भारत का नागर विमानन इतिहास शायद अलग होता, यदि टाटा समूह और सिंगापुर एयरलाइंस को 15 साल पहले निजी विमानन कंपनी शुरू करने की मंजूरी दी गई होती। यह बात पूर्व नौकरशाह एम के कॉव ने अपनी किताब में कही।
आई के गुजराल सरकार के समय नागर विमानन सचिव रहे कॉव के अनुसार टाटा समूह ने सिंगापुर एयरलाइंस की 40 फीसदी हिस्सेदारी के साथ एक निजी विमानन कंपनी शुरू करने का प्रस्ताव किया था। टाटा से बड़ी चुनौती मिलने की आशंका से जेट ने विदेशी हिस्सेदारी के योगदान के मामले में टांग अड़ाई।
कॉव 37 साल तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे। उन्होंने नए प्रस्तावों में भी विदेशी विमानन कंपनियों को 40 फीसदी हिस्सेदारी देने के मंजूरी से जुड़े प्रावधान की वकालत की है। काव के अनुसार इसे जेट की टाटा पर विजय के रूप में देखा गया था। यदि इसे नीति के तौर पर पेश किया जाता तो टाटा के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा होतीं। तत्कालीन नागर विमानन मंत्री सी एम इब्राहिम इससे राजी नहीं थे। जेट वालों ने उन्हें कहा कि मैं टाटा समूह को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं। कॉव ने कहा कि मंत्री ने बार-बार कोशिश करने के बावजूद इस फाइल को अपनी मंजूरी नहीं दी। यदि टाटा को सिंगापुर एयरलाइंस के साथ विमानन कंपनी शुरू करने की मंजूरी दी जाती, तो देश के नागर विमानन का इतिहास कुछ और होता।
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