्मीकि मन्दिर के अलावा दिव्य आम्र वृक्ष एवं पहाडों के गर्भ से रिसकर आने वाली जलराशि से भरे प्राचीन कुण्ड ह®। यहाँ हर पूर्णिमा को श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है।
शुचिता देता है पाण्डव कुण्ड
मेले में आने वाले लोग पाण्डव कुण्ड म स्नान कर अपने आपको पवित्र महसूस करते हैं। साल में कई अवसरों पर अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन भी इसमें किया जाता है। मेले के दौरान् पवित्र एवं आरोग्यदायी इस कुण्ड म स्थान करने वाले मेलार्थियों का तांता लगा रहता है। इसकी ख़ासियत यह है कि मेले के समापन दिवस अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया को इसका पानी यकायक बढ जाता ह®। यहाँ का नर्मदा कुण्ड बारहोंमास मधुर, शीतल एवं निर्मल पेयजल का स्रोत बना रहता ह®। कई कुण्ड यहाँ बने हुए हैं जो महाभारतकाल मं पाण्डवों के स्नान हेतु प्रयोग म लाए जाते रहे ह®।
दिव्य आम्र वृक्ष
यह° पर पोैराणिक आख्यानों से जुड़ा आम्रवृक्ष मनोकामनापूर्ति करने वाले दिव्य वृक्ष के रूप म प्राचीनकाल से प्रसिद्ध रहा है। जनश्रुति के अनुसार देवराज इन्द्र से प्राप्त गुठली को पाण्डवों ने यहाँ रोपा व यह तत्काल फलों से लदे विशाल आम्र वृक्ष के रूप म परिणत हो गया। इसी दिव्य वृक्ष के फलों के रस से पाण्डवों ने यहाँ श्रीकृष्ण की सहायता से ऋषियों को तृप्त किया और आशीर्वाद पाया।
वंशवृद्धि का सुकून देता है पौराणिक आम्रवृक्ष
खासकर वंशवृद्वि की कामना से लोग घोटिया आम्बा के पौराणिक आम्र वृक्ष की बाधा लेते ह® व कामना पूरी हो जाने पर इस वृक्ष की विषम संख्या म परिक्रमा करते हुए नारियलों का घेरा बनाकर पूजा करते ह®। वृक्ष के चबूतरे पर धूँणी म नारियलों के हवन का क्रम निरन्तर बना रहता है, इससे समूचा परिक्षेत्र सुवासित बना रहता है। चबूतरे पर शिव-पार्वती, नन्दी, वराहवतार आदि मूर्तियाँ ह®।
घोटिया आम्बा के आश्रम म स्थित प्राचीन धँूणी का महत्व भी कोई कम नह° ह®। यह लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती है। संतानप्राप्ति की कामना पूरी होने पर लोग यहाँ आश्रम म धूँणी के सम्मुख छत पर पालना (बाँस से बना शिशु झूला) बाँधते ह®। पास में वाल्मीकि मन्दिर और आश्रम धूंणी हैं जिनमें श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है। मेले के दिनों में साधु-संतों और भगतों का इसमें डेरा लगा रहता है।
मनोरम केलापानी
घोटेश्वर शिवालय से पहाडी रास्तों से होकर एक किलोमीटर दूर दुर्गम केलापानी स्थल है जहाँ महाबली भीम के गदा प्रहार से फूट निकला मनोहारी झरना और सघन वनश्री आच्छादित पहाड़ियाँ असीम आत्मतोष की वृष्टि करती ह®। यहाँ पाण्डवों की मूर्तियाँ व चरण चिह्न के अलावा राम मन्दिर, शिवालय ह® जिनम सीता, लक्ष्मण, राम, शिव-पार्वती आदि की मूर्तियाँ सुशोभित ह®।
पाण्डवों ने घोटिया आम्बा के पठार पर ऋषियों को केलों के पत्तों पर भोेजन परोसा था, उसी परम्परा म केले के झुरमुट यहाँ विद्यमान ह® जिनका दर्शन पुण्यदायक माना जाता है । इसके अलावा ऋषि-भोज से अवशिष्ट चावलों से यहाँ साल के पौधे उग आए। मान्यता है कि इन दुर्लभ चावलों को घर म रखने से बरकत होती है। इसी विश्वास के चलते मेलार्थी दुर्गम पहाड़ी घाटियों पर इन चावलों को ढूँढ़ने म व्यस्त रहते ह® व चावल के दाने मिल जाने पर अपने आपको धन्य समझते ह®।
बरकत देता है औषधीय पवित्र जल
केलापानी स्थल के केन्द्रीय बिन्दु पर पहाड़ों से रिसकर कुण्ड म भरने वाला जल अत्यन्त पवित्र एवं चमत्कारिक है। मेलार्थी इस पानी का आचमन करते ह®। मान्यता है कि इससे दैहिक, दैविक एवं भौतिक प्रकोप शान्त हो जाते ह®। मेले के दिनों म इस दिव्य जल को पाने मेलार्थियों मे होड़ सी मची रहती है। ये लोग बोतलों व बरतनों मे भर कर यह जल घर ले जाते ह® व पूरे परिवार को आचमन कराने के बाद घर मे चारों दिशाओं म छिड़कते ह®।
स्वर्ग म आरक्षण का अनूठा प्रयोग
घोटिया आम्बा एवं केलापानी तीर्थ की यात्रा के दौरान मध्यवर्ती पठार पर दूर-दूर तक काले गोल-मटोल पत्थरों के ढेर दिखते ह®। श्रद्धालु यहाँ से लौटने से पहले इन पत्थरों को एक-दूसरे पर जमाकर प्रतीकात्मक घर बनाते ह®। बहुत पुराने समय से मान्यता चली आ रही है कि ऐसा करने से स्वर्ग म अपने लिए घर का आरक्षण हो जाता है।
होली और फागुन की मस्ती लेती है विराम
घोटिया आम्बा महामेला फागुन का समापन उत्सव होता है। आदिवासी क्षेत्रों में होली से संबंधित आयोजन पन्द्रह दिन तक चलते हैं। इनका समापन घोटिया आम्बा मेले में हो जाता है। इसमें पूरी मस्ती के साथ मेलार्थी आनंद लूटते हैं और मद मस्त होकर पहाड़ों में प्रकृति के साथ रमते हुए जीवन के सभी संत्रासों को भूलकर नए सूरज की अगवानी करते हैं।
(डॉ. दीपक आचार्य)
महालक्ष्मी चौक,
बाँसवाडा-327001(राजस्थान)
सम्पर्क: 9413306077
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