दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रेस विज्ञप्ति विवाद की सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा कि सेना प्रमुख और चार अन्य ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करते हुए एक पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई, इसलिए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि इसे वापस लेने के लिए वह केंद्र सरकार से नहीं कह सकती, क्योंकि इसे सेना ने जारी किया था। लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) तेजिंदर सिंह ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि वह केंद्र सरकार को पांच मार्च को जारी वह विज्ञप्ति वापस लेने के निर्देश दे, जिसमें उन पर सेना प्रमुख वी. के. सिंह ने आरोप लगाया था कि दोयम दर्जे के वाहनों की खरीद से सम्बंधित एक सौदे को मंजूरी देने के लिए तेजिंदर सिंह ने उन्हें 14 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी।
लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने कहा, "प्रेस विज्ञप्ति केंद्र सरकार ने नहीं जारी की थी, इसलिए उसे इसे खारिज करने या वापस लेने के लिए नहीं कहा जा सकता।" न्यायालय ने हालांकि यह भी कहा कि सेना प्रमुख तथा चार अन्य सैन्य अधिकारियों ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन कर लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई। उनके खिलाफ सम्बंधित विभाग अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है। न्यायालय ने केंद्र सरकार की यह दलील स्वीकार कर ली कि प्रेस विज्ञप्ति उसकी ओर से नहीं, बल्कि सेना की ओर से जारी की गई थी और इसे उच्च स्तर के अधिकारियों ने मंजूरी दी थी। अतिरिक्त महाधिवक्ता ए. एस. चंडोक ने अदालत को बताया कि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है।
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