केन्द्रीय सूचना आयोग ने यह फैसला दिया है कि पासपोर्ट के लिये आवेदन करने वाले व्यक्ति द्वारा दी गई जानकारी को सूचना के अधिकार कानून के तहत उपलब्ध कराया जा सकता है. सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपने फैसले में कहा ‘प्रशासन संचालन में हमारे खराब रिकार्ड और भ्रष्टाचार के चलते नागरिकों को आवश्यक सम्मान और अधिकार नहीं मिल पाता है. ऐसी स्थिति में यह उपयुक्त है कि निजता के मामले में नागरिकों के सूचना के अधिकार की प्राथमिकता दी जाये.’
आयोग ने यह निर्णय सूचना के अधिकार के तहत दिये गये अनिता सिंह के आवेदन पर दिया. अनिता सिंह ने किसी अजीत प्रताप सिंह द्वारा पासपोर्ट के लिये आवेदन करते समय उसके साथ लगाये गये दस्तावेज की प्रतियां मांगी थी. इस मामले में विदेश मंत्रालय का कहना था कि तीसरे पक्ष की राय लिये बिना मामले में संबंधित सूचना नहीं दी जा सकती.
आवेदनकर्ता के मौजूदा पते की जानकारी नहीं होने की वजह से उनकी राय लेना संभव नहीं है. सूचना आयोग ने मामले पर अपने फैसले में कहा ‘यदि तीसरे पक्ष का पता नहीं है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि नागरिकों के सूचना का अधिकार समाप्त हो जाता है. कानून की धारा 11 के तहत तीसरे पक्ष को आपत्ति होने पर अपनी आवाज उठाने का मौका दिया गया है.’ निजता में दखल के सवाल पर गांधी ने कहा कि प्रशासन को किसी निजी मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है. ‘लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां होती है जब प्रशासन को नागरिकों के निजता में भी पहुंचना पड़ता है.’ उन्होंनें कहा कि ‘ऐसी परिस्थिति में कानून के विशेष प्रावधान लागू होते हैं, हालांकि इसमें पूरी सतर्कता बरतनी होती है.इसलिये जिन मामलों में प्रशासन नागरिकों से नियमित तौर पर जानकारी हासिल करता है ऐसी सूचनायें सार्वजनिक गतिविधियों के संबंध में होती हैं और इसे निजी मामलों में दखल नहीं माना जाना चाहिये.’
गांधी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि नागरिकों को चुनाव में खड़े उम्मीदवार के खिलाफ लगे आरोपों को जानने का अधिकार है इसके साथ ही उसकी संपत्ति की भी जानकारी मिलनी चाहिये, क्योंकि ऐसे उम्मीदवार अपने आप को जनसेवा के लिये पेश करने की इच्छा रखते हैं.
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