उच्च पदों पर प्रोन्नति के मामले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ प्रदान की पहल को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह निर्णय बिना पर्याप्त आंकड़े के किया गया है।
सामान्य श्रेणी के कर्मचारियों की ओर से प्रोन्नति में आरक्षण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार जाति के आधार पर कर्मचारियों को प्रोन्नति देने की पहल को जायज ठहराने के लिए पर्याप्त वैध आंकड़े पेश करने में विफल रही।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूर्व की शर्तों को पूरा नहीं किया गया। जिस बात की दलील जोर-शोर से दी जा रही है कि यह आवश्यक नहीं है क्योंकि प्रोन्नति में आरक्षण पहले से प्रचलन में है। जज दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा कि हम इस दलील को स्वीकार करने को तैयार नहीं है क्योंकि जब संविधान के प्रावधान कुछ शर्तों के साथ वैध माने गए हैं। सरकार के लिए आवश्यक है कि वह इसे आगे बढ़ाए और अमल करें ताकि संशोधनों को परखा जा सके और वह निर्धारित मानदंडों पर खरा उतर सके। इस मामले में कर्मचारियों के एक वर्ग ने उत्तर प्रदेश सरकार के कर्मचारियों की वरीयता संबंधी नियम 1991 की धारा 8ए के प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी थी जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों के उच्च पदों में प्रोन्नति का प्रावधान है।
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