लार न टपकाएँ, मुफ्त की मिठाई के लिए - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

लार न टपकाएँ, मुफ्त की मिठाई के लिए

जहाँ कहीं किसी की उपलब्धि या सफलता का जिक्र होता है अचानक ऐसे लोगों का अवतरण हो जाता है जो कह उठते हैं-मुँह मीठा कराओ, मिठाई खिलाओ, पार्टी पक्की.... आदि आदि।  खुशी और मिठाई का रिश्ता शाश्वत रहा है और इसलिए जिन लोगों को खुशी होती है उनका हक़ भी बनता है कि उनका मुँह मीठा कराया जाए। लेकिन अब मनुष्यों की एक ऐसी प्रजाति पनपती जा रही है जिसे खुशी से कहीं ज्यादा परायी मिठास से मतलब रह गया है। खुद को या परिजनों को जितनी खुशी नहीं होती उससे कई गुना खुशी इनके होंठ बयाँ करने लग जाते हैं। तारीफ के पुल भी इतने बाँधने लगते हैं कि लगता है पूरा पुल ही हवा का बन रहा है।

अपने आस-पास ऐसे लोगों की जबर्दस्त भरमार है जो कहीं भी कैसी भी अच्छी घटना या सफलता दिख जाने पर लार टपकाने लगते हैं और पहुँच जाते हैं वहाँ मिठाई खिलाने की दरख़्वास्त लेकर। इनका किसी से संबंध हो या न हो, किसी की खुशी से मतलब हो न हो, इनके लिए जीवन में ऐसे अवसर प्रायःतर आ ही जाते हैं जब इन्हें मुँह मीठा कराने की फरमाईश आकार ले लेती है। कई लोग ऐसे हैं जो ऐसे किसी भी अवसर पर कह उठेंगे - ये खुशी सूखी नहीं होनी चाहिए, पार्टी-शार्टी तो होनी ही चाहिए... आदि। होंठों से अभिव्यक्त खुशी जिह्वा के लिए बंदोबस्त कर ही देती है। फिर ये ऊपरी खुशी अभिव्यक्त करने में इतने माहिर होते हैं कि सामने वाले के सामने और कोई चारा ही नहीं रहता।

औरों को बोतल में उतार देने की सारी कलाबालियों से भरे-पूरे ये लोग जीवन में ऐसा कोई अवसर कभी नहीं चूकते जिनका रास्ता मिठाई और जीभ के स्वाद तक जाता है। जो प्रतिभाएँ कमाल दिखाती हैं उन्हें मिलती है सिर्फ प्रशंसा, मिठाई तो दूसरे ले उड़ते हैं। बड़े अधिकार के साथ ये लोग मिठाई की मांग ऐसे करते हैं जैसे उपलब्धि या सफलता में इनका कोई बहुत बड़ा योगदान हो, जो कि कभी होता ही नहीं। मिठाई पाने या मुँह मीठा करने का अधिकार उनका होना चाहिए जो उपलब्धि पाते हैं अथवा जो उनकी उपलब्धि में भागीदार होते हैं। जो बच्चे पढ़-लिख कर अव्वल अंक पाते हैं, जो विद्यार्थी खिलाड़ी के रूप में अग्रणी पहचान बनाते हैं, जो किसी न किसी क्षेत्र में अपना डंका बजाते हैं, उन सबकी सफलता के पीछे उनकी खुद की मेहनत हुआ करती है और कुछ दूसरों का प्रोत्साहन, मदद और मार्गदर्शन।

पर मिठाई खाने की बात आएगी तो लम्बी-चौड़ी भीड़ जमा हो जाएगी। कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो किसी के काम कभी नहीं आते, लेकिन जब बात मिठाई की आती है जो सबसे आगे होते हैं। इनकी पूरी जिन्दगी ही दूसरों के खाने में निकल जाती है। जब व्यक्ति उपलब्धि पाने की डगर पर संघर्ष करता है तब तो ये मिठाई जिज्ञासु भीड़ उपेक्षा और घृणा का भाव व्यक्त करती रहती है। जिस समय व्यक्ति को जीवन निर्माण की संघर्ष यात्रा में यथोचित सम्बल और प्रोत्साहन की जरूरत होती है उस समय तो ये भीड़ कुछ काम-धाम की नहीं होती और जब व्यक्ति अपनी मेहनत के बूते कुछ बनकर सामने आ जाता है तब पूजने लगती है और खुशी जाहिर करते हुए मुँह मीठा कराने का अलाप करने लगती है।

कभी प्रेम से तो कभी जोर-जबरदस्ती मिठाई पाने की जिद पूरी कर ही लेती है यह भीड़ जिसके जीवन में मिठास दूसरों के वहाँ से ही आती है। होना यह चाहिए कि जो बच्चे या लोग उपलब्धि पाने या कुछ बनने के लिए संघर्ष करते हैं उन्हें उस समय हरसंभव मार्गदर्शन, मदद और प्रोत्साहन मिले ताकि उनके जीवन निर्माण की यात्रा सहज और सरल हो जाए। लेकिन इस तरह का सम सामयिक फर्ज निभाना तो दूर की बात है, लोग इन्हें नीचा दिखाने और गिराने के जतन में लगे रहते हैं। फिर ये ही प्रतिभाएं जब कुछ हासिल कर लेती हैं तब इनकी उपलब्धियों के नाम पर मिठाई पाने की बात करते हैं। जो लोग प्रतिभाओं के पीछे पड़े रहते हैं वे कालान्तर में इन्हीं प्रतिभाओं के पीछे भागने लगते हैं। समय बड़ा बलवान होता है, यह बात इनसे ज्यादा किससे सिखी जा सकती है।

अन्तर्मन से होने वाली खुशी ही वास्तविक है। जिनको वास्तविक खुशी होती है वे कभी मिठाई या पार्टी की मांग नहीं करते बल्कि उनके अन्तर्मन का आशीर्वाद और शुभकामनाएं बिना मिठाई के भी बरसती रहती हैं। इसके विपरीत बात-बात में मिठाई और पार्टी की चाह रखने वाले लोगों की खुशी दिखावटी होती है और इस किस्म के लोगों के लिए मिठाई खिलाने वाले या पार्टी देने वाले की हस्ती क्या होती है, इस बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं है।

अब जब भी ऐसे लोग आपके सामने आएं, जो किसी मौके पर मिठाई या पार्टी की बात करें, थोड़ी देर उनके चेहरे को पढ़ें और उनके हृदय के भावों को समझने की कोशिश करें। थोड़ी सी मेहनत करने पर ही उनके मन को अच्छी तरह पढ़ा जा सकता है। जो लोग मिठाई या पार्टी के भूखे हैं उन्हें भी चाहिए कि वे लोगों को प्रोत्साहन और सम्बल देने में आगे आएं और तब देखेंगे कि लोग बिना कहे उनका मुँह मीठा करने को आगे आते रहेंगे। जब भी मुँह मीठा कराने का मौका आए तब उन लोगों को न भूलें जो मददगार रहे हैं। ऐसे मौकों पर सामूहिक उल्लास प्राकट्य के साथ मुँह मीठा कराने की परम्परा को आगे बढ़ाते रहना चाहिए।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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