नाकाबिल और अहंकार से घिरे लोगों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है अपने आप को खुदा समझना। ऐसे में इन लोगों की बुद्धि मलीन हो जाती है, विवेक पर परदा पड़ जाता है और स्वस्थ सोच की प्रतिभा समाप्त हो चुकी होती है। इन लोगों के लिए जीवन विकास का सबसे बड़ा माध्यम दिखता है षड़यंत्रों का मायाजाल। प्रतिभा सम्पन्न लोग तो स्वाभिमान के साथ जिन्दगी को आनंद से जी लेने का अभ्यास बना लेते हैं मगर नाकाबिल और निवीर्य लोगों के लिए अपनी पहचान को हमेशा बनाए रखना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है और तभी उन्हें जरूरत होती है छोटे-छोटे समझौते करने की।
ये लोग कभी किसी बड़े आदमी के आगे-पीछे चक्कर काटते रहते हैं, चापलुसी का सहारा लेते हैं, कभी वे अपने आकाओं या सहयोगियों को खुश करने के लिए गलत-सलत काम करते रहते हैं, कभी भ्रष्टाचार और अनाचार में आकंठ डूबने लगते हैं। इन लोगों का एकमेव उद्देश्य यही रहता है कि जिस तरह भी हो सके, अपनी पहचान और अस्तित्व बना रहे। चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े। लगातार शुचिताहीन काम करते-करते इन लोगों के लिए दिन-रात षड़यंत्रों में रमे रहना जीवन की वह सबसे बड़ी मजबूरी हो जाती है जिसे वे न छोड़ पाते हैं न षड़यंत्र इन्हें कभी छोड़ पाते हैं। मरते दम तक षड़यंत्रों के सहारे जानदार बने रहने का इनका शगल कोरोमिन की तरह प्राणवायु देता रहता है।
जिन्दगी भर दूसरों को परेशान करने का लाइसेंस मिले हुए ये लोग हर कहीं कुत्तों और शूकरों की तरह पाए जाते हैं। इन्हें भले ही असामाजिक कहा जाए मगर ऐसी किस्मों के खूब लोग एक साथ जुड़ जाते हैं तब उनका भी अपना समाज बन जाता है। इनके चेहरे-मोहरे भी ऐसे अजीब हो जाते हैं कि बस। अपने आस-पास नज़र दौड़ाएं तो इस प्रजाति के लोग बिना ढूँढ़े मिल ही जाएंगे। इनमें हर तरह के लोग होेंगे। जिन्हें जमाने की नज़र में प्रतिष्ठित माना जा रहा है वे लोग भी होंगे और वे भी जिन्हें कहीं कोई नहीं पूछता, पर इनके षड़यंत्रकारी समुदाय में ये प्रतिष्ठित भीड़ के रूप में वजूद जरूर रखते हैं।
बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका जीवन ही षड़यंत्रों पर ही टिका हुआ है। ये लोग ऐसा नहीं करें तो मर जाएं। यों भी षड़यंत्र वे ही लोग करते हैं जो नाकाबिल और अधमरे होते हैं। षड़यंत्रकारियों में भी कई किस्में हैं। कुछ चुपचाप रहकर ऐसे षड़यंत्र करते हैं जिनके बारे में किसी को भनक भी नहीं पड़ती। दूसरी किस्मों के षड़यंत्रकारी लोग चिल्ला-चिल्ला कर अपनी शेखी बधारते हैं और दुनिया में जो कुछ बुरा-बुरा होता है उसका श्रेय खुद लेने में कभी पीछे नहीं रहते। कुछ ऐसे हैं जो अकेले कुछ नहीं कर सकते हैं, इन्हें पिशाचों और भूतों की तरह सामूहिक षड़यंत्रों की आदत होती है। ये तभी सफल होते हैं जब इनके साथ इनकी करतूतों वाले लोगों का सहयोग हो। इसीलिए कोई षड़यंत्रकारी कभी अकेला नहीं हुआ करता, उसके साथ उसकी हरकतों वाले लोग जरूर रहते हैं।
इन्हीं षड़यंत्रकारी व्यक्तियों के समूहों को मिलाकर ऐसे समुदाय की रचना हो जाती है जो आम समाज के अलग रहकर अहर्निश अपने शिकार तलाशने में लगे रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए न घर-गृहस्थी का कोई मूल्य होता है और न ही सामाजिक ताने-बाने का। षड़यंत्रकारी लोग रोजाना अपडेट रहते हैं। अपने इर्द-गिर्द से लेकर परिवेश और देश-दुनिया में क्या हो रहा है इसके बारे में वे सदैव चिन्तित रहते हैं। इनके लिए न कोई अपना है, न कोई पराया है। इनके अपने हैं तो सिर्फ और सिर्फ वे षड़यंत्र जिनके सहारे उनकी जिन्दगी कट रही है। ऐसे लोगों के पास अपने कामों को करने या ड्यूटी करने की फुर्सत भले न हो, जमाने भर के षड़यंत्रों के लिए इनके पास खूब टाईम होता है। नित नए षड़यंत्रों का ताना-बाना बुनने और इनकी सफलतम परिणति से ही खुश होने वाले ये लोग अपने आप से इतने दूर हो जाते हैं कि दुनिया का कोई नीम-हकीम या तिलस्म इन्हें सुधार नहीं सकता।
एक समय ऐसा आता है जब ये खुद अपने भी नहीं रहते। इन पर भी किसी न किसी का अधिकार हो ही जाता है और तब ये खुद अपने षड़यंत्रों के शिकार होकर मकड़जाल में ऐसे फंस जाते हैं जहां से निकलना चाहते हुए भी ये कभी निकल नहीं पाते और अन्ततः मकड़िया मौत के शिकार हो जाते हैं। छोड़ जाते हैं बद्दुआओं भरे अपने करतूती इतिहास की दास्तान, जिन्हें न कोई सुनना चाहता है, न अमल करना। षड़यंत्र भले ही आज किसी को रास आते हों, आशातीत सफलताओं का अहसास कराते हों, मगर ये आत्मघाती ही हुआ करते हैं। इसे ये लोग आज भले न समझ पाएं, मरने के बाद इनकी नरकगामी भूतयोनि तो समझ ही जाती है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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