वागड़ की बेटी, विलक्षण चित्रकार नयना उपाध्याय
मुखर है हर बिम्ब
नियति ने उसके साथ इतना बड़ा अन्याय ढाया मगर बुलंद हौसलों से भरपूर इस होनहार ने हार नहीं मानी और अपनी मौलिक प्रतिभाओं को आकार देेते हुए सुनहरे कैनवास रच दिए। यह विलक्षण शख़्सियत है नयना उपाध्याय। बांसवाड़ा जिले के मोटी बस्सी गाँव की रहने वाली गरीब ब्राह्मण परिवार की नयना बचपन से ही बोलने और सुनने में असमर्थ है। इसके बावजूद उसने कभी हार न मानी और ऐसा कुछ कर दिखाया जिसे देख लोग आश्चर्य में डूब जाते हैं। अपनी मनोभावनाओं को कैनवास पर उकेरने में माहिर नयना के चित्रकारिता हुनर को देख हर कोई कायल हो जाता है।
वह खुद नहीं, उसकी कृतियाँ बोलती हैं
वह खुद भले ही बोल और सुन नहीं पाती हो, मगर उसके चित्र वह सब कुछ बयाँ कर देते हैं जो नयना अपने अन्तर्मन में सोचती है। जिस कौशल और विलक्षणता के साथ नयना अपनी दिली कल्पनाओं को मूर्त्तित करती है वह अपने आप में किसी जादुई करिश्मे से कम नहीं है। पड़ोसी गांव आँजना के ही राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से चित्रकला विषय के साथ सीनियर सैकण्डरी तक पढ़ाई करने के बाद नयना ने महाविद्यालयी शिक्षा पाते हुए चित्रकला के क्षेत्र में जबर्दस्त हुनर की छाप छोड़ी। कलम और कूँची-रंगों का कमाल दिखाने वाली नयना उम्दा चित्र बनाने में सिद्धहस्त है और इसी का परिणाम है कि नयना की बनायी पेंटिंग को राजस्थान ललित कला अकादमी ने पुरस्कार के लिए चयन किया और उसे छात्र श्रेणी में पुरस्कार योग्य माना।मोटी बस्सी निवासी मणिलाल उपाध्याय की इस होनहार बालिका ने मूक-बधिर होने की विवशता से कभी हार नहीं मानी। घर के लोगों और परिचितों ने उसे हरसंभव प्रोत्साहन और संबल प्रदान किया। इसी बहुआयामी प्रेरक माहौल ने उसकी प्रतिभाओं को बहुगुणित किया।
रंगों और रेखाओं से जोड़ा जीवन भर का नाता
नयना ने परतापुर के पीएसपी कॉलेज से स्नातक करने के बाद यहीं से चित्रकला विषय में एम.ए.करने का निश्चय किया। योग्य व अनुभवी व्याख्याताओं के मार्गदर्शन में रंगों व रेखाओं के संसार में उसकी रुचि निरन्तर बढ़ती गई। खुद दक्षता पाते हुए नयना ने अपने सहपाठियों को भी अपनी कलात्मक खूबियों का प्रशिक्षण दिया और उन्हें भी आगे बढ़ाया। आज भी वह सिखने और सिखाने के काम में पूरी तल्लीनता से जुटी हुई है।
कला प्रतिभा ने निखारा व्यक्तित्व
चित्रों का संसार आज उसके लिए जीवननिर्वाह में मददगार बना हुआ है और इस हुनर की बदौलत नयना आत्मनिर्भरता के साथ स्वाभिमानी जिन्दगी का सुकून पा रही है। हालांकि कई बार अपनी भावनाओं को व्यक्त न कर पाने या सामने वाले की बात न सुन पाने की बेबसी उसके चेहरे पर कुछ क्षण के लिए झलक जरूर जाती है लेकिन जीवट व्यक्तित्व की धनी नयना का आत्मविश्वास कभी कम नहीं हुआ। धीर-गंभीर कलाकार व्यक्तित्व से परिपूर्ण नयना अब इन सभी से ऊपर उठ चुकी है और उसने निराशाओं पर विजय पाते हुए आत्मतुष्टि से भरा जीवन जीने की कला सीख ली है। तमाम सम-सामयिक विषमताओं के बावजूद नयना ने रंगों के संसार से नाता जोड़ लिया है जहाँ मन की कल्पनाओं के बिम्ब जब कैनवास पर उतरते हैं तब अन्तस् के रंगों का सुनहरा संसार नृत्य करने लगता है।
जादुई हाथों से उतरते हैं सुनहरे बिम्ब
उसके चित्र ही अपने आप में बोलने वाले संसार से कम नहीं हैं जिन्हें लोग अपने-अपने हिसाब से समझ कर सराहते हैं। उसके जीवन का ज्यादातर समय रंगों के संसार में खोया रहता है जहाँ से नित नए बिम्ब निकल कर आकार पाते हैं। कूँची और रंगों का मेल जब कैनवास पर उतरता है तब जादुई लकीरों के साथ सुनहरे बिम्ब उतरने लगते हैं जिनका दिग्दर्शन ही अपने आप में सुकून देने वाला है।
अपने सृजन पर गर्व है नयना को
अधिकतर समय चित्रों के सृजन में रमी रहने वाली नयना को खुशी इस बात की है कि ईश्वर ने जो एक कमी छोड़ी है उसकी एवज में जो दूसरी खूबी दे डाली है वही उसके जीवन की विलक्षणता है और उसे अपनी जिन्दगी पर संतोष है। नयना की कृति को राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर ने भी सराहा और उसे सर्वश्रेष्ठ कृति में सूचीबद्ध किया। यह नयना के साथ ही उसके परिजनों और शिक्षण संस्था के लिए गर्व और गौरव जगाती है।
मानवीय संवेदनाओं का दिग्दर्शन
नयना का शैक्षिक सफर भी कोई कम रोचक नहींे है। परतापुर के पीएसपी कॉलेज में दाखिले के समय प्रथम वर्ष में विद्यार्थियों की संख्या अपेक्षा से कम होने की वजह से चित्रकला विषय का संचालन नहीं होने की जानकारी जब उसे मिली तो नयना कॉलेज की सीढ़ियों पर फफक उठी। महाविद्यालय प्रबन्धक एवं जाने-माने समाजसेवी, चिंतक पूर्व विधायक रमेशचन्द्र पण्ड्या को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने नयना के दर्द पर पसीजते हुए नयना के लिए चित्रकला विषय संचालन का निर्णय लिया। मेधावी चित्रकार नयना उपाध्याय को पीएसपी कॉलेज ने गोद लिया और सभी प्रकार की मदद का इंतजाम किया। नयना इन दिनों पीएसपी कॉलेज में एम.ए. की पढ़ाई कर रही है और उसका समस्त शैक्षणिक खर्च महाविद्यालय प्रबन्धन द्वारा उठाया जा रहा है।
यह संयोग भरी कहानी है कि राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा नयना की जिस चित्रकृति को पुरस्कृत किया गया उसे अकादमी तक भेजने के लिए भी उसके पास पैसे का इंतजाम नहीं था। इस पर महाविद्यालय के व्यवस्थापक विशेष पण्ड्या ने चित्रकला विभाग के व्याख्याता दीपक भट्ट एवं रितेष पारगी को अपनी ओर से राशि दी जिससे उदयपुर जाकर चित्रकृति को फ्रेम करवाकर जयपुर भिजवाया गया।
बहुआयामी संदेश मुखरित करते हैं चित्र
नयना का सृजन भी देखने लायक है। उसके चित्रों में सामाजिक विषमताओं पर करारा प्रहार है वहीं उन्नत समाज एवं सुनहरे परिवेश के लिए संदेश भी समाहित है। चित्रकला के क्षेत्र में उच्चतम शिखरों के स्पर्श का लक्ष्य सामने रखकर अहर्निश सृजन में जुटी नयना अनेक कलाविधाओं में माहिर है। मिट्टी की मनोरम मूर्त्तियाँ बनाने में भी उसका कोई मुकाबला नहीं। शारीरिक विषमताओं के बावजूद देश-दुनिया में पहचान बनाने के सफर में जुटी चित्रकार नयना उपाध्याय उन हजारों लाखों लोगों के लिए प्रेरणा की जीवंत मिसाल है जो किसी न किसी रूप में अशक्त होने के बावजूद आगे बढने के हौसलों के साथ डग भर रहे हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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