टाईमपास न जीयें हर क्षण करें शक्ति संचय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 25 मई 2012

टाईमपास न जीयें हर क्षण करें शक्ति संचय


व्यक्ति की पूरी जिन्दगी में पचास फीसदी से ज्यादा वह समय होता है जिसको वह फालतू के कामों और बेकार की सोच में गँवा देता है। जो व्यक्ति जीने का अर्थ समझते हैं वे हर क्षण को कीमती मानकर उसका पूरा उपयोग करने की कला में पारंगत हो जाते हैं और जीवन में सफलता के झण्डे गाड़ते हुए मार्गदर्शी और प्रेरणा पुंज बन जाते हैं। दूसरी ओर ऐसे लोगों की संख्या नब्बे फीसदी से अधिक है जिनका ज्यादातर समय अनुपलब्धिमूलक और निरर्थक गुजर जाता है। इनमें से भी अधिकांश समय सोने, बेवजह बोलने अर्थात बकवास करने और सुनने में गुजर जाता है। हम इतना अधिक बोलते और सुनते हैं जिसकी हमें आवश्यकता ही नहीं होती मगर बोलना और सुनना तथा फालतू के कामों में रमे रहना आदमी की फितरत में सर्वोपरि होता है और ऐसे में उसे वे सारे काम बेकार लगते हैं जो इनके सिवा हैं। ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के बेजा इस्तेमाल से इनकी कार्यक्षमता का ह्रास होता है तथा जीवन की पूर्णायु तक पहुँचते-पहुँचते ये जवाब देने लग जाती हैं जबकि इनका सही और युक्तिपूर्वक इस्तेमाल किया जाए तो आजीवन इनकी क्षमता बनी रहती है।

हर व्यक्ति के जीवन में 70 फीसदी समय ऐसा होता है जिसके बारे में यदि वह जान ले तो निहाल हो जाए, मगर अधिकतर लोगों में न जानने की जिज्ञासा होती है न कुछ कर पाने की ललक। जीवन में जो समय हमारे सामने है उसके बारे में जानकर पूरा-पूरा उपयोग कर लिया जाए तो हमारी जिन्दगी सुनहरी रश्मियों से भरी-पूरी रह सकती है और इसका लाभ न सिर्फ हमें, बल्कि उन सभी को प्राप्त होता है जो हमारे सम्पर्क में एक बार भी आ जाते हैं। जीवन में आने वाले ऐसे तमाम अवसरों के प्रति सजग रहें और इन अवसरों को शक्ति संचय का माध्यम बनाएं। बात चाहे सफर की हो, कहीं प्रतीक्षा की हो या उन क्षणों की जब हमारे पास कोई दूसरा काम न हो। इन अवसरों पर आत्मचिन्तन करें और उनका रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिए उपयोग करें। कई बार बैठकों, सभाओं और समारोहों का देरी से शुरू होना, बस या रेल विलम्ब से आना, कहीं काम के लिए जाने पर लम्बे समय तक प्रतीक्षा करने रहने की विवशता या और कोई ऐसा समय, जिसके बारे में हमें यह कहना पड़ता है कि समय काट रहे हैं या प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसका उपयोग अपने हक में शक्ति संचय के लिए अवश्य हो सकता है।

जीवन में सफर के अवसर हों या कहीं भी किसी काम के लिए प्रतीक्षा की विवशता, इन क्षणों में कुढ़े नहीं, न ही रंज या खीज निकालें। इन अवसरों का महत्त्व समझें और इनका दोहन करें। कुछ नहीं तो इन क्षणों को साधना का माध्यम बनाएँ और जिस किसी भगवान या ईष्ट में रुचि हो, उनके किसी छोटे से मंत्र का मन ही मन लगातार जप करते रहें। यों तो आम आदमी घर-गृहस्थी के फण्डों में घनचक्कर होने की वजह से साधना या ईश्वर स्मरण के लिए समय नहीं निकाल पाता है लेकिन सफर और प्रतीक्षा ये दो ऐसे सुअवसर पर हैं जिनका सदुपयोग किया जाना संभव है। इन क्षणों में हरि स्मरण का फायदा यह होगा कि हम फालतू की चर्चाओं, निन्दा और आलोचनाओं आदि से दूर रह पाएंगे और दूसरा ईश्वरीय ऊर्जा लगातार संग्रहित होनी शुरू हो जाएगी जिसका लाभ हमें पूरी जिन्दगी अपने आप प्राप्त होता रहता है। केवल इन्हीं क्षणों का ईमानदारी के साथ ईश्वर स्मरण मात्र में ही उपयेाग कर लिया जाए तो सिद्धि और सफलता में ये खूब मददगार हो सकते हैं, यह कई साधकों का अनुभव है। इसी प्रकार स्वाध्याय, स्वास्थ्य लाभ की मुद्राएं और विद्वजनों से सत्संग या चर्चा भी की जा सकती है। 

कुछ नहीं तो इन क्षणों में उद्विग्न हुए बिना निर्विचार की स्थिति लाने का प्रयास करें। यदि कोई भी व्यक्ति मात्र पाँच-दस मिनट के लिए भी निर्विचार हो जाए तो उसे असीम मानसिक शांति का अहसास होगा। यह भी अनुभूत है। ये भी न कर पाएँ तो अपनी रुचि के कामों का चिन्तन करें और इनसे संबंधित गतिविधियों के बारे में चर्चा करें या व्यवहार में लाएं। इससे भी बौद्धिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक बल बढ़ने लगता है। इससे शरीर ऊब और थकान से भी दूर रहता है। बड़े-बड़े लोग जिनका अधिकांश समय सफर में गुजरता है वे इसी प्रकार साधना से सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग खोज लेते हैं। जबकि ऐसा नहीं करने वाले लोग प्रतीक्षा करते-करते इतना थक जाते हैं कि उन्हें हर थोड़ी-थोड़ी देर में उबासियाँ आनी शुरू हो जाती है, बार-बार झल्ला उठते हैं और प्रतीक्षा के अंत न होने की बात कहते हुए खिसियाते रहते हैं। ये स्थितियां मनुष्य को कमजोर ही करती हैं और इससे चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है जो अन्ततोगत्वा किसी न किसी तनाव और बीमारी को जन्म देता है।

इन सारी स्थितियों से बचने का एकमात्र यही उपाय है कि जहाँ कहीं प्रतीक्षा करनी पड़े, लम्बा सफर हो तथा हमारे पास कोई काम नहीं हो तब इसी प्रकार की साधना करें। छोटे-छोटे समय का दोहन करते हुए शक्ति संचय की आदत पड़ जाने पर हम किसी भी परिस्थिति में कहीं भी रहें, न कभी तनाव होगा, न खीज या गुस्से की स्थिति आएगी। बल्कि ऐसे मौके जब भी आएंगे, आनंद देंगे। समय का अपने हक़ में इस्तेमाल कर लेने की कला सीख जाने पर जीवन के कई सारे आनंद बहुगुणित हो जाते हैं और इसी से व्यक्तित्व की सफलता को मिलने लगती हैं ऊँचाइयाँ।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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