मितभाषी बनें, प्रभावी बोलें !!!
लोगों की कई किस्मे हैं। कुछ लोग खूब बोलते हैं, कुछ बोलने की जरूरत पड़ने पर भी गूँगे बने रहते हैं और कुछ उतना ही बोलते हैं जितना बोलना होता है। बोलने वाले और अबोले लोगों के बीच मध्यम मार्गी लोग होते हैं जो कहाँ क्या बोलना है उसमें माहिर होते हैं। इन सभी का साफ-सुथरा अध्ययन किया जाए तो हमेशा यह निष्कर्ष सामने आएगा कि निम्न और संकीर्ण सोच वाले लोग खूब बोलते हैं, बोलते ही रहते हैं और बड़े ही जोर-जोर से बोलते रहते हैं।
इन लोगों का बोलना भी ऐसा लगता है जैसे ये चिल्ला रहे हों या लड़ाई ही करने पर ही आमादा हों। दूसरी ओर धीर-गंभीर और शांत लोग धीरे बोलते हैं और उनकी वाणी से स्पष्ट ही पता लग जाता है कि ये भारी लोग हैं और इनके भीतर उदारता और संतोष भरा हुआ है। हमेशा कमजोर और नीच आदमी जोर-जोर से बोलता है और इतना सारा बोल देता है कि सुनने वाले को अजीर्ण होने लगता है। ऐसे लोग दस-पाँच फीट पर खड़े व्यक्ति को भी सुनाने के लिए ऐसे बोलेंगे जैसे वह सौ मीटर दूर खड़ा हो।
आम तौर पर हमारे आस-पास की बात करें या कहीं दूर की, हर जगह कौअे काले ही होते हैं और गधे धूल में लोटने के आदी, सूअर कीचड़ ही सूँघते मिलेंगे और दुनिया में हर कहीं पागलों का वजूद बना हुआ है। सर्वत्र मनुष्यों की ये सभी प्रकार की प्रजातियाँ विद्यमान हैं जिनकी वाणी से ही हम पता लगा सकते हैं कि कौन कितना हल्का है, और कौन कितना भारी। हल्के और खोखले आदमी सदैव जोरों से बोलते हैं। तनिक सी बाहरी हलचल इनके कानों में पड़ जाने पर ये डिब्बे बोलने लगते हैं और फिर बोलते ही चले जाते हैं जब तक कि थक नहीं जाएँ। ज्यादा और तेज बोलने वालों के जीवन में कहीं कोई उपलब्धि देखने नहीं मिलती, अपवादस्वरूप कहीं कुछ देखने मिल जाए वो अलग बात है।
जो लोग ज्ञान और अनुभवा की ऊर्जाओं से भरे होते हैं वे भारी होते हैं, शांत, नम्र और गंभीर होते हैं तथा जो भी बात कहनी होती है बड़ी ही तसल्ली और धीरे से कहने के आदी होते हैं। आवाज के माध्यम से दुनिया में किसी भी आदमी का आकलन करना हो तो उसकी वाणी और बोलने की तीव्रता के अनुसार किया जाना ज्यादा सटीक और खरा-खरा होता है। अपने आस-पास के लोगों को देखियें और उन्हें परखियें इस कसौटी पर, फिर देखियें आप कितने सही ठहरते हैं।
व्यक्ति का मन-मस्तिष्क और उसकी वाणी का सीधा संबंध होता है। इसी प्रकार वाणी का माधुर्य भी व्यक्तित्व का परिचायक है। कहा जाता है कि चित्त और मस्तिष्क की शुद्धि रहने पर वाणी शुद्ध रहती है और उच्चारण दोष नहीं रहता। इसके साथ ही ऐसे लोगों की वाणी का माधुर्य अपने आप झलकने लगता है। दूसरी ओर शारीरिक कारणों को छोड़ दिया जाए तो कुटिल तथा भ्रष्ट लोगों की वाणी दूषित रहती है तथा उच्चारण दोष बना रहता है। यह देखने में आता है कि जो जितना ज्यादा भ्रष्ट होता है उसकी वाणी उतनी अधिक दूषित रहती है। इनमें उन लोगों को अपवाद ही माना जाना चाहिए जिनके लिए बोलना एक धंधा बना हुआ है तथा जिनका जन्म ही भाषणों के लिए हुआ है।
वाणी का सीधा संबंध सम्प्रेषण कौशल से है। जो लोग ज्यादा बोलने वाले होते हैं वे किसी विषय को हजारों शब्दों के माध्यम से भी स्पष्ट और सहज तरीके से समझा नहीं सकते, जबकि कम बोलने वाले लोग उसी बात को चन्द शब्दों में सामने वाले के जेहन तक में उतार देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। इसका मूल कारण यह है कि खूब बोलते रहने वाले लोगों के शब्दों में ताकत का अभाव रहता है और कम बोलने वाले लोग अपने शब्दों के पीछे छिपी शक्ति को सहेज कर रखते हैं। जीवन में फालतू बोलने और बकवास से बाज आएँ और जहाँ जरूरी हो वहीं अपनी वाणी का इस्तेमाल करेंे, फिर देखें आपकी वाणी भी चन्द शब्दों में ऐसा प्रभाव छोड़ देगी कि आपकी हर सोच ओर बात सामने वाले के दिमाग में घर कर जाएगी और अच्छे प्रभाव छोडे़गी।
पर याद रखियें कि जो कुछ बोलें वह उनके सामने ही बोलें जिनके लिए आपके बोलने का अर्थ हो या उनमें आपको समझने की क्षमता हो। ऐसे वज्र मूर्ख लोगों के सामने कभी न बोलें जिन्हें न आपके शब्द समझ में आते हैं न भाव। अपनी वाणी का मोल पहचानें और वहीं अभिव्यक्ति करें जहाँ आपके बोलने का अर्थ सामने आए।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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