घाटे में चल रहे बिहार को फायदे में पहुंचने के लिए सरकार ने शराब को आम कर दिया. पीने वालों ने भी खूब पिया और सरकारी खज़ाने में लगातार इज़ाफा होता रहा है. बिहार में शराब से ज़िंदगियां तबाह हो रही है. बच्चे, महिलाएं सरकार के मुखिया को बार-बार अपनी फरियाद सुना चुके हैं. राज्य के रहनुमाओं को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता. कइयों ने पाबंदी की बात की पर हालात जस के तस बने रहे. स्कूल के आस-पास, मोहल्ले के बीच बाज़ार सभी जगह शराब की दुकानें सज-धजकर शराबियों को दावत देती है. तबाही और बर्बादी से आजिज़ लोगों ने कई बार अपनी आवाज़ भी बुलंद की लेकिन फायदा कुछ भी नहीं हुआ. सरकार पर ये भी आरोप लगा कि सरकार पीने के लिए भोली-भाली जनता को उकसा रही है.
सरकार को शराब से फायदा खूब हुआ. राजस्व में वृद्धि तो हुई ज़रूर, साथ ही गली-मोहल्ले और चौराहों पर मयखानों की भरमार लग गई. आंकड़े बताते हैं कि शराब पीने और बेचने के मामले में बिहार ने तेज़ी से रफ्तार पकड़ी है. 2006 में शराब की लगभग 2700 दुकानें सरकारी कागज़ों पर दर्ज थी और अब 6 हज़ार के करीब है. देश में औसतन एक लाख की आबादी पर सात विदेशी और देसी शराब की दुकानें हैं. जबकि बिहार इस आंकड़े को पार करने में कुछ ही कदम पीछे है. फिलहाल सरकार ने लगभग तीन ग्राम पंचायत पर शराब की एक दुकान खोल दी है. शराब बेचने वालों की आमदनी में इज़ाफा हुआ है और सरकारी खज़ाने में भी लगातार वृद्धि हो रही है.
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