उत्तराखण्ड में दोराहे पर पहुंची कांग्रेस
कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के समय शुरू हुई अंतर्कलह कांग्रेस नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद बढ़ गई है। भले ही 35 कांग्रेस नेताओं पर निष्कासन की तलवार हटा दी हो, लेकिन प्रदेश भर के अंदर इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस के अंदर विरोध शुरू हो गया है। जिन कांग्रेस नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा था, उनमें अधिकतर नेता जमीन से जुड़े हुए थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करने के चलते उन्हें हटाने का निर्णय लिया गया था। बीते दिवस पीसीसी में अनुशासन समिति के सचिव धीरेन्द्र प्रताप ने 35 पदाधिकारियों सहित कई कांग्रेस नेताओं को कांग्रेस से छहः साल के लिए निष्कासित किए जाने की घोषणा की थी, लेकिन घोषणा के चंद घंटो बाद ही प्रदेशभर में मचे घमासान के बाद कांग्रेस ने सभी का निष्कासन रद्द कर दिया।
देहरादून से लेकर दिल्ली तक मचे बवाल के बाद प्रदेश में कांग्रेस इस घटनाक्रम के बाद बैकफुट पर आ गई है। चूंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को विधानसभा का चुनाव जीतना है, लेकिन इस घटनाक्रम ने कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। यहां तक की कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने अनुशासन समिति के लिए गए निर्णय की जानकारी अपने पास न होने की बात पार्टी हाईकमान को बताई है और प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी निष्कासन की कार्यवाही किए जाने की कोई जानकारी न होने की बात कही है।
सवाल उठ रहा है कि प्रदेश में निष्कासन की कार्यवाही किस अधार पर की जा रही थी और यदि कार्यवाही की गई थी तो उसे निरस्त क्यों किया गया। इस घटना ने साबित कर दिया है कि प्रदेश के अंदर कांग्रेस कई गुटों में बंटी होने के कारण मजबूत निर्णय नहीं ले पा रही है। मुख्यमंत्री पद से लेकर शुरू हुई यह घमासान अभी भी प्रदेश में जारी है, ऐसे में कांग्रेस सत्ता चलाने के साथ-साथ संगठन को किस तरह चलाएगी इसे लेकर भी संशय के बादल मंडराते हुए देखे जा रहे हैं। निष्कासन की कार्यवाही का हरीश रावत खेमें के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं में भी गुस्सा खुलकर देखा गया और जिन नेताओं को विधानसभा चुनाव में ठीक ठंग से काम न किए जाने को लेकर नोटिस थमाएं गए हैं, उनके अंदर भी संगठन की इस कार्यवाही का पुरजोर विरोध था। कंेद्रीय मंत्री हरीश रावत के सुपुत्र यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आनंद रावत के साथ-साथ सांसद प्रदीप टम्टा का नाम भी उस सूची में शामिल है, जिन्हें संगठन की तरफ से नोटिस दिया गया है। लेकिन उत्तराखण्ड में निष्कासन की कार्यवाही किए जाने की घटना का अलग-अलग गुटों ने विरोध शुरू कर दिया है। हरीश रावत खेमें का विरोधी गुट पार्टी के खिलाफ काम करने वाले लोगों को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए जोर लगा रहा है, वहीं हरीश रावत खेमा इस कार्यवाही का खुलकर विरोध करता हुआ नजर आ रहा है। वर्तमान परिस्थितियां उत्तराखण्ड में कांग्रेस के लिए बेहद चुनौती भरी बनी हुई हैं और प्रदेश में यदि यही हालात रहे तो प्रदेश के मुख्यमंत्री को विधानसभा का चुनाव जीतना टेंढ़ी खीर साबित हो सकता है।
कोटद्वार से भाजपा के मुख्यमंत्री बी.सी. खण्डूडी को जनता ने जिस तरह से नकारा था ठीक उसी प्रकार की परिस्थितियां वर्तमान में कांग्रेस के भीतर पैदा हो गई हैं। कांग्रेस की बढ़ती इस खाई को जल्द ही पाटा गया तो यह कांग्रेस के लिए नासूर बन सकती है। जिसका खामियाजा पंचायत चुनाव से लेकर 2014 के होने वाले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। राजनैतिक विश्लेषक मान कर चल रहे हैं कि उत्तराखण्ड में वर्तमान परिस्थितियां कांग्रेस के अनुकूल नजर नहीं आ रही है और अंदरखाने एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल लगातार जारी है। उनका यह भी मानना है यदि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ काम किए जाने की शिकायतें संगठन को मिली थी तो उन पर कार्यवाही करते हुए उन्हें पदों से हटा देना चाहिए था और पार्टी के खिलाफ काम करने वाले लोगों को सरकार में समायोजित भी नहीं किए जाने पर भी विचार करना चाहिए था। कुल मिलाकर कांग्रेस में संगठन ने अनुशासन का पाठ पढ़ाया तो प्रदेश के सीएम व प्रदेश अध्यक्ष ने निष्कासन पर कैंची चला दी।
(राजेन्द्र जोशी)
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