वे नहीं कर सकते अकेले कुछ भी !!!
मनुष्य मात्र में ईश्वर ने अपनी सारी अनुकंपा लुटायी है और उसे अंश के रूप में प्रकटाया है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या नगण्य हुआ करती है जो इस परम सत्य और शाश्वत स्थिति को समझ पाते हैं। बहुसंख्य लोग न केवल अपनी प्रतिभाओं और ऊर्जाओं से अनभिज्ञ होते हैं बल्कि उन्हें न अपने अवतरण के उद्देश्य का पता रहता है, न जीवन के लक्ष्य का। ऐसे लोग जो प्राप्त करते हैं वह अपने भाग्य या चालाकियों से, समझौतों से अथवा किसी न किसी की दया और कृपा पर निर्भर रहकर। फिर चाहे वे छोटी कुर्सी वाले हों या बड़े आसनों या सिंहासनों वाले।
ऐसे आत्महीन और कामचलाऊ तथा कामटालू लोग कहीं भी हो सकते हैं। लेकिन इन सभी में एक ख़ासियत जरूर हुआ करती है और वह है कॉकस बनाना। ये लोग जहाँ कहीं रहेंगे अकेले कुछ कर पाने का माद्दा या साहस नहीं बटोर पाते। अकेले इनके भरोसे कोई काम सफल हो नहीं सकता, न ही अकेले रहकर ये लोग कोई उपलब्धि हासिल कर पाते हैं। इन्हें हमेशा कोई न कोई समानधर्मा या उनकी बातों में हाँ में हाँ करने वाले कुछ न कुछ लोग जरूर चाहिएं और इसीलिए ये लोग हमेशा बिना किसी वजह के भी किसी न किसी कॉकस को बनाए हुए टाईमपास करने को विवश होते हैं।
बिना किसी कॉकस के इनका व्यक्तित्व धुंधला ही बना रहता है और जैसे ही इनकी तरह के लोग जुड़ जाते हैं इनका आभा मण्डल निखर उठता है। बिना कॉकस के ये लोग अधमरे पड़े रहते हैं और कॉकस जुड़ जाने पर इनमें लोगों को मसल देने और मार डालने तक की ताकत आ जाती है। आम तौर पर समय की नब्ज़ को पहचानने वाले और क्षणभंगुर जीवन के मर्म को समझने वाले लोग अकेले हों तब भी समाज के लिए कुछ न कुछ अच्छे कार्य करते ही रहते हैं, मगर कॉकस पसन्द लोगों के सामने वर्तमान के सारे आनंद पा लेने के सिवा कोई लक्ष्य सामने होता ही नहीं।
इसलिए ऐसे लोग सभी जगह मिल ही जाते हैं जिनका स्वभाव एक जैसा होता है। यह जरूरी नहीं कि कॉकस में शामिल सारे लोगों का मानसिक धरातल एक जैसे स्तर का ही हो। कॉकस का अर्थ ही यह है कि अपनी मनमानी करने वाले लोगों का वह समूह जो उन सभी हरकतों को करने में स्वच्छंद है जो उन्हें आनंदित करती हैं। इस स्वच्छन्दता में न कहीं गरिमा या शालीनता होती है, न इसका कोई परिणाम, सिर्फ तात्कालिक मनोरंजन भर से ज्यादा यह कुछ नहीं हुआ करता। समाज-जीवन और कर्मधाराओं के हर क्षेत्र में आज कॉकस चल रहे हैं, चलाएं और दौड़ाए जा रहे हैं, और अनगिनत लोग अपने-अपने कॉकस को अपना संसार मानकर बैठे हुए आनंद ले रहे हैं।
इस कॉकस का मकसद ही यह होता है कि चाहे किसी भी सीमा तक जाकर भी, संसार के किसी भी विषय की चर्चा करते हुए आलोचना या निन्दा करते हुए ये रसपान करते रहते हैं। यही रस इनका जीवन बनाता है और जिन्दा रहने तक की ऊर्जा देता रहता है। इस कॉकस को देख कर हमें याद आने लगता है गायों और भैंसों का झुण्ड जो बीच रास्ते या जंगल में कहीं भी पास-पास बैठा रहकर जुगाली करता रहता है, भेड़ों की रेवड़ का किसी खेत में ठहराव हो या निठल्लों की कहीं भी जम जाने वाली जमात। अन्तर सिर्फ इतना है कि भगवान ने उन्हें मूक बना रखा है और इन्हें वाणी दे डाली है।
वे बिरले ही होते हैं जिनका व्यक्तित्व और कद इतना ऊँचा होता है कि वे अकेले अपने दम पर बहुत कुछ ऐसा कर गुजरते हैं कि सदियाँ याद रखती हैं। वरना आज अकेले ही कुछ कर पाने का माद्दा इने-गिने लोगों में ही देखने को मिलता है। बहुसंख्य लोग सामान्य कामकाज के लिए भी समूह के रूप में जहाँ-तहाँ नज़र आते हैं। यही उनका कॉकस होता है। यह कॉकस की ही ताकत होती है कि एक-दूसरे के कामों के लिए समूह के रूप में इधर-उधर भटकते या दौड़ लगाते दिखने लगते हैं। कई तरह के बाड़ों में अलग-अलग रंगों और रसों के कॉकस विद्यमान होते हैं जिनका एकमेव उद्देश्य एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को पुष्ट करते रहना होता है। यह जरूरी नहीं कि ये विचार सकारात्मक या पावन ही हों, इनका स्वरूप किसी भी प्रकार का हो सकता है।
किसी भी तरह के कॉकस को हम यदि विभाजित करके देखें तो इनमें से एक की भी क्षमता इतनी नहीं होती कि दूसरों को प्रभावित कर दे। बिना कॉकस के इनके जीवन का कोई काम संभव है ही नहीं। यों भी अच्छे कामों के लिए किसी भी प्रकार का कॉकस न भी हो तो ये काम अपने आप होते चले जाते हैं लेकिन बुरे और आलोचना भरे या दो नम्बरी अर्थात अवैध कामों के लिए कॉकस की ताकत जरूरी होती है। यह तय मानकर चलें कि कॉकस के रूप में शामिल लोग मिल-जुल कर भले ही कुछ कर लें मगर अकेले इनका कोई वजूद नहीं होता। ईश्वर ने तो उन्हें अपार शक्तियाँ दी होती हैं मगर मलीन मन वाले लोगों के लिए आत्महीनता की वजह से ये शक्तियाँ आजीवन विस्मृत ही रहती हैं।
जहाँ कॉकस बने होते हैं वहाँ इसकी हर इकाई कमजोर कड़ी ही हुआ करती है। यह कॉकस अपने व्यक्तित्व की जड़ों को कमजोर करता है और इसका पता तब चलता है जब कॉकस में शामिल लोगों का मन, शरीर और बुद्धि जवाब दे जाते हैं और वह समय आ जाता है जब सभी को वापस लौट जाने की अनमनी तैयारी करनी होती है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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