कृषि क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि बिहार में औषधीय पौधों की खेती की असीम सम्भावनाएं हैं. इसको ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार अब औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के लिए किसानों को न केवल मदद देगी. बल्कि यह ख्याल भी रखेगी कि किसानों को इससे अच्छी आय प्राप्त हो सके.
राज्य के मधुबनी, सीवान, वैशाली और भागलपुर सहित दियारा इलाके खस की खेती के लिए उपयुक्त हैं तो औरंगाबाद, रोहतास, बेगूसराय और गोपालगंज स्टीविया की खेती के लिए. इसके अलावा भोजपुर, नालंदा और पटना सहित कई इलाकों के लोग एलोवेरा की खेती कर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं.
औषधीय और सुगंधित पौध उत्पादन संघ की बिहार इकाई के सचिव के अनुसार किसानों की आर्थिक तंगी व्यावसायिक किस्म की खेती से दूर की जा सकती है. किसानों में जागरुकता का अभाव है जिस कारण अधिकांश किसान व्यावसायिक खेती और उसके उत्पाद की बिक्री से अनभिज्ञ हैं. राज्य में औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती में विस्तार की असीम सम्भावनाएं हैं. उन्होंने बताया कि राज्य के कई जिलों में अब इस तरह के पौधों की खेती की जा रही है. इस समय करीब 10 से 15 एकड़ से ज्यादा की भूमि पर मेनथा का उत्पादन हो रहा है. यदि सरकार का अपेक्षित सहयोग किसानों को मिले तो औषधीय पौधों की खेती में बिहार कीर्तिमान स्थापित कर सकता है.
बागवानी मिशन के जरिये औषधीय और सुगंधित खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य के सभी 38 जिलों में कार्यक्रम तय हैं. शत-प्रतिशत अनुदान पर 10 नर्सरी तैयार हैं. बिहार बागवानी मिशन के औषधीय पौधों के जानकार डॉ़ ज़े क़े हंडू कहते हैं कि बिहार में औषधीय पौधों के उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ इसकी मांग और कीमतें भी बढ़ रही हैं, जो राज्य के किसानों के लिए शुभ संकेत हैं. दवा और हर्बल कम्पनियां भी प्राकृतिक चीजें अपनाने पर जोर दे रही हैं. औषधीय पौधों के एक जानकार बताते हैं कि बिहार के दियारा इलाके में खस की खेती की जा रही है. खस रस की कीमत 25 हजार रुपये प्रति किलोग्राम मिल सकती है, जिससे अच्छी किस्म की इत्र बनाई जा सकती है.
औषधीय पादप मिशन के नोडल पदाधिकारी ने कहा कि राज्य में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने योजना बनाई है. सरकार किसानों को औषधीय पौधों की श्रेणियों के अनुसार 90 प्रतिशत तक अनुदान देगी. उन्होंने बताया कि किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए भी सरकार गारंटी देगी. खेती के पहले ही किसानों से उत्पाद क्रय का समझौता कर लिया जाएगा. ऐसे में किसानों को खेती करने के बाद उसे बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. सरकार खस, स्टीविया, एलोवेरा, पचौली और गुडची जैसे औषधीय पौधों पर विशेष जोर दे रही है. उनका मानना है कि बंजर भूमि पर भी औषधीय पौधे लगाए जा सकते हैं. स्टीविया के पौधों के बीच पपीते के पौधे लगाकर भी किसान लाभ कमा सकते हैं. एलोवेरा, स्टीविया और खस से जुड़े प्रसंस्करण उद्योग के लिए भी सरकार द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं.
1 टिप्पणी:
Nice post.
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